हिमाचल प्रदेश के महत्वपूर्ण स्थल
श्री नैना देवी जी : श्री नैनादेवी जी एक सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह स्वारघाट से 20 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। त्रिकोणीय पहाड़ी पर स्थित मंदिर से चारों तरफ का नजारा अति प्रिय लगता है। जिसके एक ओर आनंदपुर साहिब तथा दूसरी ओर गोविन्द सागर है।
सुन्हानी: बिलासपुर के इतिहास में सुन्हानी का अपना ही महत्व है। इसके शासकों में से एक बीक चन्द को इस्लाम कबूल करने से बचने के लिए इस स्थान पर भाग कर आना पड़ा। यद्यपि सुन्हानी को 53 वर्ष तक बिलासपुर रियासत की राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ। दीप चन्द के सिंहासन पर आरूढ़ होने तक यह सरकार की गद्दी बनी रही। उसने इस स्थान के लिए कठोर अरुचि विकसित की और बिलासपुर के पक्ष में परिवर्तन करने का निर्णय किया।
स्वारघाट (जिला बिलासपुर, 720 मीटर): स्वारघाट राष्ट्रीय उच्च मार्ग न. 21 पर जिला बिलासपुर में शिवालिक की पहाड़ियों में स्थित है। स्वारघाट से बिलासपुर को जाते हुए कोई दूर पहाड़ी पर मलाओं किले के अवशेषों को देखे बिना नहीं रह सकता जो ब्रिटिश, गोरखा, सिक्ख और अन्ततः कई पहाड़ी राजाओं की कई ऐतिहासिक लड़ाइयों का साक्ष्य बना और कई शासकों से निकल कर जीवित बचा। यह अतीत में एक बड़े व्यापारिक केन्द्र के रूप में विकसित हुआ है। जैसा कि यहां आबकारी और कराधान की चैक पोस्ट स्थापित हुई है।
मंडी (800 मीटर) : व्यास नदी के दोनों किनारों पर स्थित मंडी शहर एक दर्शनीय स्थल है। इसका नामकरण सम्भवत मण्डाव्य ऋषि के कारण मंडी पड़ा या व्यापारिक महत्व का स्थल होने के कारण, ऐसा स्थानीय लोगों का मानना है। मंडी में लगभग 81 मंदिर हैं जिनमें प्रसिद्ध हैं भूतनाथ, त्रिलोकी नाथ, पंचवक्ता तथा श्यामा काली। सेरी बाजार, पडुल मैदान तथा हिमाचल दर्शन फोटो गैलरी आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है।
रिवाल्सर झील : मंडी से 26 कि.मी. दूर यह स्थल हिन्दू, सिक्ख तथा बौद्धों के लिए समान महत्व का है। हिन्दू इसे लोमष ऋषि की जन्म स्थली मानते हैं, बौद्ध गुरूपद्म सम्भव की तथा गुरूगोविन्द सिंह के रिवाल्सर आने के अवसर पर सिक्खों ने यहाँ एक भव्य गुरूद्वारा बनाया हुआ है। यह झील तैरने वाले टापू के लिए भी प्रसिद्ध है। प्रकृति की छटा यहाँ अपना निराला ही सौंदर्य बिखेरती है।
पराशर झील (2739 मीटर) : मंडी शहर से उत्तर पूर्व में 40 किमी. दूर यह सुन्दर स्थान अवस्थित है। पराशर ऋषि का मंदिर (तीन मंजिला) पश्चिमी हिमालय का एक अद्भुत मंदिर है।
शिमला (2205 मीटर) : शिमला उत्तरी भारत का एक सुप्रसिद्ध पर्यटक स्थल है जो हिमाचल का सबसे बड़ा शहर है। शिमला का नामकरण श्यामला देवी के नाम पर पड़ा ऐसा माना जाता है। यह अंग्रेजी शासन की ग्रीष्म कालीन राजधानी तथा वर्तमान में हिमाचल प्रदेश की राजधानी है।
भारतीय उच्च अध्ययन केन्द्र : शिमला से 4 कि.मी. दूर समरहिल के समीप यह केन्द्र स्थित है जिसका निर्माण 1884-85 के बीच लार्ड डफरिन ने करवाया था तथा इसे “राष्ट्रपति निवास” के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर देश-विदेश से शोध छात्र अध्ययन के लिए आते हैं।
मशोबरा (2149 मीटर) : शिमला से 13 कि.मी. दूर यहाँ उत्तरी भारत का सबसे बड़ा फल अनुसंधान केन्द्र स्थित है। मशोवरा का सिप्पी मेला पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है। यह स्थल पर्यटन की दृष्टि से अति उत्तम है।
कुफरी (2600 मीटर) : शिमला से 16 कि.मी. दूर कुफरी एक छोटा सा कस्बा है। सर्दियों में यहां स्कींग सुविधा प्रदान की जाती है। कुफरी चोटा शिमला शहर के नजदीक सबसे ऊँची चोटी है। पिछले सालों से यह स्कींग खेल के कारण पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपुर्ण हो गया है।
सराहन (2165 मीटर) : शिमला जिले से भी भाग में अवस्थित सराहन भीम के लिए है। यहां पर ‘भारतीय खेल प्राधिकरण ने हाई अलटीच्यूट प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की है। सराहन के बिल्कुल सामने श्रीखंड पर्वतमाला स्थित है तथा पीछे सुन्दर घने जंगल हैं।
नाहन (932 मीटर): शिवालिक पहाड़ियों में स्थित नाहन एक अकेली पहाड़ी पर स्थित है। नाहन अपनी सफाई तथा सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। (नाहन की स्थापना राजा करण प्रकाश ने 1621 ई. में की थी)। नाहन, जिला सिरमौर की राजधानी है नाहन के इर्द-गिर्द कुछ बहुत से रमणीय स्थल हैं जैसे कि रेणुका, पौटा साहिब, त्रिलोकपुर मंदिर तथा सकेती फौसिल पार्क इत्यादि ।
धौला कुंआ : नाहन से पौंटा रोड़ पर लगभग 20 कि. मी. की दूरी पर यह रमणीय स्थल स्थित है। यह क्षेत्र खट्टे रस भरे फलों तथा आम के बगीचों के लिए प्रसिद्ध है। धौला कुआं के समीप ही कत्तासन देवी का सुप्रसिद्ध मंदिर है जिसे राजा जगत सिंह ने बनवाया था।
पौंटा साहिब – गुरूगोविन्द सिंह की पुण्य याद से जुड़े पौंटा साहिब का विकास औद्योगिक नगर के रूप में हुआ है। पौटा साहिब यमुना नदी के किनारे स्थित है। गुरु गोविन्द सिंह ने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण वर्ष यहां व्यतीत किए थे। गुरू जी की याद में यहां पर एक भव्य गुरूद्वारा भी स्थित है।
रेणुका : नाहन से 45 कि.मी. की दूरी पर रेणुका तीर्थ स्थल अवस्थित है। यहां पर एक सुन्दर झील भी स्थित है। इस स्थल का नाम ऋषि जम्दाग्नि की पत्नी तथा भगवान परशुराम की माता रेणुका देवी के नाम पर पड़ा है। भगवान परशुराम ने अपने पिता की आज्ञानुसार मां रेणुका का वध कर दिया था। यह कार्य सम्पन्न होने पर झील का निर्माण हुआ था। अब प्रति वर्ष मां-बेटे के मिलन की याद में यहां एक मेला लगता है। एक अन्य किंवदर्ती के अनुसार एक राक्षस से अपने स्तीत्व की रक्षा करने हेतु रेणुका ने इस स्थान पर समाधि ले ली थी।
कल्पा (2670 मीटर) : शिमला से 260 कि.मी. दूर कल्पा हिन्दुस्तान – तिब्बत राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित जिला किन्नौर का मुख्यालय है। कभी यह लार्ड डलहौजी का प्रिय स्थल रहा था। सतलुज के दूसरे छोर पर किन्नर कैलाश पर्वत है। कल्पा या चिनी प्राचीन नाम थे अब जिला मुख्यालय रिकांगपियो है।
रिब्बा (2745 मीटर) : रिब्बा जिला किन्नौर का एक घनी आबादी वाला गांव है। यह मोरांग से 14 कि.मी. दूरी पर स्थित है। रिब्बा, अंगूरों की खेती तथा अंगूरी शराब के लिए प्रसिद्ध है।
नाको (3662 मीटर): हांगरांग घाटी से लगभग 2 कि.मी. तथा कल्पा से 103 कि.मी. की दूरी पर नाको गांव स्थित है। यह इस घाटी का सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित गांव है तथा साथ में सुप्रसिद्ध नाको झील भी है। नाको के समीप पारजियल पर्वत भी अवस्थित है।
तांदी : चन्द्रा तथा भागा नदियों के संगम स्थल पर अवस्थित तांदी केलांग से 8 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। तांदी स्थल के संबंध में कई प्रकार की कहानियां प्रचलित हैं। तांदी एक रमणीय स्थल है।
किब्बर (4205 मीटर) : यह विश्व में इतनी अधिक ऊँचाई पर स्थित कुछ गांव में से एक है। किब्बर के आस-पास कई छोटी-छोटी घाटियां हैं। विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित गांव ‘गीती’ (4270 मीटर) किब्बर से कुछ ही दूरी पर है। यहां आक्सीजन की कमी में रहना अपने आप में एक आश्चर्य है।
बिजली महादेव मंदिर (2460 मीटर) : कुल्लु से 10 कि.मी. दूर व्यास नदी के किनारे स्थित बिजली महादेव का एक अनोखा मंदिर है। 6 फुट ऊँचा बिजली महादेव का मंदिर धूप में अपनी अनोखी छटा बिखेरता है। सावन माह में प्रतिवर्ष आसमानी बिजली इस शिवलिंग पर गिरती है और यह टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। तदुपरांत पुजारी तथा श्रद्धालु लोग शिवलिंग पर मक्खन के ढेरों के ढेर डाल देते हैं तथा कुछ ही समय उपरांत यह अपनी पूर्व स्थिति में आ जाता है।
नग्गर (1760 मीटर) : व्यास नदी के बाएं किनारे पर स्थित नग्गर अपनी प्राकृतिक छटा के लिए विख्यात है। एक समय यह कुल्लू रियासत की राजधानी हुआ करता था। यहां के प्रमुख आकर्षण हैं विष्णु का मंदिर, त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर, भगवान श्री कृष्ण मंदिर तथा रोरिक कला संग्रहालय जिसमें सुप्रसिद्ध रूसी चित्रकार निकोलस रोरिक की चित्रकलाएं रखी हुई हैं।
मलाना (2652 मीटर) : चन्द्रखेरनी दर्रे से कुछ आगे जिला कुल्लु में मलाना नामक एक गांव अवस्थित है जो अपनी अनोखी सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक प्रथाओं के लिए प्रचलित है। संसार की प्राचीनतम लोकतंत्रीय परम्पराओं का इतिहास हमें मलाना गांव में मिलता है।
जगतसुख: मनाली से 6 कि.मी. दूर व्यास नदी के बांए किनारे पर जगतसुख गांव अवस्थित है। यह स्थल प्राचीन मंदिरों जिनमें प्रमुख हैं- भगवान शिवजी, संध्या गायत्री इत्यादि। प्राचीनकाल में जगत सुख भी कुल्लु रियासत की राजधानी थी।
धर्मशाला (1220 मीटर) : जिला कांगड़ा का मुख्यालय धर्मशाला कांगड़ा के उत्तरपूर्व में 18 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। धर्मशाला स्वच्छता तथा सुनियोजित निर्माण के लिए भी प्रसिद्ध है। सन् 1960 ई. में यहां पर दलाईलामा के आ जाने तथा अपना मकल्योड़ नामक स्थल पर अस्थाई मुख्यालय बनाने के कारण धर्मशाला को “छोटा लहासा” के नाम से भी जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश में सर्वाधिक वर्षा इसी स्थल पर होती है।
पालमपुर ( 1219 मीटर) : कांगड़ा घाटी का एक सुन्दरतम शहर जिसके चारें ओर हरे-भरे पेड़ तथा चाय के बागान हैं। यह स्थान स्वास्थ्य वर्धन की दृष्टि से अति उपयोगी है। पालमपुर में हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय तथा केन्द्रीय वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान केन्द्र (CSIR) स्थित हैं। पालमपुर की होली भी काफी प्रसिद्ध है।
बीड़ बिलिंग : इसकी सबसे पहले 1978 ईस्वी में दिल्ली से आई एक नवयुवती कुमारी दीपक महाजन ने हैंग ग्लाइडिंग और पैरा ग्लाइडिंग के लिए पहचान की थी। इसके बाद इसकी पहचान इज़राइल के एक सैलानी और हिमाचल प्रदेश के वन विभाग के एक पक्ष ने सर्वोत्तम पैराग्लाइडिंग स्थान के रूप में की। 1984 ईस्वी में बिलिंग को एक अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिली जब व्यक्तिगत स्तर पर यहां एक प्रतियोगिता की व्यवस्था की गई। जब फ्रांस से मिस्टर एक्स बोर रेमण्ड ने बीड़ से 130.9 किलोमीटर की उड़ान भरी और विश्व रिकार्ड बनाया। 2002 ईस्वी में राज्य सरकार ने इस शौकिया और साहसिक प्रतियोगिता को प्रोन्नत करने के लिए पूर्व विश्व (Pre-world) कप शुरू किया।
डाडासीबा : जिला कांगड़ा में स्थित है। यह पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम की निवास स्थली थी। सीबा अब पौंग डैम में जलमग्न हो गया है। प्राचीन काल में डाडा को ‘गंधपुर का घटा’ नाम से जाना जाता था। अब गंधपुर डाडासीबा से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। डाडा गांव की स्थापना डाडू राणा द्वारा की गई बताई जाती है और बडवोर गांव बदन सिंह राणा द्वारा (दोनों भाई बलोचिस्तान से आए थे) उन्होंने ‘टांकरी’ और ‘लहड़े’ नामक लिपियों का परिचय भी कराया, ये लिपियां बलोचिस्तान के ‘टाक’ और ‘लैंडीकोटल’ प्रदेशों से सम्बन्ध रखती हैं। ये प्रवासी बलोचिस्तान से सिब्बी गांव में आकर बसे और इन्हें ‘सिवैये’ और बाद में ‘सिपहिए’ कहा गया।
अन्दरेटा : जिला कांगड़ा का यह स्थान कला की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है । अन्द्रेटा में सुप्रसिद्ध चित्रकार सरदार सोभा सिंह तथा नोराह रिचर्ड का घर है। सोभा सिंह कला संग्रहालय भी यहीं पर स्थित है। यहां से धौलाधार का दृश्य अति रमणीय लगता है। चम्बा (1220 मीटर) : राजधानी शिमला से चम्बा शहर 435 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जिला चम्बा का मुख्यालय भी चम्बा शहर ही है। चम्बा शहर की स्थापना -राजा साहिल बर्मन ने अपनी सुपुत्री चम्पावती के नाम पर की थी। जिला चम्बा की प्रमुख जनजातियां – गुज्जर गद्दी तथा पंगवाल हैं।
डलहौजी (2039 मीटर) : इस शहर की स्थापना वाइसराय लार्ड डलहौजी ने की थी। हिमाचल प्रदेश के सुन्दरतम स्थलों में से एक डलहौजी है। डलहौजी से 24 कि.मी. दूर सुप्रसिद्ध स्थल हिमाचल का स्विटजरलैंड खजियार है। गुरुनाथ रविंद्र नाथ टैगोर व नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने डलहौजी की यात्रा की थी तथा कुछ समय के लिए यहां ठहरे भी थे।
पंजपूला : अर्थात पांच पुल (पंज+पुल) यह स्थान डलहौजी जी.पी.ओ. से 2 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। इस स्थल की स्थापना सरदार भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह की समाधि के रूप में की गई है। जिनका स्वर्गवास 15 अगस्त 1947 को इसी स्थान पर हुआ था। डलहौजी से पंजपूला के लिए सड़क का नाम शहीद अजीत सिंह स्मारक मार्ग रखा गया है।
खजियार : पर्यटक डलहौजी घूमने आएं और खजियार न जाएं तो यात्रा अधूरी रहेगी। समुद्रतल से 1890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खजियार पर्यटकों के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार है। देवदार के घने ऊंचे वृक्षों के बीच डेढ़ किलोमीटर लंबा और एक किलोमीटर चौड़ा तश्तरीनुमा हरा-भरा मखमली घास का मैदान और बीच में छोटी सी झील के सौंदर्य को पर्यटक निरनिमेष सा देखता रह जाता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण सात जुलाई, 1992 को स्विट्जरलैंड के राज प्रतिनिधि टी बलेजर ने खजियार को मिनी स्विट्जरलैंड के रूप में नामांकित किया था। खजियार को विश्व का 160वां मिनी स्विट्जरलैंड होने का गौरव प्राप्त है। डलहौजी से खजियार 27 किलोमीटर दूर है। पंडित जवाहर लाल नेहरू को डलहौजी बहुत पसंद था। वह इसे हिमाचल का गुलमर्ग कहते थे। आज के कम्प्यूर व इंटरनेट के युग में भागमभाग भरी जिंदगी से डलहौजी भी अछूता नहीं है। यहां पर पुराना सेक्रेड हार्ट सीनियर सेकेंडरी स्कूल है, वहीं डलहौजी पब्लिक स्कूल,डलहौजी हिल टॉप स्कूल, गुरु नानक पब्लिक स्कूल व केंद्रीय तिब्बती विद्यालय जैसे देश भर में विख्यात शिक्षा की अग्रणी संस्थाएं हैं, जिनके कारण पर्यटन के साथ-साथ यह शहर शिक्षा हब के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। इस शहर से जुड़ी कुछ प्रमुख हस्तियां हैं, दिवगंत विश्व विख्यात पेंटर व कलाकार मनजीत सिंह बाबा, एटलस साइकिल के मालिक कपूर परिवार, फिल्म कलाकार शाहरुख खान, चंद्रचूड़ सिंह, सेना के कई सुप्रसिद्ध सेवानिवृत मेजर, कर्नल, ब्रिगेडियर, अर्पणा नामक समाजसेवी संस्था के संस्थापक इस शहर से जुड़े होने पर गौरवान्वित महसूस करते हैं।
मनीमहेश (4170 मीटर) : मनीमहेश श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक आस्था का स्थान है जहां पर पवित्र झील भी स्थित है। मनीमहेश में एक प्राचीन मंदिर भी है यहां पर हजारों श्रद्धालु पर्यटक प्रतिवर्ष यात्रा पर आते हैं। इस यात्रा का आयोजन जुलाई-अगस्त में किया जाता है।
चिंतपूर्णी (976 मीटर) : चिंतपूर्णी नाम से प्रचलित यह धर्मस्थल ऊना जनपद से 33 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर को भी कांगड़ा में स्थित मां पार्वती के शरीर के भागों से बने प्राचीन शक्तिपीठों में गिना जाता है।
डेरा बाबा भड़भाग सिंह : यह धार्मिक स्थल ऊना से लगभग चार किलो मीटर की दूरी पर है जिसके लिए नहरी-ज्वार मार्ग से जाया जाता है। भड़भाग सिंह छठे सिक्ख गुरू हरगोविंद सिंहके पड़पौत्र बाबा राम सिंह के पुत्र थे। यह स्थल भूत-प्रेतों से पीड़ित रोगियों को आराम दिलाने के लिए प्रसिद्ध है।
दियोट सिद्ध : यह स्थान हमीरपुर तथा बिलासपुर की सीमा पर स्थित है, लेकिन इसे जिला हमीरपुर का ही भाग माना जाता है तथा इसकी दूरी हमीरपुर से 46 कि.मी. है। यहां का सुप्रसिद्ध मंदिर बाबा बालक नाथ का है, जहां श्रद्धालु साल भर आते हैं।
सुजानपुर टीहरा : जिला मुख्यालय हमीरपुर से 25 कि.मी. दूर व्यास नदी के किनारे स्थित यह कस्वा प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर एवम् ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है राजा संसार चंद का महल, गौरीशंकर मंदिर, नर्वदेश्वर मंदिर, मुरली मनोहर मंदिर, चौगान तथा होली मेला यहां के मुख्य आकर्षण हैं। प्रदेश का एक मात्र सैनिक यहीं पर स्थित है। स्कूल
मट्टन सिद्ध : यह स्थल महावीर हनुमान की मूर्ति तथा कुश्ती के लिए प्रसिद्ध है। हमीरपुर से 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित हमीरपुर-शिमला रोड़ पर यह मंदिर अवस्थित हैं तथा हनुमान भक्तों की श्रद्धा का एक अतिसुन्दर केन्द्र भी है।
गोविन्द सागर : जिला बिलासपुर में स्थित गोविन्द सागर झील में नौका भ्रमण बहुत ही आनन्ददायक है। भाखड़ा बांध के कारण बनी इस झील का पहाड़ों के बीच रुका पानी दर्शनीय है। झील का नीला पानी नहरों के रूप में जब खेतों तक पहुंचता है तो नजारा और सुंदर लगने लगता है। इस झील में कई छोटी-छोटी खड़ें भी आकर मिलती हैं। इस झील में उपलब्ध मछलियां, प्रदेश की अर्थव्यवस्था में अपना स्थान रखती है। इसकी लम्बाई लगभग 59 मील या 88 कि.मी. के लगभग है।
स्वारघाट : (ऊंचाई 720 मीटर)। यह शिवालिक पहाड़ियों के मध्य चंडीगढ़- रोपड़ मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। नालागढ़ रियासत के शासकों द्वारा निर्मित यहां पर एक ऐतिहासिक किला है। स्वारघाट से बिलासपुर जाते हुए रास्ते में मलान दुर्ग के अवशेष नजर आते हैं जो कि कई लड़ाइयों का केन्द्र था । यह किला समय-समय पर सिक्खों, गोरखों, अंग्रेजों तथा पहाड़ी शासकों के नियंत्रण में रहा। मलान दुर्ग जिला सोलन में स्थित है।
संग्रहालय : शिमला संग्रहालय, प्रदेश की कला व संस्कृति का एक साक्षात दर्पण है। यहां पर रखी विभिन्न कलाकृतियां विशेषकर, सूक्ष्म कला, पहाड़ी कलम, वास्तुकला तथा लकड़ी पर की गई नक्काशी अपने साथ कलाकारों की महानता संजोए हुए हैं। प्रदेश की वेशभूषा, आभूषण तथा अन्य कृतियां इसे पूरी हिन्दुस्तानी सभ्यता के साथ जोड़ते हैं। यह संग्रहालय मंगलवार से रविवार तक आगंतुकों के लिए खुला रहता है।