हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था

अस्तित्व में आने से पूर्व हिमाचल प्रदेश छोटी-छोटी रियासतों में विभाजित हो गया, जिनमें कोई विकास नहीं था, प्रारंभिक और अनुत्तरदायी शासन और कम साधन थे। शिक्षा का प्रबंध हाई स्कूल तक शून्य था, सिवाय कुछ प्रगतिशील रियासतों में। कई रियासतों के राजाओं ने भी पढ़ा नहीं था। ऐसी परिस्थितियों में इन क्षेत्रों में उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का दोहन होता था, और आम लोगों की हालत भी बदतर थी। उनका सामाजिक विकास तो दूर, वे बेगार और मनमाने “कर” लेकर पीड़ित किए जाते थे। रियासतों का पिछड़ापन स्वाभाविक था क्योंकि उनके पास आर्थिक विकास के लिए कोई विचार या साधन नहीं थे।

हिमाचल प्रदेश का गठन होने और 1952 में लोकप्रिय सरकार का गठन होने पर यहां विकास का काम शुरू हुआ। यहां भी, केंद्रीय सरकार की नीति के अनुसार, पंचवर्षीय योजनाओं को विकास का साधन बनाया गया। प्रदेश में पंचवर्षीय योजनाएं निरंतर लागू की जाती रही हैं। बीच-बीच में वार्षिक कार्यक्रम भी लागू किए गए। इन पंचवर्षीय योजनाओं का लक्ष्य देश भर में अधिक उत्पादन करके नवीनीकरण, आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देकर लोगों को समृद्धि और नवीन जीवन के अवसर देना है। सामुदायिक विकास योजना, 1952, प्रदेश में इस दिशा में पहला कदम था। ‘कुनिहार’ विकास खंड प्रदेश में सामुदायिक विकास योजना का पहला उदाहरण था।

पंचवर्षीय योजनाओं की उत्पत्ति:
1940 और 1950 के दशक में, विश्व भर में अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए नियोजन की कल्पना को सकारात्मक समर्थन मिला।
1944 में, कुछ उद्योगपतियों ने भारत में एक योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था बनाने के लिए ‘बॉम्बे प्लान’ बनाया।
भारतीय स्वतंत्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाओं (FYPs) की एक श्रृंखला की शुरुआत हुई, जो अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता था।
भारत की अर्थव्यवस्था ने पंचवर्षीय योजनाओं का मॉडल अपनाया।

पंचवर्षीय योजना की अवधारणा:

  • पंचवर्षीय योजनाएँ भारत सरकार द्वारा तैयार की जाती हैं, जिसमें अगले पाँच वर्षों के लिए आमदनी और खर्च की योजना होती है।
  • बजट को दो भागों में बाँटा गया है: गैर-योजना बजट और योजना बजट।
  • योजना बजट को योजना द्वारा निर्धारित प्राथमिकताओं के आधार पर पंचवर्षीय आधार पर खर्च किया जाता है।

यह पंचवर्षीय योजनाओं के महत्वपूर्ण पहलुओं को संक्षेपित रूप से प्रस्तुत करता है, जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

योजना योजना अनुमोदित राशि प्राथमिकता (%) विशेषताएँ
पहली पंचवर्षीय योजना

(1951-56)

5.64 करोड़ परिवहन व यातायात (42%)  इसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय संसद में प्रस्तुत किया था।

यह हैरोड डोमर मॉडल पर आधारित था ।

दूसरी पंचवर्षीय योजना

(1956-61)

14.73 करोड़ परिवहन व यातायात (31%) इसकी रूपरेखा तैयार करने और नियोजन का कार्य पी.सी. महालनोबिस के नेतृत्व में किया गया।
तीसरी पंचवर्षीय योजना

(1961-66)

27.93 करोड़ परिवहन व यातायात (30%) योजना अवकाश” (1966-67, 1967-68, और 1968-69) की घोषणा करनी पड़ी। चीन-भारत युद्ध और भारत-पाक युद्ध योजना अवकाश के प्राथमिक कारणों में शामिल थे, जिनके कारण तीसरी पंचवर्षीय योजना विफल हुई थी।

तीसरी पंचवर्षीय योजना (जॉन सैण्डी तथा सुखमय चक्रवर्ती मॉडल पर आधारित)

चौथी पंचवर्षीय योजना

(1969-74)

101 करोड़ परिवहन व यातायात (26%)  इसे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान पेश किया गया था।

इस प्लानिंग योजना आयोग के उपाध्यक्ष डी.पी गाडगिल ।

सरकार ने 14 प्रमुख भारतीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था ।

चौथी पंचवर्षीय योजना (अशोक रूद्र व ए० एस० मान्ने मॉडल पर आधारित)

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना

          (1974-78)

238 करोड़ जल विद्युत विकास (25%) भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्रणाली की शुरुआत की गई थी।

वर्ष 1978 में नवनिर्वाचित मोरारजी देसाई सरकार ने इस योजना को खारिज कर दिया।

रोलिंग प्लान (1978-80)

जनता पार्टी सरकार ने पाँचवीं पंचवर्षीय योजना को खारिज कर दिया और एक नई छठी पंचवर्षीय योजना प्रस्तुत पेश की। बदले में वर्ष 1980 में इंदिरा गांधी के फिर से प्रधानमंत्री चुने जाने पर भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस द्वारा इसे खारिज कर दिया गया था।

पांचवी पंचवर्षीय योजना (डी.पी. धर मॉडल पर आधारित)

छठी पंचवर्षीय योजना         (1980-85) 655 करोड़ जल विद्युत विकास   इसे नेहरूवादी समाजवाद (Nehruvian Socialism) के अंत के रूप में देखा गया।

जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिये, परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया गया।

शिवरमन समिति की सिफारिश पर, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक – नाबार्ड (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD)की स्थापना की गई।

सातवीं पंचवर्षीय योजना        (1985-90) 1339 करोड़ सामाजिक एवं सामुदायिक सेवाएँ  यह योजना प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान प्रस्तुत की गई।

सातवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत 3 योजनाएं सरकार द्वारा लागू की गयी,

इंदिरा आवास योजना (1985-1986)

जवाहर रोजगार योजना (1989)

नेहरू रोजगार योजना (1989)

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना

(2007-2012)

13778 करोड़ सामाजिक सेवाएँ ग्यारहवीं योजना उच्च शिक्षा में नामांकन बढ़ाने और दूरस्थ शिक्षा के साथ-साथ आईटी संस्थानों पर ध्यान केंद्रित करने के अपने उद्देश्य के साथ बहुत महत्त्वपूर्ण थी। वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम प्रस्तुत किया गया जो कि वर्ष 2010 में लागू हुआ, इसने 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये शिक्षा को निशुल्क और अनिवार्य कर दिया।

इसकी रूपरेखा सी. रंगराजन ने तैयार की थी।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना

(2012-2017)

22800 करोड़ आर्थिक सेवाएँ   इस योजना की विषयवस्तु “तीव्र, अधिक समावेशी और धारणीय विकास” (Faster, More Inclusive and Sustainable Growth) थी।

इसके अलावा, हर साल 1 मिलियन हेक्टेयर तक हरित क्षेत्र को बढ़ाना और गैर-कृषि क्षेत्र में नए अवसर सृजित करना भी इसके उद्देश्यों में शामिल था।

 

अन्य स्वीकृत परियोजनाएं

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