“हिमाचल प्रदेश में मिट्टी की किस्में”

किसी क्षेत्र की मिट्टी की कि में उसकी समुद्रतल से ऊंचाई, जलवायु और स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग ने हिमाचल प्रदेश को मिट्टी की किस्मों की दृष्टि से निम्न पांच खंडों में बांटा है :

1. निम्न पहाड़ी मिट्टी खण्ड : इस खण्ड में मिट्टी की परत अधिक गहरी नहीं है। यहां मिट्टी के साथ छोटे-छोटे पत्थर पाए जाते हैं। इसमें कार्बन नाइट्रोजन 10: 1 क मात्रा में पायी जाती है। यह मिट्टी धान, गन्दम, मक्की की पैदावार के लिए और किसी सीमा तक गन्ना और अदरक की पैदावार के लिए उपयुक्त है। इसमें नींबू प्रजाति के फलों और आम के बगीचे लगाए जा सकते हैं।

2. मध्य पहाड़ी मिट्टी खंड : इस खंड की मिट्टी संमृदा रेत, साद और मिट्टी के मिश्रण वाली यानि हल्के स्लेटी भूरे रंग की है। इसमें कार्बन नाइट्रोजन 10: 12 के अनुपात में पाए जाते हैं। यह मिट्टी मक्का और आलू की पैदावार के लिए उपयोगी है। इसमें अष्ठि-फलों के बगीचे उगाए जा सकते हैं।

3. उच्च पहाड़ी खंड : इस खण्ड में मिट्टी की परत गहरी है। मिट्टी का रंग गहरा भूरा है। इसमें कार्बन तत्व पर्याप्त मात्रा में हैं। नाइट्रोजन की मात्रा भी मध्य स्तरीय से उच्च है। पोटाश की मात्रा मध्य स्तरीय है। यह मिट्टी बीज के आलू पैदा करने और कोष्ण फलों के बगीचे लगाने के लिए उपयुक्त है।

4. पर्वतीय मिट्टी खंड : यह खंड समुद्रतल से 2100 मीटर से 3500 मीटर तक ऊंचाई वाले क्षेत्रों का है जिसमें शिमला और सिरमौर तथा चम्बा के ऊपरी भाग के क्षेत्र आते हैं। यह क्षेत्र पैदावार के लिहाज से उपयुक्त नहीं है। मिट्टी की परत भी अपेक्षाकृत कम गहरी है। मिट्टी का रंग गहरा भूरा और हल्का है।

5. शुष्क पहाड़ी खंड : यह समुद्रतल से प्रायः 2500 मीटर से ऊपर की ऊंचाई का क्षेत्र है जिसमें किन्नौर, पांगी और लाहौल स्पिति के क्षेत्र आते हैं ये क्षेत्र शुष्क फलों की पैदावार के लिए उपयोगी है। नदी की घाटियों में कहीं-कहीं अन्य चीजें भी पैदा की जा सकती हैं। लाहौल की भूमि बीज के आलू पैदा करने के लिए उपयोगी है।

हिमाचल प्रदेश के हिमनद

कई बड़े हिमनद प्रदेश की नदियों को जीवन देते हैं नदियों को ग्लेशियरों से कितना पानी मिलता है, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है ‘बड़ा शिगड़ी’ प्रदेश का सबसे बड़ा ग्लेशियर है, पूरे वर्ष बर्फ इस पर रहती है. इसके अलावा, प्रकृति की खूबसूरती का अनमोल रत्न, भादल ग्लेशियर, लेडी ऑफ केलाँग, ब्यास कुंड और चंद्रा ग्लेशियर कई नदियों को जीवन देते हैं हिमाचल प्रदेश में निम्नलिखित प्रमुख हिमनद हैं:

(1) लाहौल का बड़ा शिगड़ी हिमनद: यह हिमनद चन्द्रा नदी को पानी देता है. यह हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा हिमनद है, जो 25 किलोमीटर लंबा है और 3 किलोमीटर चौड़ा है. यह मध्य मुख्य हिमालय की ढलान पर है. इस ग्लेशियर को छोटे-छोटे अन्य ग्लेशियर सिंचित करते हैं. बड़ा शिगड़ी ग्लेशियर का पूरा हिस्सा बंजर है और इसमें कोई प्राकृतिक उपज नहीं है. माना जाता है कि वर्ष 1936 में एक ग्लेशियर ने चंद्रा घाटी को बुरी तरह से नष्ट कर दिया, जिससे बाद में चंद्रताल झील बनाई गई.

चंद्रा घाटी के लाहौल क्षेत्र में अन्य महत्वपूर्ण ग्लेशियर हैं छोटा शिगड़ी, पाचा, कुल्टी, शिपतिंग, दिंगकर्मी, तापन, गेफेंग, शिल्ली, बोलुनाग और शामुद्री. गेफेंग ग्लेशियर लाहौल घाटी के प्रसिद्ध देवता गेफेंग पर नामित है. जिनके लिए भी एक मंदिर है। गेफेंग चोटी स्वीटजरलैंड की मैटरहौरन चोटी से मिलती है, जो पूरे वर्ष बर्फ से ढकी रहती है.

(2) भादल हिमनद (BHADAL GLACIER): यह ग्लेशियर पीरपंजाल श्रृंखला की दक्षिण-पश्चिमी ढलान पर बड़ाभंगाल क्षेत्र, जिला कांगड़ा में है. यह ग्लेशियर भादल नदी को सिंचित करता है. इस ग्लेशियर का धरातल बड़े-बड़े चट्टानों और हिमनद क्षेत्रों से घिरा हुआ है. यह ग्लेशियर शरद ऋतु में भारी हिमपात से बड़ा होता है, लेकिन ग्रीष्म ऋतु में चरवाहे आसानी से यहां तक पहुंच सकते हैं.

(3)चंद्रा हिमनद: यह ग्लेशियर मुख्य हिमालय पर जो जिला लाहौल स्पिति में है। इस हिमनद से चंद्रताल झील का निर्माण हुआ, सम्भवतः “बड़ा शिगड़ी” ग्लेशियर से अलग हुआ है। चिनाब नदी चंद्रा और भागा नदियों से बनती है

(4) भागा हिमनद (भागा ग्लेशियर): यह ग्लेशियर भी लाहौल स्पिति में मुख्य हिमालय की ढलान पर है. भागा नदी इस हिमनद से निकलती है. इस ग्लेशियर के आसपास बर्फ की ऊंची-ऊंची चोटियाँ हैं. यहाँ तक पहुंचने के लिए दो मार्ग हैं: “कोक्सर” और “तांडी”, यह 25 किलोमीटर लंबा है. प्रत्तन घाटी में शिल्पा, कुक्टी, लेंगर धोकसा और तीलकण्ड भी ग्लेशियर हैं. मिलांग, मुक्किला, लेडी ऑफ केलांग और गेंगस्तांग भागा घाटी के प्रमुख ग्लेशिर हैं.

(5) चंद्रनाहन हिमनद:- चंद्रनाहन ग्लेशियर जिला शिमला के रोहड़ क्षेत्र के उत्तर-पश्चिम में मुख्य हिमालय के दक्षिण पूर्व की ढलान में स्थित है। ग्लेशियर से पब्बर नदी सिंचित होती है. चंन्द्रनाहन ग्लेशियर कई अन्य छोटे-छोटे ग्लेशियरों से जुड़ा हुआ है. चंन्द्रनाहन झील इस ग्लेशियर के निकट है. इस ग्लेशियर के चारों ओर 6000 मीटर से अधिक ऊंची बर्फ से ढकी हुई चोटियां हैं.

(6) केलांग की महिला (The Lady of Keylong Gladier) हिमनद: यह ग्लेशियर 6061 मीटर की ऊंचाई पर है और केलॉग कस्बे से आसानी से दिखाई देता है. ग्लेशियर पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय है. लगभग सौ वर्ष पूर्व, 19वीं शताब्दी में, अंग्रेजी शासन के दौरान, इसे “द लेडी ऑफ केलाँग” नाम दिया गया था. साल भर यह ग्लेशियर बर्फ से ढका रहता है. कुछ बर्फ पिघलने पर इसकी आकृति एक महिला की तरह दिखती है, जो अपनी पीठ पर भार उठाती है. यह भी भारतीय भू-सर्वेक्षण संस्थान में “लेडी ऑफ कलॉग” नाम से पंजीकृत है.

(7) गोरा हिमनद (GORA GLACER): यह ग्लेशियर हिमाचल प्रदेश के मुख्य हिमालय की दक्षिणी मुख्य ढलान पर है. यह ग्लेशियर भारी जनसंख्या दबाव और बदलते पर्यावरण के कारण काफी सिकुड़ गया है.

(8) मुक्किला हिमनद (MUKILA GLACIER): 6478 मीटर की ऊंचाई पर यह ग्लेशियर भागा घाटी में है.

(9) सोनापानी हिमनद (SONAPANI GLACIER): यह ग्लेशियर कुल्टी नाला के संगम से लगभग 5.30 किलोमीटर दूर है,

(10) दुधोन और पार्वती हिमनद (Dudhon and Parbati Glace): दुधोन और पार्वती ग्लेशियर पार्वती नदी को पानी देते हैं. यह कुल्लू घाटी में है. 15 किलोमीटर की लम्बाई.

(11) पिराड़ हिमनद (PERAD GLACIER): पुतिरूणी के समीप स्थित पिराड़ हिमनद एक छोटा सा है. स्थानीय लोग पिराड़ को टूटी हुई चट्टान कहते हैं, जिसमें एक सुंदर गुफा है.

(12) मियार हिमनद (MIYAR GLACIER): मियार नदी को मियार हिमनद से पानी मिलता है. देता है. इसकी लम्बाई लगभग बारह किलोमीटर है. लाहौल घाटी में यह है.

(13) ब्यास कुण्ड हिमनद (BEAS KUND GLACIER): यह ग्लेशियर ब्यास नदी को जल प्रदान करता है और विश्व प्रसिद्ध रोहतांग दर्रे के समीप पीरपंजाल श्रृंखला की दक्षिणी ढलान पर है.

“हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध सेतु (पुल)”

 

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