अन्य स्वीकृत परियोजनाएं

गज-परियोजना: यह कांगड़ा जिले में शाहपुर के निकट स्थित “गज” और “ल्योणा” खड्डों के पानी से बनाया गया है। जिससे 10.5 मैगावाट विद्युत उत्पादन होगा। बिठड़ी गांव के पास गज खड्ड के किनारे पावर हाउस बनाया गया है। 1991 अक्टूबर में परियोजना की कीमत 40.00 करोड़ रुपये थी। इस परियोजना का शुभारंभ जून 1996 में हुआ था।

बनेर परियोजना: यह परियोजना धर्मशाला से 25 किलोमीटर की दूरी पर खड्ड के पानी से पूरी की गई है। 12 मेगावाट बिजली इससे उत्पादित होगी। 46.54 करोड़ रुपये इस पर खर्च हुए हैं। यह परियोजना मई 1996 में शुरू हुई।
थरोट-परियोजना: यह परियोजना लहौल-स्पित्ति जिले की लहौल घाटी में समुद्रतल से 2970 मीटर की ऊंचाई पर थरोट नाले के पानी से शुरू होगी। 4.5 मैगावाट बिजली इससे उत्पादित होगी। इस पर लगभग ३४ करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।

लारजी हाइडल प्रोजेक्ट: यह परियोजना कुल्लू जिले में भुन्तर से थोड़ा दूर लारजी नामक स्थान पर “व्यास” नदी के पानी से पूरी होगी। पानी को 15 किलोमीटर लम्बी और 8.5 मीटर व्यास वाली सुरंग से ले जाकर बांध 45.3 मीटर ऊंचा होगा। 126 मैगावाट बिजली इससे उत्पादित होगी। इस परियोजना पर लगभग 355 करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है।

कोल डेम परियोजना: राकफिल डैम को सतलुज नदी पर डैहर से 6 किलोमीटर ऊपर कोल नामक स्थान पर 163 मीटर ऊंचा बनाया जा रहा है। 1.1 किलोमीटर लम्बी और 11.7 मीटर व्यास वाली सुरंग से सतलुज नदी का पानी बाएं किनारे विद्युत भवन में गिराया जाएगा। इस परियोजना पर लगभग 1565 करोड़ रुपये खर्च होंगे और 800 मैगावाट बिजली उत्पादित की जाएगी। इस परियोजना के निर्माण से भाखड़ा को बांध की मिट्टी से भरने से कुछ सुरक्षा मिलेगी। इससे भांखड़ा बांध की आयु कम से कम दस साल बढ़ेगी।

नाथपा झाखड़ी परियोजनाः 1500 मैगावाट बिजली उत्पादन करने वाली यह राज्य की सबसे बड़ी विद्युत परियोजना है। इस परियोजना पर लगभग छह हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। राज्य और केन्द सरकार ने विश्व बैंक की सहायता से इसे लागू किया है। नाथपा-झाकड़ी परियोजना निगम (NJPC) एक स्वतंत्र निगम है जो इसका कार्यान्वयन करता है। इस परियोजना में पिक-अप डैम (वांगतु से 3.8 किलोमीटर नीचे, किन्नौर के नाथपा नामक स्थान पर) और 27.7 किलोमीटर लम्बी सुरंग (झाखड़ी में 488 मीटर शीर्ष से) बनाया गया है. भूमिगत पावर हाउस। विश्व बैंक ने इस परियोजना को 437 मिलियन डालर का ऋण दिया।

कड़छम-वांगतु कार्यक्रम परियोजना: इस परियोजना में कड़छम के पास स्थित ‘सतलुज’ के पानी को मोड़कर 15.5 किलोमीटर लंबी सुरंग से ले जाया गया है, फिर 280 मीटर ऊपर से वांगतु (किन्नौर में) के पास स्थित भूमिगत पावर हाउस में गिराया गया है, जहां 1000 मैगावाट बिजली उत्पादित की गई है। 6930/- करोड़ रुपये इस योजना पर खर्च हुए हैं। 2011 से इस परियोजना का प्रारंभ हुआ है। JP Industries ने इस परियोजना को सितंबर 2002 में समझौता किया था।

घानवी परियोजना: ज्योरी के पास सतलुज नदी से मिलने वाली बानवी खड्ड के पानी से यह परियोजना चालू की जाएगी, जिससे 22.5 मैगावाट बिजली पैदा होगी और 115 करोड़ रुपये खर्च होंगे। जुलाई 1987 में, केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण ने इस परियोजना को मंजूरी दी। पावर वित्त निगम नई दिल्ली से 6,156 लाख रूपये का ऋण बन्धन तथा राज्य योजना से बाकी राशि दी जाएगी।

बास्या हाइडल प्रोजेक्ट: सतलुज की सहायक नदी बास्पा के पानी से यह परियोजना दो चरणों में पूरी की गई है, जिससे 300 मैगावाट बिजली उत्पादित की जा सकेगी और 600 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान था। इसका कार्यान्वयन निजी क्षेत्र को दिया गया है। मैसर्ज जयप्रकाश इंडस्ट्रीज ने इसे बनाया। इस परियोजना पर 1991 में समझौता हुआ था, और 2003 में पहली और दूसरी इकाइयों ने काम शुरू किया था।

धमुवाड़ी-सुंडा प्रोजेक्ट: शिमला जिले की पब्बर नदी का पानी इसका उपयोग करेगा। यह 70 मैगावाट बिजली उत्पादित करेगा और 150 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसका कार्यान्वयन निजी क्षेत्र को दिया गया है।

चमेरा हाइडल प्रोजेक्ट: चमेरा हाइडल परियोजना, जो दो चरणों में पूरी की जाएगी, चम्बा में रख नामक गांव के पास रावी नदी पर बांध बनाया गया है। इसमें हिमाचल प्रदेश भी शामिल होगा। 22 किलोमीटर सुरंग से पानी गिराकर 411 मीटर की ऊंचाई से इस परियोजना से 400 मैगावाट बिजली बनाई जाएगी।

पार्वती हाइडल परियोजना: कुल्लू की पार्वती नदी के पानी से यह परियोजना चल रही है। इस परियोजना को दो चरणों में पूरा किया जाएगा और इससे 2000 मैगावाट बिजली उत्पादित की जा सकेगी। यह निजी क्षेत्र में भी उपलब्ध है। इसके अलावा, अगस्त 1993 में उपरोक्त धमुबाड़ी सुंडा व कड़छम वांगतु के साथ कुल्लू में मलाण-नाला हाइडल परियोजना (50 मैगावाट), आलन हाइडल परियोजना (25 मैगावाट), न्योगल हाइडल परियोजना (6 मैगावाट), हिब्रा आदि छोटी-छोटी परियोजनाएं निजी क्षेत्र में दी गई हैं। साथ ही, राज्य सरकार ने छोटी-छोटी परियोजनाओं (माईक्रो मिनी प्रोजेक्ट्स) को लागू करने का प्रस्ताव दिया है जो दूर-दराज के इलाकों में चलाई जाएंगी ताकि स्थानीय बिजली की जरूरतें पूरी की जा सकें।

ग्रामीण विद्युतीकरण: सरकार ने सातवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक हिमाचल प्रदेश के सभी 16916 गांवों को बिजली देने का लक्ष्य रखा था। अब तक सभी आबाद गांवों में बिजली दी गई है। इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड पम्पिंग सैटों को जल्दी बिजली देने और परियोजनाओं से दूसरे स्थानों तक बिजली-प्रेषण की लाइनें बिछाने का काम कर रहा है।

 

हिमाचल के आर्थिक विकास और भविष्य की संभावना

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