जल विद्युत परियोजनाएं-I

विद्युत आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण निवेश है। लोगों के रहन-सहन के स्तर में सुधार हुआ है, जो राजस्व उत्पादन और रोजगार के अवसरों में महत्वपूर्ण योगदान देता है। Himachal Pradesh विस्तरित जल विद्युत परियोजना से सम्मानित है। प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार राज्य की जलविद्युत क्षमता 20,416 मैगावाट है। लेकिन अब यह लगभग 25000 मैगावाट है। प्रदेश सरकार ने बहुमुखी विद्युत उत्पादन योजना लागू की है। इसमें निजी क्षेत्र, राज्य क्षेत्र, केन्द्रीय क्षेत्र और संयुक्त क्षेत्र शामिल हैं, जिसमें विद्युत उत्पादन का मुख्य लक्ष्य है। हिमाचल प्रदेश में निजी क्षेत्र ने पिछले कुछ वर्षों में विद्युत परियोजनाओं में विशेष रुचि दिखाई है।

हजारों किलोमीटर लंबी पांच मुख्य नदियों और उनकी सहायक नदियों से जल-विद्युत उत्पन्न करके राज्य ही नहीं बल्कि पूरे देश के आर्थिक ढांचे को बदल सकता है। देश में ऊर्जा का मुख्य स्रोत जल-विद्युत, परमाणु विद्युत और ऊष्म-विद्युत है। जल विद्युत इनका मुख्य स्त्रोत है।जल विद्युत एक महंगा और निरंतर साधन है। इसकी औसत लागत लगभग बारह पैसे प्रति युनिट है। हिमाचल प्रदेश की नदियों का रास्ता पहाड़ी है, इसलिए मुख्य, मध्यम और लघु जलविद्युत परियोजनाएं बनाकर जलविद्युत उत्पादन किया जा सकता है।हिमाचल प्रदेश की नदियों और घाटियों में विद्युत उत्पादन और दोहन क्षमता निम्नलिखित है:-

नदी घाटी विद्युत-उत्पत्ति क्षमता दोहन की जा चुकी

 

क्षमता

1.       यमुना 959.72 मैगावाट 414 मैगावाट
2.       सतलुज 9359.25 मैगावाट 1169.75 मैगावाट
3.       व्यास 4258.70 मैगावाट 1520 मैगावाट
4.       रावी 2185.52 मैगावाट 180.17 मैगावाट
5.       चिनाव 3301.30 मैगावाट 0.50 मैगावाट
कुल 20064.49 मैगावाट 3935.74मैगावाट

विद्युत-क्षमता के क्षेत्र में अभी कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया है जो छोटी-छोटी परियोजनाओं को शामिल करेगा। कुल मिलाकर, क्षेत्र की नदियों की विद्युत क्षमता इससे अधिक होने की संभावना है।

हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड सब कुछ नियंत्रित करता है। प्रमुख परियोजनाओं को जल्दी पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र में योजनाओं को प्रदान करने का प्रस्ताव है। दोहित विद्युत में हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड के पास केवल 467 मैगावाट है। शेष अन्य राज्यों और केन्द्र सरकार के पास है। 2008 तक, केंद्रीय क्षेत्र ने 3991 मैगावाट, संयुक्त क्षेत्र ने 1500 मैगावाट, निजी क्षेत्र ने 402 मैगावाट और हिम ऊर्जा ने 59 मैगावाट का उत्पादन किया था।

हिमाचल प्रदेश पॉवर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड

हिमाचल प्रदेश पॉवर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटिड, एक सरकारी संस्था, 27 अगस्त 2008 को गठित किया गया था. इसका उद्देश्य प्रदेश की संचार व्यवस्था को मजबूत करना था और जल विद्युत परियोजनाओं को विद्युत संचार की सुविधा देना था।

हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कापरिशन को सौंपे गए कार्यों में मुख्यतः विद्युत वोल्टेज में सुधार, वर्तमान संचार ढांचे को सम्बर्धित करने और मजबूती देने, प्रदेश में बनने वाली सभी नई 66 केवी से ऊपर की लाईनों व विद्युत उपकेन्द्रों का निर्माण करना और प्रदेश के मास्टर संचार पलान को लागू करना शामिल है। इसके अतिरिक्त निगम को एक स्टेट ट्रांसमिशन यूटीलिटी का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है जिसके अन्तर्गत संचार से जुड़े सभी मुद्दों पर सैन्ट्रल ट्रांसमिशन यूटीलिटी, केन्द्रीय बिजली प्राधिकरण, केन्द्रीय व राज्य के ऊर्जा मंत्रालयों तथा हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड से समन्वय रखने के अतिरिक्त निजी, केन्द्र व राज्य क्षेत्र के विद्युत उत्पादक इकाईयों के लिए संचार से जुड़ी योजना बनाना भी सम्मिलित है।

राज्य विद्युत नीति

हिमाचल प्रदेश की जलविद्युत नीति में निम्नलिखित विशेषताएं हैं:

• दो मैगावाट से अधिक की परियोजनाओं में हिमाचलियों को प्राथमिकता दी जाएगी, और दो से पांच मैगावाट तक की परियोजनाओं में हिमाचलियों को प्राथमिकता दी जाएगी।

• 5 मैगावाट से अधिक की परियोजनाओं को स्वतंत्र रूप से बिजली उत्पादन करने वाले को विदेशी बोली में प्रतिस्पर्धा के आधार पर प्रदान किया जाएगा।

• परियोजना के लिए 20 लाख रुपये प्रति मैगावाट क्षमता के लिए बोलीदाता को प्रस्ताव देना होगा। उक्त बोली दाता ने हिमाचल प्रदेश को बिना किसी व्यवधान के अतिरिक्त मुफ्त बिजली देने के लिए तीन समय सीमा निर्धारित की है: 12, 18 और 30प्रतिशत बिजली रायल्टी चार्जिज के लिए, जब से वाणिज्यिक उत्पादन शुरू हुआ है।

• हिमाचल प्रदेश सरकार को पहले मुफ्त बिजली, अतिरिक्त मुफ्त बिजली और बिजली बेचने का अधिकार होगा। हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग बिजली दरों का निर्धारण करेगा।

• चयनित आधार पर हिमाचल प्रदेश सरकार की उपरोक्त परियोजनाओं में 49 प्रतिशत इक्विटी भागीदारी रहेगी।

• परियोजनाओं का कार्यकाल चालिस वर्षों तक होगा, जो वाणिज्यिक रूप से उत्पादन शुरू होने से शुरू होगा। उसके बाद राज्य सरकार को परियोजनाएं बिना किसी कीमत के देनी पड़ेगी।

• हिमाचल प्रदेश में परियोजनाओं में 70 प्रतिशत लोगों को रोजगार देना अनिवार्य होगा।

• स्थानीय विकास के लिए परियोजना लगाने वाले को परियोजना लागत का 1.5 प्रतिशत देना होगा।

• जल स्त्रोत से 15 प्रतिशत पानी के बहाव को स्थानीय लोगों, जल जीवों और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सुनिश्चित करना।

• हिमाचल प्रदेश सरकार स्थानीय जल विद्युत परियोजनाओं से बिजली बनाने की व्यवस्था करेगी। 25 मैगावाट तक की क्षमता वाली परियोजनाओं का उत्पादन हिमाचल प्रदेश सरकार को मिलेगा।

पूर्ण परियोजनाएं: हिमाचल प्रदेश विद्युत बोर्ड के नियंत्रण में गिरी परियोजना सिरमौर (60 मैगावाट), नोगली परियोजना शिमला (2.5 मैगावाट), ऊहल स्टेज-1 (60 मैगावाट), भरमौर पावर हाउस (0.20 मैगावाट), बिलिंग पावर हाउस (0.20 मैगावाट), शान्सा पावर हाउस (0.20 मैगावाट), सिस्सु पावर हाउस (0.10 मैगावाट) व बस्सी पावर हाउस (15 मैगावाट) आदि हैं। Angra परियोजना भी शुरू हो गई है। इसके अलावा, मध्यम और लघु परियोजनाओं का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:

भाबा या संजय विद्युत परियोजना: किन्नौर जिले के हुरी गावं में भाबा खड्ड परियोजना का कार्यान्वयन हुआ है। इसमें तीन इकाइयाँ हैं। प्रत्येक से 40 मैगावाट से 120 मैगावाट बिजली उत्पादित होती है। 125.22 करोड़ रुपये इस पर खर्च हुए हैं। इस परियोजना में भाबा खड्ड के पानी को 5.7 किलोमीटर लम्बी, 2.5 मीटर व्यास वाली सुरंग से ले जाया गया है. इसके बाद, पानी को 4.5 मीटर व्यास वाली सर्जशाफ्ट में डालकर, 1410 मीटर लम्बी लोहे की शाफ्ट से बनी 1.5 मीटर व्यास की तीन शाखाओं में डालकर भूमिगत पावर हाउस में डाला गया है। यह योजना अब पूरी हो चुकी है।

Andhra Hydel Project: यह परियोजना शिमला जिले के रोहडू उपमंडल की चंड़गांव तहसील में आंध्रा गांव में विकसित की गई है, जो चड़गांव के निकट है। 50,000 क्यूबिक मीटर क्षमता का जलाशय बनाया गया है, जिससे पानी दो जलाशयों से जुड़े हुए 6.65 किलोमीटर लम्बी सुरंग के तीन टुकड़ों द्वारा ले जाकर 8 मीटर लम्बी व्यास वाली सर्जशाफ्ट में डालकर पावर हाउस में ले जाया गया है, जिसमें प्रत्येक 5.65 मैगावाट की तीन इकाइयां हैं। परियोजना पर लगभग 47.6 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, जिसकी कुल 16.95 मैगावाट बिजली उत्पादन क्षमता है।

रौंग-टाँग हाइडल परियोजना : लहौल-स्पिति में स्पिति नदी के सहायक रौंग-टाँग नाले के पानी से बिजली बनाने का लक्ष्य इस परियोजना का है। 3.1 किलोमीटर लम्बी सुरंग में ढकी हुई चैनल से राँग-सँग नाले का पानी काजा के नजदीक पावर हाउस में डाला गया है। इससे दो मेगावाट बिजली उत्पादित होती है। दिसंबर 1986 से इसकी शुरुआत हुई है। यह योजना समुद्रतल से 3660 मीटर की ऊंचाई पर बनाई गई है और चार महीनों के अतिरिक्त हर साल बर्फ से ढका रहता है।

विनवा हाइडल परियोजना: कांगड़ा जिले में बानु और परई खड्डों के पानी से यह परियोजना पूरी की गई है। इसमें छह मैगावाट की क्षमता है। 12.82 करोड़ रुपये इस पर खर्च हुए हैं।

अन्य स्वीकृत परियोजनाएं

 

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