“हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध सेतु (पुल)”

हिमाचल प्रदेश में कई नदियों पर महत्वपूर्ण पुल बनाए गए हैं जो यातायात को आसान बनाते हैं. इनमें से सबसे प्रसिद्ध पुल सतलुज पर हैं:

1. कन्दौर (बिलासपुर हमीरपुर सड़क पर राष्ट्रीय उच्च मार्ग 88): यह पुल बिलासपुर और घुमारवीं को जोड़ता है और बिलासपुर और हमीरपुर को जोड़ता है। इस पुल का निर्माण कार्य सन् 1959 में शुरू हुआ तथा 1964 में पूर्ण हुआ था। इंजीनियरिंग के श्रेष्ठ एवं शानदार नमूने इस पुल के सहायक स्तंभ बीच से खोखले हैं। राष्ट्रीय उच्च मार्ग 88 पर बने कंदरौर पुल की लंबाई 280 मीटर, चौड़ाई सात मीटर और ऊंचाई 80 मीटर है। ऊंचाई के हिसाब से कंदरौर पुल एशिया के सबसे उचे पुल के रूप में गणना की जाती रही, लेकिन अब वर्ष 2016 में पुल से यह दर्जा छीन लिया गया है। चीन की सिदु नदी पुल 1627 फुट की ऊंचाई के साथ वर्ष 2009 से एशिया ही नहीं, अपितु दुनिया का सबसे ऊंचा पुल बन गया है। खेड़ी नाला पुल की ऊंचाई 115 मीटर के करीब और लंबाई 55 मीटर के करीब है। निस्संदेह कंदरौर पुल एशिया के सबसे ऊंचे पुल का दर्जा खो चुका है, लेकिन भारत के सात प्रसिद्ध और आशचर्यजनक पुलों-विद्यासागर सेतु, पामबन रेलवे पुल, चिनाब मुख्य पुल, कंदरौर पुल, बांद्रा-वर्ली मुख्य पुल, जुब्बली पुल (कॅटीलीवर पुल) और गोदावरी मुख्य पुल में इसकी गिनती की जाती है। कंदरौर पुल, बिलासपुर जिला के ऐसे स्थान पर है, जहां से श्री नयना देवी जी मंदिर, गोविंदसागर झील, लक्ष्मी नारायण मंदिर, रूकमणि कुंड, कोल डैम, गोविंद सागर वन्य जीव अभ्यारण्य दयोली मत्स्य उत्पादन केंद्र, बच्छरेटु किला, त्यूण किला, सरयूण किला, कोटकहलूर किला, बहादुरपुर किला, जालपा माता संगिरठी मंदिर, मार्कडेय जी मंदिर, भाखड़ा डैम, व्यास गुफा, भ्याणु पीर मंदिर, औहर ठाकुरद्वारा, गुग्गा मंदिर गेहड़ी, बड़ोली देवी मंदिर, बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध आदि प्रसिद्ध एवं धार्मिक स्थलों पर सुगमता से पहुंचा जा सकता है।

2. गंभर (बिलासपुर-कीरतपुर सड़क पर जिला बिलासपुर में ) ।

3. तत्तापानी (शिमला-करसोग सड़क पर शिमला और मण्डी जिलों की सीमा पर)।

4. लूहरी (शिमला आन्नी सड़क पर शिमला- कुल्लू की सीमा पर)।

5. वांगतु (शिमला-कल्पा यानी हिन्दुस्तान-तिब्बत सड़क पर बांग पनि जिला किन्नौर में)

6. सलापड़ (मण्डी – रोपड़ सड़क पर सलापड़ नामक स्थान पर मण्डी और बिलासपुर की सीमा पर)।

ब्यास नदी पर प्रसिद्ध पुल हैं:

(1) पण्डोह (मण्डी कुल्लू सड़क पर पण्डोह यानि मण्डी जिले में), (2) मण्डी (मण्डी-जोगिंदरनगर सड़क पर मण्डी शहर में), (3) नादौन (हमीरपुर-धर्मशाला सड़क पर नादौन के पास हमीरपुर और कांगड़ा जिले की सीमा पर ) (4) देहरा- गोपीपुर (धर्मशाला-होशियारपुर सड़क पर देहरा- गोपीपुर में कांगड़ा जिले में), (5) चक्की (धर्मशाला-पठानकोट सड़क पर पंजाब कांगड़ा की सीमा पर)।

रावी नदी पर प्रसिद्ध पुल हैं: चम्बा (चम्बा-पठानकोट सड़क पर चम्बा के पास), राख (चम्बा – भरमौर सड़क पर राख के पास चम्बा में), खड़ामुख (भरमौर सड़क पर खड़ामुख- चम्बा में)।

यमुना नदी पर हिमाचल प्रदेश में प्रसिद्ध पुल हैं: नाहन-देहरादून सड़क पर यमुना की सहायक नदी गिरी पर राजधन- जगाधरी सड़क पर ‘स्तौन का पुल’ है। ऊना-होशियारपुर सड़क पर ऊना के ‘झलैड़ा’ के पास और ‘संतोषगढ़’ के पास स्वां खड्ड पर बने पुल भी प्रसिद्ध हैं। अन्य खड्डों और नदियों पर असंख्य पुल बने हैं जिन सब का वर्णन यहाँ संभव नहीं।

तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा की हिमाचल में मौजूदगी ने प्रदेश को ‘लैंड ऑफ बुद्धा’ की पदवी दिलवा दी है। हिमाचल प्रदेश के खाते में यह सम्मान सिंगापुर में आयोजित हुए ‘आईटीबी एशिया-2014’ में दर्ज हुआ। इस समारोह में हिमाचल को यह सम्मान उस समय उपलब्ध हुआ, जब एक्सप्रेस ट्रैवल वर्ल्ड ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर ‘दि लैंड ऑफ बुद्धा’ नाम की कॉफी टेबल बुक का लोकार्पण किया। इस पुस्तक में भारत के उन 13 राज्यों का वर्णन किया गया है, जहां पर भगवान बुद्ध के अनुयायी रहते हैं या जहां पर बौद्ध धर्म से जुड़े मंदिर एवं स्मारक आदि हैं। इस सूची में महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, सिक्कम, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, ओडिशा, मध्य प्रदेश, बेस्ट बंगाल समेत हिमाचल प्रदेश का पूरा वर्णन दिया गया था। इस पुस्तक में हिमाचल प्रदेश में उपलब्ध सभी बौद्ध स्थलों सहित धर्मगुरु दलाई लामा के निवास स्थल मकलोड़गंज का वर्णन भी पूर्ण प्राथमिकता के साथ किया गया था। उल्लेखनीय है कि बौद्ध धर्म के शीर्ष गुरु होने के चलते दलाईलामा अंतरराष्ट्रीय जगत में वर्णन पहचान रखते हैं। इस पुस्तक में बेहद आकर्षक और मनमोहक चित्रों के साथ हर जगह का वर्णन इस तरह से किया गया है कि इसे पढ़कर हिमाचल में विदेशी सैलानियों की आमद में और भी ज्यादा बढ़ोतरी होगी। यह कॉफी टेबल बुक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर उस जगह मौजूद है, जहां पर पर्यटकों की आमद लगातार रहती है। परिणाम स्वरूप इस किताब को पढ़कर बौद्ध धर्म के प्रति झुकाव रखने के इस पर अध्ययन करने वालों के साथ-साथ सामान्य पर्यटकों की आमद प्रदेश में बढ़ने के भी लगातार बढ़ी है।

“हिमाचल का इतिहास”

 

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