“मुसलमान काल, मुगल युग, राजा संसार चन्द व गोरखों का प्रवेश”

“मुसलमान काल”

महमूद गजनवी ने फिर भारत पर हमला किया. उसने हिमाचल प्रदेश में केवल नगरकोट या कांगड़ा किले पर हमला किया था. यह मुस्लिम इतिहासकार उतबी की पुस्तक ‘तारीख-ए-यामिनी’ में विस्तृत रूप से बताया गया है. 1009 ई. में महमूद गजनवी ने आक्रमण किया और फरिश्ता ने कहा कि उसने 700 मन सोना, 2000 मन चांदी और 20 मन हीरे जवाहरात लूट लिए थे. उसने यहाँ की मूर्तियों, शास्त्रों और अन्य सांस्कृतिक सम्पदा को भी नुकसान पहुंचाया था.

हिमाचल प्रदेश के राजा सुलतानों के समय लगभग स्वतंत्र रहे, और कई विद्रोही मुस्लिम सरदार यहां शरण लेते रहे, जैसे मुहम्मद शाह प्रथम के विद्रोही सरदार तुगलक खान और रजिया बेगम के विद्रोही सरदार मुहम्मद जुनैडो. दोनों ने सिरमौर में आश्रय लिया था. 1365 ई. में फिरोजशाह तुगलक ने कांगड़ा दुर्ग पर आक्रमण किया, लेकिन इसे जीतने में सफल नहीं हो सका. इसके बजाय, वह ज्वालामुखी से 1300 के लगभग संस्कृत ग्रंथों को फारसी में अनुवाद करने के लिए ले गया.

1398-99 ई. में तैमूरलंग ने सिरमौर, हांदूर और कांगड़ा सहित कई राज्यों को भी लूटा था। उसकी कठिन स्थिति के कारण वह भी कांगड़ा नहीं जीत सका. नूरपुर और कांगड़ा के राजाओं ने शेरशाह सूरी और उसके पुत्र सिकन्दरशाह सूरी के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे।

मुगल युग“:-

मुगलों ने अकबर से औरंगजेब तक पहाड़ी राज्यों पर शासन किया, लेकिन मुस्लिम और मुगल काल में यह सिर्फ कर वसूलने या इन पहाड़ी शासकों की आपसी लड़ाई में मदद करने तक सीमित था. ये शासक भी एक दूसरे के खिलाफ मुगलों की सहायता करते थे. 1620 ई. में जहांगीर ने नूरपुर के राजा जगत सिंह की सहायता से कांगड़ा दुर्ग पर कब्जा कर लिया, जो 1783 ई. में गिर गया था. राजा हरिचन्द कटोच ने यह घटना की थी. 1627 ई. में उसका भाई चन्द्रभान कांगड़ा निसंतान हो गया. अपनी अंतिम सांस तक उसने मुगलों के खिलाफ लड़ाई का बिगुल बजाए रखा और सीधी लड़ाई में सफल न होने पर धौलाधार की पहाड़ियों से गुरिल्ला युद्ध किया. उसकी वीरता के स्मारक अभी भी जीवित हैं, और धौलाधार की चोटी को अभी भी भाटा कहते हैं. कटोच और पठानिया राजाओं ने कभी-कभी मुगलों से विद्रोह किया. औरंगजेब के मन्दिरों को गिराने के आदेश का चम्बा के राजा चतरसिंह (1644–1690) ने खुलेआम विरोध किया था. दिल्ली को 1360 ई. में कांगड़ा के राजा रूपचंद ने जीता था।

राजा संसार चन्द“:

मुगल शासन के अंतिम दौर में उसके प्रभुत्व की कमी से पहाड़ी राजाओं की लड़ाई और एक दूसरे पर कब्जा करने की इच्छा और भी बढ़ गई. सन् 1775 ई. में अपने पिता टेक चन्द की मृत्यु पर दस वर्ष का छोटा राजा संसार चन्द कांगड़ा की राजगद्दी पर आया. वह महत्वपूर्ण था. उसकी सबसे बड़ी इच्छा थी कि कांगड़ा-दुर्ग को मुगलों से वापस ले जाए, जो कटोच-वंश की शान थी. उसने इसके लिए कन्हैया मिसल के सिक्ख राजा जयसिंह कन्हैया से मदद मांगी. 1783 ई. में सैफअली खां की मृत्यु पर, राजा जयसिंह ने कांगड़ा दुर्ग को संसार चन्द को सौपने से इनकार कर दिया. अब राजा संसार चन्द ने शुक्रचक्रिया मिसल के राजा महासिंह और रामगढ़िया मिसल के राजा जस्सा सिंह से समझौता करके बटाला में राजा जयसिंह को हराया. और 1786 में कांगड़ा दुर्ग को कुछ ग्रामीण इलाकों के बदले मिला. इस समय, कटोचों ने कांगड़ा-दुर्ग पर 166 वर्ष बाद फिर से नियंत्रण हासिल किया। अब संसार चन्द ने सारे पहाड़ी राज्यों को नियंत्रित करने का सपना देखा. उसने मण्डी पर हमला करके राजा इश्वरीसेन को गिरफ्तार कर लिया. और नेरटी के पास चम्बा के राजा राज सिंह को मार डाला. 1803 ई. में उसने मैदानों पर हमला किया, लेकिन असफल रहा. अब उसने कहलूर (बिलासपुर) पहाड़ों पर आक्रमण करके सतलुज के किनारे तक घुमारवीं और अन्य क्षेत्रों को जीता. सिरमौर का राजा धर्मप्रकाश भी बिलासपुर के राजा महांचन्द की सेना में था. पर मार डाला गया.

“गोरखों का प्रवेश”:

गोरखों के आगमन से पहाड़ी राजा घबरा गए. कहलूर के राजा महानचन्द की अध्यक्षता में, उन्होंने मंत्रणा करके यह निर्णय लिया कि गोरखों को राजा संसार चन्द के खिलाफ आक्रमण करने के लिये बुलाकर उनकी सहायता की जानी चाहिए.

गोरखों ने नेपाल से काश्मीर तक एक स्वतन्त्र राज्य बनाने का सपना देखा था. इस सपने को पूरा करने के लिए वे पहले ही गोगड़ों की धार से सतलुज नदी तक के राज्यों, गढ़वाल, कुमाऊं और सिरमौर को नियंत्रित कर चुके थे. यानि उन्होंने शिमला हिल स्टेट्स की अधिकांश रियासतों को अपने अधीनस्थ कर लिया था. पहाड़ी राजाओं के निमंत्रण को उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया और संसार चन्द पर आक्रमण कर दिया, लेकिन संसार चन्द की सेनाओं ने उन्हें हरा दिया और एक समझौता करके उन्हें सतलुज नदी के पार रहने पर बाध्य कर दिया.

ये घटनाएं 1804 में हुईं। परन्तु अब संसार चन्द ने आर्थिक बचाव के लिये सेना को फिर से बनाया, जो गोरखों को पता चला. अगले साल, गोरखों ने संधि की अवहेलना करते हुए अमर सिंह थापा के नेतृत्व में कांगड़ा राज्य पर आक्रमण कर दिया. 1805 ई. में हमीरपुर में महल-मोरियां खरवाड़ के नजदीक घमासान लड़ाई हुई, जिसमें राजा संसार चन्द हार गया. वह पहले सुजानपुर टीहरा गया, लेकिन अंततः कांगड़ा-दुर्ग गया. 1805 से 1809 ई. तक गोरखों ने लगातार चार वर्षों तक कांगड़ा दुर्ग पर घेरा डाला. गोरखा शासन ने कांगड़ा पहाड़ी क्षेत्र को बर्बाद कर दिया. गोरखों ने इतनी तबाही मचाई कि पूरा इलाका ध्वस्त हो गया लाशें इतनी बड़ी थीं कि जानवरों को खाना नहीं मिलता था. दिन में जंगली जानवर बस्तियों में घूमने लगे. 1809 में महाराजा रणजीतसिंह ने गोरखों को हराया और सतलुज के उस पार भगा दिया. अब तक, शिमला हिल स्टेट्स की जनता और राजा भी गोरखों की लूट-खसूट और क्रूर शासन से पीड़ित थे

“अंग्रेजो का आगमन, हिमाचल प्रदेश में ब्रिटिश छावनियाँ व 1857 ई. से पूर्व की घटना “

 

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