“जनपदो का इतिहास-2”

राजपूत युग:

आठवीं शताब्दी से बारहवीं सदी तक भारत के इतिहास में राजपूत युग माना जाता है, जब हर्ष के शासन का अंत हुआ और देश छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया, जिससे राजपूतों के नाम से नई शासन शक्ति भारत के मानचित्र पर उभरी. कई राजपूतों ने अपने राज्यों से निकाल दिए गए या पहाड़ों पर तीर्थयात्रा करने के लिए चले गए, यही समय था जब शिमला-हिल स्टेट की रियासतों की स्थापना हुई, जो बाद में हिमाचल प्रदेश में शामिल हो गईं. 687 ई. में चन्देरी (मध्य प्रदेश) से ज्वालामुखी आने वाले राजा वीरचन्द ने कहलूर (बाद में बिलासपुर) नामक रियासत की स्थापना की, जिसने सांडा-बांडा, मलांडा और झंडा नामक ठाकुरों को हराकर रियासत की स्थापना की थी

सुकेत

इसके आधी शताब्दी बाद, एक और चन्द्रवंशीय राजा, वीरसेन, ने सतलुज नदी को पार कर ‘पांगणा’ नामक स्थान पर सुकेत राज्य की स्थापना की, जिसकी राजधानी बाद में ‘सुन्दरनगर’ बन गई.

क्योंथल:

लगभग इसी समय वीरसेन के एक अन्य भाई गिरीसेन ने क्योंथल नामक एक रियासत बनाई.

मंडी:

13वीं शताब्दी में वीरसेन के वंशजों में से एक बानसेन ने मण्डी रियासत को ‘भ्यूली’ नामक स्थान पर बनाया था. बाद में 1526 ई. के आसपास राजा अजबर सेन ने इसे राजधानी बनाया.

चम्बा:

550 ई. में राजा मेरूवर्मन ने भरमौर में ब्रह्मपुर राज्य के नाम से चम्बा बनाया था, और राजा साहिल वर्मन (920–940 ई.) ने इसे अपनी पुत्री चम्पा के नाम पर राजधानी बनाया. चम्बा की भौगोलिक स्थिति ने विदेशी आक्रमणकारियों से सदा बचाया, जिससे यहां के मन्दिरों में कोई चोरी नहीं हुई.

सिरमौर:

सिरमौर की स्थापना 6वीं या 7वीं शताब्दी में राठौर राजकुमार आदित्य ने की थी, जो एक आधुनिक रियासत थी. 12वीं शताब्दी में आदित्य का वंशज उग्रसेन सिरमौर पर राज्य कर रहा था. 1195 ई. में गिरी नदी में बाढ़ आने से सिरमौर ताल बह गया, जिसमें राजा उग्रसेन और उनके तीन पुत्र करमचन्द, मूलचन्द और दुनीचन्द थे 1195 ई. में उसने शुभंश प्रकाश के नाम से सिरमौर राज्य की बागडोर संभाली. राजा कर्म प्रकाश (1616–1630 ई.) ने नाहन नगर की नींव की, जो विलयीकरण के समय रियासत की राजधानी थी.

जुब्बल-रावींगढ़:

उग्रसेन के लड़कों ने सिरमौर को खो दिया तो करम चन्द ने जुब्बल राज्य की नींव रखी, जबकि दुनी चन्द ने रार्वीगढ़ रियासत की स्थापना की.

ठियोग, मधान, घुंड रतेश और कुमारसेन:

बिलासपुर के राजा भीमचन्द के समय 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में चन्देरी से आने वाले राजपूत के लड़कों ने ठियोग, मधान, घुंड और रतेश की स्थापना की. सिरमौर के राजा करम प्रकाश (1616–1630 ई.) के भाई राय सिंह ने रतेश की स्थापना की, जबकि खनेटी और देलठ की स्थापना कीरत सिंह के वंशजों ने की।

कोटी-भज्जी:

कुटलैहड़ (वर्तमान में ऊना में) के चौबीसवें राजा के पुत्रों चांद और चारू ने इसे बनाया था.

कुनिहार, कुठार, थरोच, दरकोटी और धामी:

कुनिहार को जम्मू (अखनूर) से आने वाले सूर्यवंशी राजपूत अभोज देव ने बनाया, कुठार भी जम्मू से आया था, और थरोच सिरमौर का हिस्सा था. दरकोटी के शासक जयपुर के राजघराने से जुड़े हुए थे, और धामी के ठाकुर दिल्ली के राजपूतों के वंशज थे.

घाट, बाघल, बलसन, महलोग, सांगरी व मांगल:

बघाट की नींव दक्षिण में धराना गिरी से आने वाले बसंत पाल नामक पंवर या पंवार राजपूत ने की थी। बलसन के संस्थापक सिरमौर राजाओं के वंश में से थे, जबकि बेजा के शासक दिल्ली के सुनार या तोमर राजपूतों के वंशज थे। महलोग के राणा अयोध्या से आने वाले सूर्यवंशी वीरचन्द के वंशज थे,

बुशैहर:

रामपुर बुशहर का वंश महाभारत काल में श्रीकृष्ण के पौत्र प्रद्युम्न से निकला था, जिसने वाणासुर की पुत्री उषा से शादी की थी, और बाणासुर की राजधानी सराहन थी. 113वीं पीढ़ी में राजा केहरी सिंह ने रामपुर राज्य की सीमाओं को तिब्बत तक बढ़ाया, जो लगता है कि पहाड़ी रियासतों में सबसे पुराना था,

कांगड़ा:

इनमें सबसे बड़ा और पुराना राज्य कांगड़ा था, जिसे त्रिगर्त राज्य के रूप में पहले बताया गया था. कांगड़ा के कटोच वंशीय राजा भगवान शिव की अर्द्धांगिनी पार्वती से संबंधित थे, वंशावली के अनुसार उनके पहले राजा भूमिचन्द्र हुए, जिन्हें पार्वती ने अपने पसीने से एक दैत्य को मारने के लिए उत्पन्न किया था.

गुलेर:

जसवां, दतारपुर और डाडासिबा आज कांगड़ा के डाडासिबा उप-मण्डल का हिस्सा हैं. इनकी स्थापना क्रमशः हरिचन्द, पूर्व चन्द, दतार चन्द और सिवर्ण चन्द ने की थी, जो कांगड़ा राजाओं के वंशज थे.

नूरपुर:

पुराने औदुम्बर जनपद का एक हिस्सा था नूरपुर रियासत, जिसका नाम जहांगीर के समय नुरूदीन या उसकी बेगम नूरजहां पर रखा गया था. इस राज्य की राजधानी पहले पठानकोट थी, लेकिन अकबर ने इसे धमेरी या ढामल में बदल दिया. नूरपुर के राजा को पठानिया कहते थे,

कुल्लू:

दूसरी सदी के लगभग मायापुरी (हरिद्वार) से पाल वंशीय विहंगमणि पाल ने कुल्लू या चम्बा के राजाओं पर शासन किया, हिडम्बा देवी की कृपा से. लहौल भी एक पुरानी ठकुराई थी, जिस पर कुल्लू या चम्बा के राजाओं का शासन था.

कुटलैहड़:

एक ब्राह्मण जातीय व्यक्ति ने कुटलैहड़ की स्थापना की थी, जिसकी राजधानी रायपुर थी, जो अब ऊना जिले की बंगाणा तहसील में है. बीड़ (अब कांगड़ा जिले में है) में भी एक रियासत थी, जिसके राजा पालवंशीलव थे.

हांदूर:

11वीं शताब्दी में कहलूर के राजा काहन चन्द के बेटे अजय चन्द ने हण्डू नामक ब्राह्मण को मार डाला था, जो आज की नालागढ़ रियासत का मूल है. हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में बाहर से आने वाले राजकुमारों और राजाओं ने स्थानीय शासकों मौवियों, ठाकुरों, राणाओं और राजाओं को उजाड़ कर प्रभुत्व जमाने का प्रयास किया, जिससे कन्नौज का महत्व भारत वर्ष के इतिहास में कुछ अधिक महत्वपूर्ण बन गया. वहाँ पाल, गुर्जर और प्रतिहार जैसे शक्तिशाली वंशों ने पहाड़ों पर भी प्रभुत्व जमाने की कोशिश

“मुसलमान काल, मुगल युग, राजा संसार चन्द व गोरखों का प्रवेश”

 

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