हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध व्यक्तित्व
श्री बाबा कांशीराम (पहाड़ी गांधी): वह 11 जुलाई 1882 को देहरा गोपीपुर तहलील के गांव डाडा सिब्बा में पैदा हुआ था। उनके पिता श्री लखन राम थे। 1902 में, वे लाहौर गए, जहां वे सरदार अजीत सिंह और स्वर्गीय हरदयाल एम.एम. जैसे महान क्रान्तिकारी से मिले। इन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने की प्रेरणा दी गई। इन्हें 1919 ईस्वी में दो वर्ष की कैद हुई। उन्हें 1937 में गदरीवाला में एक राजनैतिक बैठक में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ‘पहाड़ी गांधी’ की उपाधि से सम्मानित किया। यह एक विवादित विषय है, जिसके बारे में कोई ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं है, न ही तत्कालीन किसी समाचार पत्र में इसका विवरण है। 1927 ई. में दौलत पुर चौक में भारत की बुलबुल सरोजिनी नायडू ने इन्हें ‘पहाड़ा दा बुलबुल’ पदक से सम्मानित किया, क्योंकि उनकी मधुर आवाज बहुत अच्छी थी। 1931 ई. में सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई, उन्होंने कसम खाई कि वे काले कपड़े नहीं पहनेंगे जब तक भारत आजाद नहीं हो जाता। वे महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी थे और उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में भी लागू किया था। वे कांगड़ा क्षेत्र से देश की स्वतंत्रता के लिए प्रतिज्ञा करने वाले पहले प्रकाश थे। वे कई बार जेल में रहे। 15 अक्तूबर 1943 को 61 वर्ष की आयु में वे मर गए।
बख्शी प्रताप सिंह ने 20 अक्तूबर 1912 को चढ़ियार, कांगड़ा में जन्म लिया था। 1942 में आप अंग्रेज सेना छोड़कर आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए, जहां आप बहुत साहसी थे। 1952 में पंजाब विधानसभा में चुने गए और 1957 से 1962 तक राज्य में उपमंत्री रहे। 1966 में कांगड़ा के हिमाचल में विलय के बाद, राजस्व मंत्री और कांग्रेस के उपाध्यक्ष बने ।
भागमल सौहटा: 23 सितंबर 1899 को धार, शिमला जिले में भागमल सौहटा का जन्म हुआ था। 1922 में उन्होंने कांग्रेस में शामिल हो गया और राज्य में चल रहे प्रजामंडल आन्दोलन में भी भाग लिया। आप भी जेल गये। 1939 में, धामी आंदोलन ने नेतृत्व किया और उसके बाद आग लगी।
दौलतराम सांख्यान का जन्म 16 दिसंबर 1919 को गांव पंचायतन, बिलासपुर में हुआ था. उन्होंने बिलासपुर रियासत के राजा और प्रजामंडल के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया और कई बार जेल गए। 1957 में वे राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष बने और राज्य मंत्रिमंडल में कई बार मंत्री रहे।
कृष्णानन्द स्वामी का जन्मस्थान, जिला मंडी 1921-22 में, वे स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने लगे और जेल गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा था। 1952-57 तक हिमाचल प्रदेश विधानसभा में भी रहे।
लालचंद प्रार्थी ने मार्च 1916 में नग्गर जिला, कुल्लु में जन्म लिया था। इन्होने अपना जीवन एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में शुरू किया, फिर भारत छोड़ो आंदोलन और जनजागरण में भाग लिया। 1952, 1962, 1967 में चुने गए और फिर मंत्री बने। 11 दिसंबर 1982 को मर गया। उसने “कुलूट देश की कहानी” भी लिखी, जो कुल्लू राज्य का इतिहास बताता है।
पद्म देव का जन्म 26 जनवरी 1901 को भमनोल, जिला शिमला में हुआ था। 1920 के असहयोग आंदोलन और 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया, इन्हें “कविराज” भी कहा जाता था। इन्होने अस्पृश्यता, रीति-रिवाज और बेगार के खिलाफ हिमालय रियासती समाज की स्थापना की। 1957 में वे विधानसभा के लिए चुने गए और राज्य के गृह मंत्री बने। 1957 में वे लोकसभा में गए। 1962 में क्षेत्रीय परिषद् में चुने गए और 1967 में फिर से विधानसभा में चुने गए।
यशपाल का जन्म 3 दिसंबर 1903 को भुम्पल, हमीरपुर में हुआ था। 1928 में, उन्हें लार्ड इरविन की ट्रेन के नीचे चम लगाने के एक षडयंत्र में गिरफ्तार कर लिया गया, जिसके परिणामस्वरूप वे छह साल तक जेल में रहे। उन्होंने ‘सिंहावलोकन’ भी लिखा। 26 दिसंबर 1971 को वे मर गए। ये लेखक क्रांतिकारी थे।
श्रीमती अमृत कौर: 2 फरवरी 1889 को लखनऊ में अमृत कौर का जन्म हुआ था। वे राजा सर हरनाम सिंह की बेटी थी और कपूरथला के शाही परिवार अहलुवालिया से संबंध रखती थी। वह उसके पिता की इकलौती बेटी थी, उनके सात बेटे भी थे। उनके पिता ने ईसायत धर्म अपनाया था। उसके पिता को पंजाब सरकार ने अवध राज्य का प्रबंधक नियुक्त किया, जो कपूरथला परिवार द्वारा अधिकृत राज्य से अधिक था।
राजकुमारी, जिसका ईसाई धर्म वंशानुगत था, इंग्लैंड में शिक्षित हुई। उसे डोरेस्टशायर की शेरबर्न स्कूल में भेजा गया, फिर लंदन कालेज में प्रवेश लिया। वह बहुत सा समय खेलों में लगाती थी. वह लान टैनिस खेलती थी और कई प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की, लेकिन शादी नहीं की। राजकुमारी ने अपना नाम और स्थान अपने पिता से पाया, जो बहुत शुद्ध और पवित्र ईसाई था। राजा हरनाम सिंह का एक दोस्त गोपाल कृष्ण गोखले था। वह बाद में गांधीजी के प्रभाव में आ गई और उनकी निकट अनुयायी और आजीवन छात्रा बन गई। 1930 ईस्वी में राजकुमारी अमृत कौर ने सार्वजनिक जीवन में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सचिव पद पर पदार्पण किया। 1931 से 1933 तक उसने महिला परिषद की अध्यक्षता की।
1932 ईस्वी में उसने “लोथियां कमेटी” में भारतीय नागरिकों के मताधिकार पर साक्ष्य दिया और बाद में महिला संगठन के शिष्टमण्डल के सदस्य के रूप में संयुक्त प्रवर समिति के सामने अपने विचार रखे। 1938 में उसने अखिल भारतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की। उसने 16 साल तक गांधी जी का सचिव भी था। वह शिक्षा सलाहकार समिति का सदस्य था, लेकिन अगस्त 1942 में त्यागपत्र दे दिया। वह भारत तमिल संघ का सदस्य था। 1945 ईस्वी में संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति (UNESCO) में भारतीय शिष्ट मण्डल के सदस्य और 1946 ईस्वी में पैरिस में इसका प्रतिनिधित्व किया। उसे स्वतंत्रता के बाद 1947 ईस्वी में भारत की पहली महिला स्वास्थ्य मंत्री की नियुक्ति मिली। गांधीजी के निकटतम प्रतिनिधि के रूप में उसने नमक सत्याग्रह में भाग लिया और बम्बई में गिरफ्तार हुईं। उसने बाद में साम्प्रदायिक पारितोषिक (Communal Award) को 1932 में घोषित करने पर तुरंत इसकी निंदा की। वह उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत (NWFP) में कांग्रेस के पक्ष की वकालत करने लगी। 16 जुलाई 1937 को उसे देशद्रोह का दोषी ठहराया गया और जेल भेज दिया गया। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई जलूसों का नेतृत्व किया था। इनमें से एक पर क्रूरतापूर्वक लाठी चार्ज की गई। इन्हें बाद में कालका मैं में बन्दी बनाया गया। राजकुमारी ने राजनीति से अधिक सामाजिक कार्यों में भाग लिया। वह बहुत समय महिलाओं के उत्थान पर खर्च करती थी और सामाजिक बुराइयों जैसे बाल-विवाह, पर्दा प्रथा और भारतीय महिलाओं के बीच अनपढ़ता को दूर करती थी। वह भी हरिजनों के भाग्य से चिंतित थीं। राजकुमारी, जिसे शाही परिवार की सर्वश्रेष्ठ परम्पराएं विरासत में मिली थीं, अहिंसा में दृढ़ विश्वास रखने वाली थी। 1952 ईस्वी में हिमाचल प्रदेश के महासू संसदीय क्षेत्र से चुनी गई थी। 1964 ईस्वी में वे मर गए।
न्यायाधीश मेहर चंद महाजन 23 दिसंबर 1889 को टिक्का नगरोटा, कांगड़ा में न्यायाधीश मेहर चंद महाजन का जन्म हुआ था। 1912 में लाहौर विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की और 27 दिसंबर 1943 को लाहौर न्यायालय में न्यायाधीश बन गए। विभाजन के दौरान पूर्वी पंजाब उच्च न्यायालय में न्यायाधीश और फिर कश्मीर के प्रधान मंत्री बन गए। जनवरी 1954 से दिसंबर 1954 तक भारत के सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश था। मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को जम्मू में हुआ था; उनके पिता मेजर जनरल एन. शर्मा थे। नैनीताल के शेरवुड कॉलेज और देहरादून के प्रिंस ऑफ वेल्ज रायल अकादमी से पढ़ाई करने के बाद 1942 में सेवा में कमीशन मिला। (कुमाऊं रेजीमेंट) 3 नवम्बर 1947 को कश्मीर में कवायलियों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ। भारत सरकार ने उनके महान बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत ‘प्रथम परमवीर चक्र’ की उपाधि दी। कशमीर का इतिहास शायद कुछ अलग होता अगर मेजर शर्मा नहीं होते।
श्री वीर भंडारी (विक्टोरिया क्रास): वीर भंडारी राम 24 जुलाई 1919 को जन्मे थे और इक्कतीस विक्टोरिया क्रास विजेताओं में से एक थे। 2002 में 83 वर्षीय बिलासपुर निवासी विक्टोरिया क्रास वीर भंडारी हृदयगति रुकने से मर गया। हिमाचल के नाम को गौरवान्वित करने वाले इस वीर योद्धा ने ईस्ट मायून आशकान बर्मा में शत्रु से लोहा लेकर अपनी मशीनगन से अदम्य साहस की गाथा लिखी, जो इतिहास में अमर हो जाएगी। यह देशभक्त योद्धा था। तत्कालीन वायसराय ने 9 नवंबर 1945 को लाल किले में एक समारोह में उन्हें विक्टोरिया काल (सैनिक साहस का उच्च सम्मान) से सम्मानित किया, द्वितीय विश्वयुद्ध में शत्रु पर भारी पड़ने के लिए। 16 जुलाई 1941 को वीर भंडारी राम सेना में शामिल हुए। 6 सितंबर 1969 को, ब्लूच रेजीमेंट का यह सैनिक आजादी के समय आठ डोगरा रेजीमेंट में साहस के महान पन्ने लिखकर सेवानिवृत हुआ।
डॉ. यशवंत सिंह परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को भागथन, सिरमौर जिले में हुआ था। लाहौर से कानून और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। सदस्य सेवा समिति नाहन (1919-20), सदस्य थियोसोफिकल समाज देहरादून (1929) और उप-न्यायाधीश और प्रथम श्रेणी मेजिस्ट्रेट सिरमौर रियासत (1920–37) सचिव नाहन क्रिकेट कल्च (1937–1939), जिला तथा सत्र न्यायाधीश सिरमौर राज्य (1937-41), अखिल भारतीय राज्य जनसभा अध्यक्ष (1947–47), सुकेत सत्याग्रह संगठन (1948–49), प्रथम विधान सभा चुनाव जीता (1951–152), प्रथम मुख्य मंत्री (1952–156), लोक सभा के लिए निर्वाचित 1957, पुनः मुख्यमंत्री 1963–67 तथा 1967–1977 तक श्री बख्शी प्रताप सिंह (स्वतंत्रता सेनानी) वह 20 अक्तूबर 1912 को कांगड़ा के पालमपुर तहसील के बढ़यार गांव में पैदा हुआ था। इन्होंने मैट्रिक किया था। 1931 में उन्हें आजाद हिन्द फौज (INA) में शामिल किया गया था। वह तीन लाख सैनिकों में से एक था जिसने 5 से 6 फरवरी 1944 ईस्वी में आधी रात को ब्रिटिश शिविर में अकेले घुसकर ब्रिटिश अधिकारियों पर पहला हमला किया। सेना के एक अफसर को घायल किया, एक गार्ड को मार डाला और खुद भी घायल हो गया। उस अद्भुत साहस के लिए उन्हें ‘तगमा-ए-शत्रुनाश’ पुरस्कार मिला। उन्हें 14 दिन बिना खाने के गुरिला युद्ध में भागना पड़ा, जो एक महीने तक चलता रहा। 1952 में, वे पालमपुर से कांग्रेस के टिकट पर चुने गए। 1957 से 1962 तक वह पंजाब का उपमुख्यमंत्री था। 1966 ईस्वी में पंजाब प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों का हिमाचल में विलय होने पर वह राजस्व मंत्री बन गया. उसके बाद वह हिमाचल प्रदेश कांगड़ा कमेटी का उपाध्यक्ष बन गया और 1972 से 1977 तक राष्ट्रीय बचत सलाहकार बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे। उनका स्वर्ण पदक और योग्यता प्रमाण-पत्र लघु बचत प्रोत्साहन में मिला।
ठाकुर सेन नेगी का जन्म 5 सितंबर 1909 को शांग, जिला किल्लौर में हुआ था। 1932 में सरकारी सेवा में नियुक्त हुए और 1966 में राज्य के मुख्य सचिव बने। 1967, 1972, 1977, 1982 और 1990 में चुने गए। श्री नेगी दो बार विधानसभा अध्यक्ष और मंत्री रहे हैं। 2 जनवरी 2001 को 91 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई।
रामलाल 15 जनवरी 1929 को नरथाटा, जिला शिमला में पैदा हुआ था। वह 1957-62 में क्षेत्रीय परिषद में चुना गया था. वह 1963, 1967, 1972, 1990, 1993, 1998 और 2001 में दो बार राज्य के मुख्यमंत्री बने, 1977 और फिर 1981 में। 1983 में उन्हें आन्ध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था। 1998 में वे फिर से चुने गए। वह 7 जुलाई, 2002 को हृदय गति रुकने से मर गए।
श्री ईश्वर दास धीमान 17 नवंबर 1934 को जन्मे श्री ईश्वर दास धीमान का पुत्र स्वर्गीय श्री घोगड़ राम. उन्होंने हमीरपुर में एम.ए., एम.एड., पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में पढ़ाई की. 6 मार्च 1954 को श्रीमती सत्यादेवी से विवाह किया, उनके पास एक पुत्र और दो पुत्रियां हैं। वे शिक्षक और कृषक हैं। आप 1990, 1993 व 1998 में चुने गए। 1998 में भाजपा की सरकार बनने पर राज्य में शिक्षा मंत्री बनें। 2003 में वे फिर से विधानसभा में चुने गए। आप 2007 में श्री प्रेम कुमार धूमल के लोकसभा सांसद के रूप में चुने गए और प्रदेश विधान सभा में प्रतिपक्ष का नेता चुना गया। 2007 के विधानसभा चुनाव में फिर से विजयी होकर भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री बन गया। 2012 में वे छठी बार चुनाव जीते थे। 2016 में इनकी मृत्यु हो गई।
नारायणचंद परासर का जन्म 2 जुलाई 1935 को सेरा तहसील, हमीरपुर जिले में हुआ था। ये बी.ए. (ऑनर्स) और एम.ए. (अंग्रेजी) की डिग्री हैं। चीनी, जापानी और बंगला में डिप्लोमा, साथ ही तमिल, पंजाबी और अन्य भाषाओं में सर्टिफिकेट। दिल्ली विश्वविद्यालय के PGDAV कॉलेज के अंग्रेजी विभाग में वे वरिष्ठ व्याख्याता और अध्यक्ष रहे। 1971 से कांग्रेस (ई) के हिमाचल प्रदेश के कार्यकारी सदस्य रहे। 1971-77 में वे पांचवीं बार चुने गए और 1980-84 में सातवीं बार चुने गए। 1990 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में नदौन से विजयी हुए। 1993 में वे फिर से राज्यसभा में विजयी हुए और शिक्षा मंत्री बने। 1998 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने जीत हासिल की। 65 वर्ष की आयु में 20 फरवरी, 2001 को मर गए।
कृष्ण दत्त सुल्तानपुरी ने 20 अप्रैल 1932 को सुल्तानपुर, सोलन जिले में जन्म लिया था। श्री सुल्तान पुरी ने 1980, 1984, 1989, 1991, 1996, और 1998 में छह बार लोकसभा के लिए चुनाव जीता था। 2006 में उनकी मौत हो गई।
वीरभद्र सिंह 23 जून 1934 को वीरभद्र सिंह का जन्म हुआ, जो राजा बुशहर के राजसी परिवार का 131 वें पुत्र था। श्री वीरभद्र सिंह ने 1962, 1967, 1972 और 1980 में लोकसभा चुनाव जीता। 1980 से 1983 तक नागरिक उड्डयन उपमंत्री और फिर कुछ समय के लिए उद्योग राज्य मंत्री रहे। 1983 से 1990 और 1993 से 1998 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। 1998 में अल्पमत सरकार ने जीत हासिल की, लेकिन सात दिन में टूट गई। 2003 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और पांचवी बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बन गया। 2007 के विधानसभा चुनाव में फिर जीत हासिल की, लेकिन पार्टी चुनाव हार गई। 2009 के लोकसभा चुनाव में मंडी सीट से जीतकर केन्द्र में इस्पात मंत्री बनें। 2012 में विधानसभा चुनाव जीत कर छठी बार मुख्यमंत्री बन गए। 2017 के विधानसभा चुनाव में अर्को सीट से विजेता था, लेकिन अपनी पार्टी को खो देने के कारण विपक्ष में चला गया।
शांता कुमार का जन्म 13 सितंबर 1934 को गढ़जुमला, कांगड़ा में हुआ था। 1972, 1977, 1982 और 1990 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रचारक श्री शांता कुमार चुने गए। 1990 और 1998 में दो बार लोकसभा के लिए चुने गए। 1977 से 1980 और 1990 से 1992 तक राज्य का मुख्यमंत्री रहे। 1998 में वे लोकसभा के लिए चुने गए, नागरिक उपभोक्ता मंत्री बने और फिर ग्रामीण विकास मंत्री बने। श्री शांता कुमार स्वच्छ राजनीतिज्ञ और लेखक हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में कांगडा सीट से हार गया। 2008 में राज्यसभा के लिए चुने गए और 2014 में 16वीं लोकसभा चुनाव में कांगड़ा सीट जीत ली। भारतीय जनता पार्टी ने उनकी आयु सीमा के कारण 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया।
प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल का जन्म 10 अप्रैल 1944 को समीरपुर, हमीरपुर में हुआ था। श्री धूमल, अंग्रेजी विषय के शिक्षक, 1989 तथा 1991 में लोकसभा के लिए चुने गए. 1998 में वे पहली बार विधानसभा के लिए चुने गए और राज्य के मुख्यमंत्री बने। 1993 और 1998 तक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी रहे। 2003 के विधानसभा चुनाव में जीते, लेकिन अपनी पार्टी से पराजित होने के कारण फिर से सरकार नहीं बना सके। 2007 में हमीरपुर लोकसभा सीट से उपचुनाव जीता था। 2007 में हुए चुनावों में फिर से चुने गए और 30 दिसंबर 2007 को दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 2012 में हमीरपुर से चुनाव जीते, लेकिन पार्टी को हराने के कारण नेता प्रतिपक्ष बन गए। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वे सुजानपुर विधानसभा सीट से चुनाव हार गए।
जनरल विश्वनाथ शर्मा मेजर सोमनाथ शर्मा के छोटे भाई हैं और गांव डाड, जिला कांगड़ा में रहते हैं। 1950 में उन्होंने सेना में कमीशन लिया और शेरवुड कॉलेज नैनीताल और प्रिंस ऑफ वेल्ज राष्ट्रीय अकादमी से शिक्षा प्राप्त की। 1962, 1965 और 1971 की लड़ाई में भाग लिया। परमविशिष्ट सेवा मंडल और अतिविशिष्ट सेवा मंडल ने सम्मान प्रदान किया। 1 मई 1988 से 30 जून 1990 तक सैन्य प्रमुख रहे। हिमाचल प्रदेश के सेनाध्यक्ष बनने वाले पहले सैनिक हैं।
सुखराम का जन्म 26 जुलाई 1927 को अरनयाणा, मंडी जिले में हुआ था। 1962, 1967 और 1972 में श्री सुखराम प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। 1984, 1991 और 1996 में लोकसभा में चुने गए। केंद्रीय सरकार और राज्य सरकार दोनों में मंत्री रहे। 1997 में कांग्रेस पार्टी से अलग होने के बाद ‘हिमाचल विकास कांग्रेस’ का गठन किया. 1998 में वे विधानसभा में चुने गए और राज्य के उप-मुख्यमंत्री बने, लेकिन एक कोर्ट के फैसले से त्यागपत्र दे दिया। बाद में राज्य में रोजगार सृजन और संसाधन कमेटी का अध्यक्ष बन गया। 2003 में वे विधानसभा चुनाव जीते। इसके उपरांत, वे सक्रिय राजनीति नहीं करते थे। 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा में शामिल हुए, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस में शामिल हो गए और अपने पुत्र आश्रय शर्मा को मंडी लोकसभा सीट से कांग्रेस का अधिकारिक उम्मीदवार बनाया।
विद्या स्टोक्स ने 8 दिसंबर 1927 को कोटगढ़, शिमला में जन्म लिया था। इन्होंने 1982, 1985, 1990, और 1998 में चुनाव जीता। 11 मार्च 1985 को वे राज्य विधानसभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। 2003 में चुनाव जीतकर सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री बन गई। 2007 के चुनाव में फिर से चुनी गई और प्रतिपक्ष की नेत्री बन गई। 2012 में जीतीं और मंत्री बनीं। 2017 में, कांग्रेस पार्टी ने इन्हें टिकट नहीं दिया था।
ठाकुर गुलाब सिंह ने 29 मई 1948 को मंजौरनू, जिला मंडी में जन्म लिया था। 1977, 1982, 1990, 1993 और 1998 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। 1979 से 1997 तक राज्य में कई बार मंत्री रहे। 1998 में भाजपा हिविकां के समर्थन से विधानसभा अध्यक्ष चुने गए। 2003 में विधानसभा चुनाव में हारे। 2007 में वे चुनाव जीते और भाजपा सरकार में लोक निर्माण मंत्री बने। 2012 में वे फिर से चुनाव जीते। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार मिली।