“शिमला हिल स्टेट्स”
“शिमला हिल स्टेट्स” के दूर-दराज क्षेत्र के रामपुर बुशैहर के राजा शमशेर सिंह ने भी अंग्रेजों को मार डालने की योजना बनाई, लेकिन उसका भेद खुल गया और वह सफल नहीं हो सका. स्थिति को देखते हुए, शमशेर सिंह यह खतरा नहीं मोल ले सका. स्वतंत्रता संग्राम में राजा शमशेर सिंह ने बहुत कुछ किया था.
उधर, शिमला के नजदीक जतोग में स्थित नसीरी बटालियन, जिसके सैनिक गोरखा और राजपूत थे, ने मई, 1857 ई. में स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की. सैनिक अंग्रेज अफसरों की आज्ञा मानने से इनकार करते थे. और कसौली का खजाना भी चुरा लिया. कसौली से सेना को लेकर सूबेदार भीमसिंह जतोग पहुंचा. उस समय शिमला में सेना के कमाण्डर जनरल भी थे. सेना ने भी उनका आदेश नहीं मानकर उन्हें शिमला से भागना पड़ा. वास्तव में सेना की तीसरी, २१वीं और ३३वीं बटालियनों ने जालंधर से शिमला पहुंचने की योजना बनाई थी. लेकिन अंग्रेजों ने सैनिकों से मिन्नतें की और कूटनीतिक चाल चली, जिससे राजपूतों और गोरखों में विभाजित हो गया. सारी सड़कें बंद कर दी गईं. सैनिकों को क्षमा करने का वादा किया गया था, लेकिन शांति होने पर सूबेदार भीमसिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे फांसी की सजा सुनाई गई. उसने जेल से भागकर रामपुर में शरण ली. राजा शमशेर सिंह ने अंग्रेजों की कोई परवाह नहीं करते हुए उसे शरण दी.
जनता द्वारा विद्रोह
स्वतंत्रता संग्राम में विफलता के बाद अंग्रेजों ने भारत में अपनी पकड़ मजबूत की. राजा लोग उनकी छत्रछाया में अपराध करने लगे और जनता पर अत्याचार करने लगे. जनता भी यह सब सहन नहीं कर सकती थी. उसने शासकों को भ्रमित करने के लिए कभी-कभी आंदोलन चलाए, जिन्हें सिरमौर में ‘दुम्ह’ और बिलासपुर में ‘डांडस’ कहा जाता था. 1859 में रामपुर बुशहर के लोगों ने बेगार की प्रथा को समाप्त करने का अभियान चलाया. 1876 ई. में, हण्दूर (नालागढ़) के लोगों ने बजीर गुलाम कादिर के अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाए.
1883 ई. में बिलासपुर रियासत के राजा अमरचन्द के शासनकाल में जनता ने अत्याचारी कर्मचारियों के व्यवहार के खिलाफ आंदोलन चलाया, जिसमें लोगों ने जुग्गे जलाकर आत्मदाह कर लिया. जुग्गे का अर्थ था अपने शरीर को घास से ढक कर आग लगाना. 1930 में बिलासपुर के लोगों ने बन्दोवस्त के खिलाफ प्रदर्शन किया. 1805 ई. में चम्बा के भटियात क्षेत्र के लोगों ने कर्मचारियों के शोषण के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन चलाया. 1909-1910 ई. में मण्डी में भी राजा भवानी सिंह और बजीर पाधा जीवानंद के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हुआ. यद्यपि राजाओं ने अंग्रेजों की सहायता से इन आंदोलनों को दबाया, लेकिन इनका असर यह अवश्य हुआ कि लोग अपनी शक्ति को समझ गए. पहाड़ों के बहुत से युवा स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया.
जून 1914 में लाला हरदयाल ने सानफ्रांसिस्को में गदर पार्टी की स्थापना की, जिसका लक्ष्य था अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालना. कांशीराम और हरदेव, मण्डी के दो युवा, उन दिनों पढ़ाई के लिए सानफ्रांसिस्को गए. हरदेव को अध्ययन में जगह नहीं मिली. शंघाई में उसने निधान सिंह चुग्धा नामक एक युवा से मुलाकात की. हरदेव भी गदर पार्टी (बाद में स्वामी कृष्णानन्द नाम से प्रसिद्ध) में शामिल हो गया. इस युवा ने मण्डी में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाई. हिरदा राम, उनका दूसरा भाई, लाहौर षड़यंत्र में मार डाला गया था. मण्डी के क्रान्तिकारियों ने जंगलों में बम बनाकर उनका परीक्षण किया और पंजाब से भारी मात्रा में हथियार भी प्राप्त किए. भवानीसेन राजा की खैरगढ़ी रानी ललिता देवी, सूरजन, सिद्ध खराड़ा, जवाहर सिंह, ज्वाला सिंह, सिद्ध शारदा राम, लौंगू, दलीप सिंह और क्रान्तिकारी थे। क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार करने के बाद नागचला डकैती का झूठा मुकदमा लगाया गया. सूरज सिंह चुग्घा और निधान सिंह चुग्घा को फांसी दी गई, जबकि अन्य लोगों को अलग-अलग सजाएं दी गईं.
सन् 1930 ई. में बिलासपुर में राजा के दमन और कर्मचारियों की धांधलियों के खिलाफ आंदोलन ने अन्य रियासतों की जनता को जागृत किया. स्वामी पूर्णानन्द ने मण्डी स्टेट एसोसिएशन की स्थापना की, जो बेगार जैसी बुराइयों के खिलाफ संघर्ष करता था. 1937 ई. में चम्ब सेवक संघ नामक संस्था की स्थापना हुई, जिसने भी राजा के खिलाफ आवाज उठाई और देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा शिमला क्षेत्र की पहाड़ी रियासतों में दमनकारी तथा शोषण परख राजाओं और रजवाड़ों के विरूद्ध संघर्ष किया. यह संघर्ष स्थानीय राजाओं से अधिक विदेशी सत्ता के खिलाफ था।
“प्रजा मण्डल”