“हिमाचल प्रदेश में स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास”

“हिमाचल प्रदेश में स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास”

हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी रियासतों में स्वतंत्रता संग्राम का असर पूरे प्रदेश में हुआ था. लेकिन उसकी धार कम थी।

अब हिमाचल प्रदेश का पूरा हिस्सा सीधे अंग्रेजों के नियंत्रण में था और ‘शिमला हिल स्टेट्स’ के राजा आपस में लड़ नहीं सकते थे क्योंकि वे सभी अंग्रेजों के संरक्षण और नियंत्रण में थे. जब अंग्रेजों को अपने कर और बेगार आदि से मतलब था, तो वे निंकुश हो गए और लोगों पर मनमानी करने लगे, जिससे यह हुआ कि लोगों को कुशासन के खिलाफ विद्रोह करना पड़ा. जब अंग्रेजों ने राजाओं की रियासतें वापस नहीं दी, तो कांगड़ा जैसे क्षेत्र हताश हो गए और अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होने लगे.

नूरपुर के राजा जसवंत सिंह की छोटी आयु का फायदा उठाते हुए अंग्रेजों ने रियासत के राजा को केवल 5000 रूपये प्रति वर्ष देकर उसे अपने हवाले कर लिया. यह वहां के पूर्व प्रधानमंत्री श्याम सिंह का नवयुवक पुत्र (वजीर) राम सिंह को परेशान कर दिया. उसने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की तैयारी शुरू की. उसने गुप्त रूप से 1846 और 1848 के मध्य में नूरपुर के पठानिया और कांगड़ा के कटोच नवयुवकों की एक सेना बनाई. अगस्त 1848 ई. में दूसरा सिक्ख युद्ध शुरू हुआ. एक रात, राम सिंह ने शाहपुर किले पर हमला करके अंग्रेजी सेना को बाहर निकाल दिया और नूरपुर रियासत का झण्डा फहराया. बाद में शाहपुर किले को जालंधर के कमिश्नर हैनरी लारेंस और कांगड़ा के डिप्टी कमिश्नर बार्नस ने भारी सेना के साथ घेर लिया. रामसिंह कुछ दिनों तक संघर्ष करता रहा, लेकिन जब वह हार गया तो मैदानों की ओर भाग निकला. उसने कटोच और अन्य सिक्ख राजाओं के साथ मिलकर मैदानों में सिक्ख अंग्रेजों को परेशान करने की योजना बनाई, साथ ही पहाड़ों में कांगड़ा और अन्य सहायक रियासतों के राजा उन पर हमला करें.

1968 में, सिखों ने पठानकोट पर हमला किया. अंग्रेजों की अधिकांश सेना पठानकोट चली गई. कांगड़ा में एक छोटी सी सेना थी. कांगड़ा के राजा प्रमोध चन्द ने उस सेना को भगा दिया और राज्य को अपने हाथ में ले लिया. जसवां के राजा उमेद सिंह, दातारपुर के राजा जगत चन्द और सिक्ख संत बेदी विक्रम सिंह ने भी स्वतंत्रता की घोषणा की, लेकिन अंततः योजना कामयाब नहीं हुई. अंग्रेजों ने प्रमोध चन्द सहित राज्य के राजाओं को जेल में डालकर अल्मोड़ा भेजा. रामसिंह ने अपनी हिम्मत नहीं छोड़ी. उसने युवा सैनिकों को संगठित करके अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू किया. जनरल व्हीलर ने राम सिंह को पराजित करने के लिए एक बड़ी सेना भेजी. वह कई दिन तक लड़ता रहा, लेकिन हालात अच्छे नहीं लगे तो मैदानों की ओर भाग गया. बाद में, जब वह पहाड़ों में आया, उसका एक दोस्त बदमाश पहाड़ चन्द उसे अंग्रेजों के हाथों पकड़वा दिया. अंग्रेजों ने उसे काले पानी की सजा देकर सिंगापुर भेजा, जहां वह मर गया. तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री राबर्ट पील के भतीजे जान पील इस संघर्ष में मारे गए.

1857 का संग्राम: राजा संसार चन्द के भाई फतेह चन्द के पुत्र प्रताप चन्द ने सुजानपुर टीहरा में रहते हुए मैदानों में क्रांतिकारियों से संपर्क करके क्रांति की गुप्त तैयारी शुरू की, जब भारत में अंग्रेजों के खिलाफ स्वतन्त्रता संग्राम का बिगुल बजा. लेकिन वहां का मुस्लिम थानेदार अंग्रेजों को उसके खिलाफ गुप्त जानकारी देता रहा. योजना के अनुसार क्रांतिकारियों को कई रास्ते से आकर सुजानपुर में मिलना था, लेकिन भांडा फोड होने से अंग्रेजों ने सभी रास्ते बंद कर दिए और सैनिकों से हथियार छीन लिए. इसलिए योजना कामयाब नहीं हुई.

उधर, अंग्रेजों ने कुल्लू के राजा को भी रियासत से बाहर कर दिया था. राजा किशन सिंह के पुत्र प्रताप सिंह ने भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई शुरू की. वह दूसरे आंगल-सिक्ख युद्ध में सिक्खों की सहायता करने के लिए जंगलों की ओर चला गया. वह क्रांतिकारियों से मिले और स्वतंत्रता युद्ध शुरू होते ही कुल्लू पहुंचा. जब अंग्रेजों को उसकी योजना का पता चला, मेजर हे ने एक बड़ी सेना लेकर उसे एक किले में घेर लिया. प्रताप सिंह और उसके पांच साथियों को गिरफ्तार कर फांसी की सजा दी गई.

“शिमला हिल स्टेट्स, जनता द्वारा विद्रोह”

 

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