व्यापारिक मेले
रामपुर का लवी मेला
रामपुर में यह बहुत पुराना व्यापारिक मेला हर साल 25 कार्तिक (नवंबर) से शुरू होकर तीन दिन तक रामपुर में चलता है। ऊन, पश्म, पट्टी, नमद, चिलगोजा, घोड़ों और खच्चरों का व्यापार इसमें होता है, जिसमें देश भर से व्यापारी आते हैं। इस मेले में तिब्बत और रामपुर राज्य का व्यापार होता था। रामपुर लवी को विश्वव्यापी मेला घोषित किया गया है। रामपुर में मार्च में लगने वाला एक और प्रसिद्ध मेला ‘फाग-मेला’ है। पुराने समय में, इस मेले का उद्देश्य था कि लोग शर्द ऋतु आने से पहले, जब सब कुछ बर्फ से ढक जाएगा, सामान बेच कर शर्द ऋतु के लिए आवश्यक सामान जमा कर लें। घोड़ों और खच्चरों को माल लाने-लेने के लिए प्रयोग किया जाता था।
बिलासपुर का नलवाड़ी मेला
बिलासपुर का नलवाड़ी मेला: पहले बिलासपुर के ऐतिहासिक “सांडु मैदान” में लगता था, जो अब गोबिन्द सागर में जल भर गया है। अब यह मेला ‘लुहणु’ नामक स्थान पर गोबिन्दसागर के किनारे शहर के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में लगाया जाता है। 17 मार्च, चैत्र मास के 4 प्रविष्टे से शुरू होकर सात दिन चलता है। शिमला हिल स्टेट्स के सुपरिटेण्डेंट श्री डब्ल्यू. गोल्डस्टीन ने 1889 में राजा अमर चन्द के शासनकाल में यह मेला शुरू किया था। यह पहले मुख्य रूप से पशु मेला था, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों से लोग अच्छी नसल के पशु लाकर स्थानीय लोगों को बेचते थे और कमजोर पशु ले जाते थे। कृषि में पशु बहुत महत्वपूर्ण हैं। अब भी मेले में पशुओं का व्यापार होता है, लेकिन अब यह एक सांस्कृतिक मेला भी बन गया है, जिसमें बिलासपुर और आसपास के जिलों से आने वाली स्त्रियों और बच्चों का मुख्य आकर्षण हिंडोले झूलना है। अन्तिम तीन दिनों के बाद दोपहर में मेले की मुख्य कुश्ती, नलवाड़ी की छिंज, होती है, जिसमें उत्तरी भारत के प्रमुख पहलवान भाग लेते हैं। ‘चांदी का गुर्ज’, जो हनुमान की गदा का प्रतीक है, अंतिम कुश्ती जीतने वाले पहलवान को दिया जाता है। यह मेला राज्यस्तरीय है।
दियोटसिद्ध मेला
हमीरपुर में दयोटसिद्ध मेला प्रत्येक रविवार को मेरा होता है। हजारों लोग शामिल हैं। ये मेले हरियाणा और पंजाब से आते हैं, साथ ही बिलासपुर शाहतलाई में भी होते हैं। दयोटसिद्ध की यात्रा शाहनलाई में सिद्ध की स्थापना पर मत्था टेकने के बाद पूरी मानी जाती है।
सुन्दरनगर नलवाड़ी
सुन्दरनगर नलवाड़ी: इसके बाद सुन्दरनगर में नलवाड़ी होती है, जो चैत्र 8 से शुरू होती है। पशुओं का भी क्रय-विक्रय होता है। नालागढ़ (सोलन), भंगरोटु (मंडी), जाहु व गसोता (हमीरपुर) अन्य महत्वपूर्ण नलवाड़ियां हैं। शिमला में प्रसिद्ध मशोवरा का ‘सीपी मेला’ भी है।
इसके अलावा, राज्य भर में हजारों मेले लगते हैं जो स्थानीय त्यौहारों, उत्सवों और देवी-देवताओं से जुड़े हैं, और उनका महत्व भी स्थानीय है। यह स्थानीय महत्व रखते हुए भी यहां के सांस्कृतिक जीवन का चित्रण करते हैं।
“प्रदेश के राज्य स्तरीय मेले व त्यौहार”
मैदानों में होने वाले मेलों की तरह पहाड़ों में भी मेलों का आयोजन उतना ही महत्वपूर्ण है। आम तौर पर बहुत से देवताओं की पूजा करने वाले लोगों के एकत्र होने पर मेला बन जाता है। हिमाचल प्रदेश के मेले और त्यौहारों को देखना चाहिए अगर हम उसके वास्तविक सांस्कृतिक जीवन को जानना चाहते हैं। निम्नलिखित हिमाचल प्रदेश राज्य और जिला स्तरीय मेले व त्यौहार हैं।
ग्रीष्मोत्सव (शिमला), होली (सुजानपुरटीहरा), मणीमहेश यात्रा (चम्बा), चेंचू मेला (रिवाल्सर), कालेश्वर मेला (ज्वालामुखी), ग्रीष्मोत्सव (धर्मशाला), नलवाड़ी (बिलासपुर), रेणुका मेला (सिरमौर), पारम्परिक जनजातीय दिवस (केल्लांग), सलूनी मेला (सोलन), शिवरात्री (बैजनाथ), होली (पालमपुर), लदरछा मेला (काजा
हिमाचल प्रदेश में होने वाले जिलास्तरीय मेले में शामिल हैं शरदोत्सव (ऊना), पौरी मेला (त्रिलोकनाथ), जनजातीय फुलैच मेला (रिब्बा), शिवरात्रि (काठगढ़ कांगड़ा), दशहरा (सराहन), नागणीमेला (नूरपुर), शरदोत्सव (हमीरपुर), फागमेला (रामपुर), बैशाखी (ज्वाली नूरपुर), मैला जोगिन्दर नगर, बैशाखी (राजगढ़) और मैला जोगिन्दर नगर।
सबंधित पोस्ट “हिमाचल चित्रकला का प्रमुख कला केन्द्र”