“जनपदो का इतिहास-1”

त्रिगर्त: उस समय यह क्षेत्र सतलुज और रावी नदियों के मध्य में फैला हुआ था और इसका मुख्य स्थान शायद मुल्तान था, लेकिन आज यह क्षेत्र मैदानों तक फैला हुआ है और इसे जालंधर और पहाड़ों में त्रिगर्त कहते थे. ईसा पूर्व दूसरी सदी में तीन नदियों द्वारा सिंचित क्षेत्र (रावी, व्यास और सतलुज) का नाम त्रिगर्त है, जिसका एक ओर बह्मी लिपि और दूसरी ओर खारोष्ठी के अक्षर हैं.

कुलिंद: विष्णु पुराण, वायु पुराण और महाभारत में कुलिंदों का वर्णन है, जिन्हें “कुलिंन्दोपाल्यकस” यानि पहाड़ों के चरणों में रहने वाला कहा गया है. विद्वानों ने कुलिंदों की राजधानी कुलिंद नगरी को वर्तमान राजवन के आस-पास पौंटा साहिब के नजदीक मानी है, जहां यमुना नदी बहती है, जिसका पौराणिक नाम कालिंदी भी है, कुलिंद या कुलिंदों का शासन प्रजातांत्रिक ढंग का था, जैसा कि ऊपर लिखित संस्कृत शास्त्रोक्ति से प्रकट होता है, सोलन, सिरमौर एवं उत्तराखंड के देहरादून आदि क्षेत्रों में था; बाद में यह नाम कुनिंद में बदलकर कुनैत में बदल गया और आज भी इस क्षेत्र के लोगों को कुनैत कह कर पुकारा जाता है.

औदुम्बर: यह भी हिमाचल प्रदेश का एक महत्वपूर्ण जनपद था, जिसका नाम पाणिनि ने ‘गणपथ’ में जालंधर निवासियों के साथ लिया है. वर्तमान कांगड़ा के नूरपुर, पठानकोट, गुरदासपुर एवं होशियारपुर तक के क्षेत्र को पुरातन औदुम्बर क्षेत्र कहा जाता है, जिसमें अधिकतर उदुम्बर वृक्ष पाए जाते थे.

गब्दिका: गब्दिका प्रदेश चम्बा आदि के वर्तमान क्षेत्र थे, जो औदुम्बरों के पड़ोसी थे और भेड़-बकरियां पाल कर ऊन का व्यापार करते थे, हालांकि इसके बारे में बहुत कुछ नहीं पता है. पाणिनि की अष्टाध्यायी में इनका वर्णन भी मिलता है.

कुल्लूत:- पुराणों, महाभारत और रामायण में कुल्लू का नाम आता है, और यह बहुत प्राचीन है. पौराणिक राजा पृथु, जिसके नाम पर धरती का नाम पृथ्वी पड़ा था और जिसने पृथ्वी से सत्रह प्रकार के धान्यों का दोहन किया था, को भी कुल्लू का राजा माना जाता था. प्रथम शताब्दी ई. के लगभग संस्कृत शब्द “विर्यसस्य राज्ञः कुल्ल

सिकन्दर का आक्रमण:

सिकन्दर ने ईसा पूर्व 326 वर्ष के लगभग भारत पर आक्रमण किया था और विपाशा यानि व्यास नदी के किनारे तक पहुंचा था, जहां से उसके सैनिकों ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया. इसका एक कारण था कि हिमालीय क्षेत्र दुर्गम थे और यहां के आयुद्धजीवी जनपदों ने उसके सैनिकों को मार डाला था.सिकन्दर का आक्रमण:

मौर्यकाल:

मौर्यकाल: सिकन्दर के आक्रमण के बाद चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य (324 ई. पू. से 300 ई. पूर्व) को भारत के अधिकांश भाग को जीत कर महाराजा बनाया. कहा जाता है कि चाणक्य ने नंदवंश को समाप्त करने के लिए जालंधर त्रिगर्त के राजा पर्वतक से संधि कर सहायता मांगी थी, जिसमें किरात, कुलिंद और खश आदि युद्धप्रिय जातियों को शामिल किया गया युद्ध जीतने के बजाय, अशोक महान ने बुद्ध धर्म का प्रचार करने का अभियान चलाया. उसने काशमीर और नेपाल के मध्यवर्ती क्षेत्र में मझ्झिम नामक बौद्ध भिक्षु को भेजा, जिसने महावंश के अनुसार हिमालीय क्षेत्रों सहित पांच राज्यों में बुद्ध धर्म का प्रचार किया.

शुंगकाल:

सौर्य वंश का अंतिम शासक ब्रहृदय को उसके सेनापति पुष्यमित्र ने मार डाला और शुंग नामक नए वंश की स्थापना की, जो 187 ई. पू. से 75 ई. पू. तक भारत का शासन करता था. मौर्यो का हिमाचल प्रदेश पर प्रभुत्व सांकेतिक था क्योंकि वे त्रिगर्त के राजा पर्वतक से मित्र थे और कुल्लूत के राजा चित्रवर्मन से युद्ध करते थे,

कुशान काल

कुशान काल: कुशान वंश 20 ई. से 225 ई. तक भारत पर महत्वपूर्ण शासन किया. इस वंश के दो शक्तिशाली शासक कनिष्क और हुविष्क थे, जिन्होंने हिमालय की जनता को नियंत्रित किया था, क्योंकि इन जनपदों से कोई सिक्के नहीं मिले हैं. इसके अलावा, कनिष्क, जो बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया, ने चौथी बौद्ध महासभा का आयोजन किया, परन्तु जैसे ही कुशानों की शक्ति क्षीण हुई, हिमालीय पहाड़ों के कुलिंदों और मैदानों के अर्जुनेय आदि संघों ने उन्हें निकाल फेंका. कुशानों का शासन काल बहुत लंबा नहीं था, लेकिन उन्होंने पहाड़ी जनपदों को काफी कमजोर कर दिया,

गुप्त काल:

गुप्त काल: उसके बाद चौथी शताब्दी में भारत में गुप्त वंश का राज्य स्थापित हुआ। समुद्रगुप्त (338–375 ई॰) और चन्द्रगुप्त विक्रमादित्व (375–414 ई॰) नामक प्रसिद्ध और शक्तिशाली राजा हुए, जिन्होंने पूरे देश को नियंत्रित किया और पहाड़ी राज्यों को कुचल दिया। चम्बा के लक्ष्मी नारायण मंदिर में गुप्त काल के अवशेष पाए गए हैं

हर्षवर्धन काल:

हर्षवर्धन काल: 606 ई. से 647 ई. तक भारतवर्ष में हर्षवर्धन का राज्य हुआ, जिसने पहाड़ों पर भी नियंत्रण जमाया. इसी दौरान चीनी यात्री ह्यूनसांग भारत आया और 629 ई. से 644 ई. तक भारत के विभिन्न भागों में घूमा. वह 635 ई. में जालंधर और त्रिगर्त आया, फिर कुल्लू और लहौल गया

“जनपदो का इतिहास-2”

 

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