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हिमाचल प्रदेश: उद्योग एवं खनिज विकास

हिमाचल प्रदेश: उद्योग एवं खनिज विकास

हिमाचल प्रदेश बहुत से प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न है, लेकिन इसके भौगोलिक परिवेश और दुर्गमता ने लंबे समय तक औद्योगिकीकरण को बाधित रखा। स्वतंत्रता से पहले कुछ जगहों तक पहुँचना असंभव था। बर्फ से ढके क्षेत्रों, कम यातायात ने औद्योगीकरण को धीमा कर दिया। फिर भी प्रारंभिक प्रयासों के तहत सिरमौर के राजा ने नाहन फाउंडरी की स्थापना की थी और 1948 में कोज़ा फैक्टरी शुरू हुई। मण्डी में नमक और निहरी में स्लेट उत्पादन जैसे स्थानीय उद्योग पहले से सक्रिय थे। सोलन में ब्रवरी (brewery) भी स्थापित हो चुकी थी।

हिमाचल प्रदेश: उद्योग एवं खनिज विकास
हिमाचल प्रदेश: उद्योग एवं खनिज विकास

1966 तक प्रदेश में औद्योगीकरण की गति धीमी रही, लेकिन सोलन और पांवटा साहिब में लघु औद्योगिक इकाइयों की स्थापना शुरू हुई। ग्रामीण व कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण और उत्पादन केंद्र बनाए गए जहाँ शॉल, गलीचे, फर्नीचर और जूते आदि का निर्माण होता था।

1967 के बाद राज्य सरकार ने औद्योगिक विकास की दिशा में गंभीर कदम उठाए। 1992 तक प्रदेश में लगभग 1,441 मध्यम और बड़े उद्योगों में 43,000 से अधिक लोग कार्यरत थे। 2009 तक यह संख्या बढ़कर 401 मध्यम-बड़े और 35,424 लघु उद्योगों तक पहुँच गई, जिनमें 2.24 लाख लोगों को रोजगार और 7,737 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश हुआ।

सरकार ने उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए 38 औद्योगिक बस्तियाँ और 15 औद्योगिक स्टेट्स विकसित की हैं। प्रदेश का शांत वातावरण, स्वच्छता और राजनीतिक स्थिरता देश-विदेश के उद्यमियों को यहाँ निवेश करने के लिए आकर्षित कर रही है।

प्रारंभिक औद्योगिक प्रयास

स्वतंत्रता से पूर्व ही सिरमौर राज्य में “नाहन फाउंड्री” की स्थापना तथा मंडी में नमक व स्लेट के दोहन जैसे प्रयास किए गए। सोलन में ब्रूरी की स्थापना भी एक महत्वपूर्ण कदम रहा। 1948 के बाद से औद्योगिक विकास में कुछ गति आई, जिसमें लघु उद्योगों को विशेष प्रोत्साहन मिला।

औद्योगिक विकास की स्थिति (2009 तक)

  • मध्यम और बड़े पैमाने की औद्योगिक इकाइयां: 401
  • लघु इकाइयां: 35,424
  • कुल रोजगार: 2.24 लाख लोग
  • पूंजी निवेश: ₹7,737.73 करोड़

राज्य में 38 औद्योगिक बस्तियाँ और 15 औद्योगिक स्टेट्स विकसित की गई हैं।

औद्योगिक प्रोत्साहन नीतियाँ

  • केंद्र सरकार द्वारा हिमाचल को पिछड़ा औद्योगिक राज्य घोषित किया गया।
  • राज्य सरकार द्वारा ऋण, करों में छूट, चुंगी व बिजली दरों में रियायतें।
  • स्थानीय उत्पादों को सरकारी खरीद में प्राथमिकता।
  • 2003 में NDA सरकार द्वारा विशेष औद्योगिक पैकेज की घोषणा।

प्रमुख औद्योगिक केंद्र

हिमाचल प्रदेश में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रमुख स्थानों पर औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना की गई है। इन क्षेत्रों में परवाणु, बरोटीवाला, बद्दी, पौंटा साहिब, मैहतपुर, सोलन, मण्डी, हमीरपुर, चम्बा, अम्ब, और केलांग जैसे प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं। इसके अलावा अन्य स्थानों पर भी औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना के लिए भूमि चिन्हित की जा रही है।

राज्य सरकार ने औद्योगिक विकास की दृष्टि से प्रदेश को A, B, और C ग्रेड में विभाजित किया है, जो सीमावर्ती राज्यों की निकटता, पिछड़ापन, तथा रोजगार क्षमता के आधार पर किया गया है।

  • परवाणु, बद्दी, बरोटीवाला, पौंटा साहिब, सोलन, ऊना, मंडी, चंबा आदि।
  • धर्मपुर, नालागढ़, सोलन, नाहन, ऊना, कांगड़ा, हमीरपुर, कुल्लू, बिलासपुर आदि क्षेत्रों को ग्रेड A, B और C में विभाजित किया गया है।

उद्योगों का वर्गीकरण

  • लघु उद्योग: 35 लाख तक की लागत
  • मध्यम उद्योग: 35 लाख से 5 करोड़ तक
  • बड़े उद्योग: 5 करोड़ से अधिक लागत
  1. वनों पर आधारित उद्योग (Forest-Based Industries):

    इसमें जकड़ी, बिरोजा और जड़ी-बूटियों से संबंधित उद्योग शामिल हैं। ये उद्योग वनों से प्राप्त प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हैं।

  2. बागवानी पर आधारित उद्योग (Horticulture-Based Industries):

    ऐसे उद्योगों में फलों की पैकिंग के डिब्बे बनाना, फलों का संरक्षण (जैसे मुरब्बा, अचार, रस निकालना) शामिल हैं।
    अन्य संबंधित गतिविधियों में मधुमक्खी पालन और रेशम उद्योग जैसे क्षेत्र भी आते हैं।

  3. खनिजों पर आधारित उद्योग (Mineral-Based Industries):

    प्रदेश में स्लेट, उर्वरक, लौह उद्योग और अल्यूमिनियम उद्योग जैसे उद्योग विकसित हो सकते हैं, क्योंकि हिमाचल की धरती विभिन्न प्रकार के खनिजों से भरपूर है।

  4. कृषि पर आधारित उद्योग (Agriculture-Based Industries):

    इसमें मछली पालन, सुअर पालन, आयुर्वेदिक दवाओं और जड़ी-बूटियों से संबंधित उद्योग शामिल हैं। ये उद्योग कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों पर निर्भर हैं।

  5. अन्य उद्योग (Other Industries):

    हिमाचल की धूल-रहित जलवायु इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के निर्माण के लिए उपयुक्त है।
    यहां घड़ियों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण से जुड़े उद्योगों का विकास हुआ है।
    इसके अलावा, अखबारी कागज बनाने के लिए आवश्यक घास और लकड़ी की उपलब्धता के कारण इससे संबंधित उद्योगों की भी संभावनाएं हैं।

रेशम उद्योग हिमाचल प्रदेश का एक महत्वपूर्ण कुटीर उद्योग है, जिससे लगभग 9,200 ग्रामीण परिवारों को रेशम कोकून उत्पादन के माध्यम से रोजगार मिल रहा है।
राज्य में 9 रेशम धागा रीलिंग यूनिट स्थापित हैं — इनमें से तीन कांगड़ा व बिलासपुर में और एक-एक हमीरपुर, मण्डी व ऊना में सरकारी सहायता से स्थापित की गई हैं।
यह उद्योग ग्रामीण आजीविका और पारंपरिक हस्तशिल्प को प्रोत्साहन देता है।

प्रमुख स्थापित उद्योग

  • सिमेंट उद्ययोग
    सिमेंट उद्ययोग

    सीमेंट उद्योग:

    • राजबन (सिरमौर): 600 टन/दिन उत्पादन क्षमता
    • गागल (बिलासपुर): 1700 टन/दिन उत्पादन क्षमता
    • दाड़लाघाट व बाघा (सोलन): प्रमुख सीमेंट उत्पादन केंद्र
  • बिरोजा उद्योग:
    • नाहन (सिरमौर) व रघुनाथपुरा (बिलासपुर) में स्थित
  • नाहन फाउंडरी (सिरमौर):
    • पम्पिंग सेट, मोटरें व लोहे के उपकरणों का निर्माण
  • खाद और ऊन उद्योग:
    • हिमाचल खाद फैक्ट्री (नालागढ़, सोलन)
    • हिमाचल वूल प्रोसेसर्स व वर्स्टेड मिल्स (नालागढ़)
  • फ्रूट कैनिंग यूनिट्स:
    • परवाणु व धौलाकुआं में स्थापित
  • अन्य निजी उद्योग:
    • बरोटीवाला, मैहतपुर, परवाणु आदि स्थानों पर सक्रिय
  • सोलन ब्रूरी (सोलन):
    • पुरानी और प्रतिष्ठित शराब निर्माण इकाई, मोहन मेकिन्स समूह द्वारा स्थापित।

इन उद्योगों ने राज्य के औद्योगिक विकास को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

निगम एवं संस्थान

हिमाचल प्रदेश सरकार ने औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कई स्वायत्त संस्थाएं (निगम) स्थापित की हैं, जो उद्यमियों को ऋण, आर्थिक सहायता व कच्चा माल प्रदान करती हैं। प्रमुख निगम हैं:

  • आर्थिक निगम – औद्योगिक इकाइयों व ट्रांसपोर्टरों को ऋण देता है।
  • हिमाचल प्रदेश खनिज व औद्योगिक विकास निगम – भारतीय औद्योगिक विकास बैंक द्वारा सहायता प्राप्त; स्वयं की औद्योगिक इकाइयां भी हैं।
  • हैण्डिक्राफ्ट व हैण्डलूम्स कार्पोरेशन – हस्तशिल्प व हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने हेतु।
  • खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड – ग्रामीण व कुटीर उद्योगों के लिए कार्यरत।
  • लघु उद्योग व निर्यात निगम – छोटे उद्योगों और निर्यात को सहायता प्रदान करता है।
  • इलैक्ट्रानिक्स कार्पोरेशन – इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के विकास के लिए।

प्रदेश में औद्योगिक विकास हेतु सर्वेक्षण जारी है, और निकट भविष्य में इस क्षेत्र में तीव्र प्रगति की संभावनाएं हैं।

औद्योगिक नीति एवं प्राथमिकताएं

1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद हिमाचल सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से सामाजिक विकास कार्यक्रम लागू किए, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य, बागवानी आदि क्षेत्रों में राज्य ने उल्लेखनीय प्रगति की। हालांकि, औद्योगिक विकास के मामले में हिमाचल अभी भी हरियाणा, पंजाब व अन्य राज्यों से पीछे है। इसका मुख्य कारण है औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक आधारभूत ढांचे की कमी, जैसे—रेलवे नेटवर्क, अच्छी सड़कें, कच्चे माल की उपलब्धता और अनुकूल भौगोलिक स्थितियाँ। इन सुविधाओं के अभाव में राज्य में औद्योगिक विस्तार सीमित रहा है।

  • प्राथमिकता: ग्राम्य और कुटीर उद्योगों को सर्वोपरि
  • श्रेणियाँ:
    • अ और ब: व्यापारिक महत्व की वस्तुएं
    • स: स्थानीय मांग की वस्तुएं
    • द: सरकारी कच्चे माल पर आधारित
    • ध: बाहरी साधनों पर आधारित

औद्योगिक पैकेज का प्रभाव

सन् 2003 में केंद्र सरकार द्वारा हिमाचल प्रदेश को औद्योगिक विकास हेतु विशेष औद्योगिक पैकेज प्रदान किया गया। इस पैकेज के चलते 2010 तक राज्य में तेज़ी से औद्योगिक वृद्धि हुई। इस अवधि में 8375 लघु, 298 मध्यम और बड़े उद्योग स्थापित हुए, जिनमें 1393 करोड़ रुपये का निवेश हुआ और लगभग 1.15 लाख लोगों को रोजगार मिला।

औद्योगिक पैकेज के चलते हिमाचल की शुद्ध घरेलू उत्पाद (NSDP) वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से अधिक हो गई, और प्रति व्यक्ति आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। 2003-04 में NSDP जहाँ 18127 करोड़ था, वह 2011-12 तक बढ़कर 51688 करोड़ हो गया। इसी तरह प्रति व्यक्ति आय 2002-03 में 22795 रुपये से बढ़कर 2011-12 में 74899 रुपये तक पहुँच गई।

हालांकि, अप्रैल 2010 में औद्योगिक पैकेज की समाप्ति के बाद राज्य की औद्योगिक प्रगति धीमी पड़ गई। निवेशकों का रुझान अन्य राज्यों की ओर मुड़ गया, जिससे बेरोजगारी और आर्थिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा। पैकेज की समाप्ति के बाद NSDP की वृद्धि दर भी भारत के औसत से कम हो गई, जिससे स्पष्ट होता है कि यह औद्योगिक पैकेज हिमाचल की अर्थव्यवस्था के लिए एक अहम प्रेरक था।

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