सामाजिक संरचना, जातियां, धर्म व जनजातियां
सामाजिक व्यवस्था
हिमाचल प्रदेश का भौगोलिक स्थान और लोगों का सांस्कृतिक जीवन सुरक्षित रखने का प्रयास देश भर में उसे अलग बनाता है. हमारे धार्मिक ग्रन्थों में स्थानीय जनजातियों का इतिहास बताया गया है. हिमाचल प्रदेश एक गांव है. हिमाचल प्रदेश की जनसंख्या का लगभग 91.31 प्रतिशत गांवों में रहता है. 8.69% लोग शहर में रहते हैं. उनमें से अधिकांश शहरों में रहने वाले गांवों के लोग हैं. लहौल-स्पिति जिले की आधी जनसंख्या गांवों में रहती है. प्रदेश के अधिकांश लोग शिवालिक पहाड़ियों और बाह्य हिमालय क्षेत्र में रहते हैं. जनसंख्या घनत्व घटता जाता है जैसे-जैसे पहाड़ ऊपर उठते जाते हैं.
जातियां:
हिमाचल प्रदेश में बसने वाले लोगों में से ऊपरी भाग के लोग सबसे पुराने हैं. हिमाचल प्रदेश में कोली, हाली, चनाल, रेहाड़, लुहार, बाढ़ी, डागी, ढाकी, और तुरी आदि जाति के लोग मूल निवासी हैं. साथ ही हिमाचल के पुराने लोगों में कुनैत, खश या खस भी शामिल हैं. कुनैत या खश अपने आप को राजपूत मानते हैं. हिमाचल प्रदेश में रहने वाली अन्य जातियां निम्नलिखित हैं: ब्राह्मण, राजपूत (मियां जो खुद को खशों या कुनैतों से उच्च वंशीय मानते हैं और जिनकी प्रमुख उपजातियां चन्देल, सेन, कटोच, मिन्हास, पठानियां, रणौत, पटियाल, जसवाल आदि हैं), खत्री, घिरथ आदि. चमार, जुलाहे डुमणे, तरखान, छिंबे, चुहड़े और अन्य हरिजन जातियां हैं. इसके अलावा, कुछ जातियां अपने काम से जानी जाती हैं, जैसे कुम्हार, झीवर और नाई.
धर्म :-
हिमाचल प्रदेश की लगभग 96 प्रतिशत जनसंख्या हिंदू है. यहाँ बुद्ध, इस्लाम, सिक्ख, ईसाई और जैन धर्मों के लोग भी रहते हैं.
जनजातियां (Tribes):
इस क्षेत्र में कुछ ऐतिहासिक समूह हैं. इन कबीले लोगों को हिन्दू या बौद्ध धर्म मानते हैं. इनमें से केवल मुस्लिम गुज्जर मुस्लिम धर्म का पालन करते हैं. इन कबीलों का विवरण निम्नलिखित है:
किन्नर:
आज के किन्नौर लोगों को किन्नर या किन्नौरा कहते हैं. किन्नर शब्द संस्कृत के दो शब्दों किम+नरः से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “किम नर:”; इसका अर्थ क्या है? यम किम नरः यह प्रश्न शायद इसलिए उठाया गया क्योंकि किन्नर पुरुषों की दाड़ी नहीं होती, जो एक पुरुष की पहचान है. ऋग्वेद, महाभारत और अन्य भारतीय ग्रंथों में किन्नर को यक्षों और गंधवों के रूप में बताया गया है. शास्त्रों में इन्हें उच्च गुणों, सरल स्वभाव, सुन्दर शरीर, सुरीले कंठों के कारण देव कहा गया है. हिमालय में अर्जुन को अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े की रक्षा करते समय किन्नर मिले. यक्षों और गंधर्वों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती, क्योंकि किन्नर बहुत प्राचीन काल से अपनी मौलिकता बनाए हुए हैं. यक्ष शब्द विकृत हो सकते हैं, फिर खुश या खस बन जाते हैं, जिसमें पुराने यक्ष ही रहते हैं. गंधर्व अश्वपति बन गए, जो स्पिति के निवासी हो सकते हैं. किन्नर हिंदू और बौद्ध हैं। उन्हें सम्मानपूर्वक नेगी भी कहा जाता है. इन लोगों का मुख्य व्यवसाय भेड़-बकरियां, घोड़े पालना और ऊन का व्यापार था, लेकिन अब वे कृषि और बागवानी में भी किसी से पीछे नहीं हैं. कई किन्नर उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और देश और प्रदेश में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं.
गद्दी
गद्दी भरमौर क्षेत्र में रहता है. यही कारण है कि ये लोग धौलाधार की दोनों उपत्यकाओं में रहते हैं. इतिहासकार गद्दियों को मुस्लिम आक्रमणों से बचने के लिए पहाड़ों की ओर भागते देखा है. लेकिन ऐसा नहीं लगता. गद्दी लोग वास्तव में बहुत प्राचीन हिमाचल के मूल निवासियों में से हैं, भले ही मैदानों से खत्री जाति के लोग आकर गद्दी जाति का अंग बन गए हों. गद्दियों के परंपरागत विशिष्ट पहनावे इसकी पुष्टि करते हैं. पाणिनि की ‘अष्टाध्यायी’ में गद्दी और गन्दिका प्रदेश (गद्दी का अपभ्रंश रूप) का वर्णन है. इस जाति का इतिहास बहुत पुराना है. गद्दी लोग भेड़-बकरियां पालते हैं. सर्दियों में वे अपने पशुओं को लेकर इन ठण्डे क्षेत्रों से निकल जाते हैं और गर्मी पड़ने पर ऊपर जाते हैं.
पेंगाल:
चम्बा के पांगी क्षेत्र में रहने वाले लोगों को पंगवाला कहते हैं. इस समय प्रदेश का सबसे दुर्गम क्षेत्र पांगी है, जिसमें सर्दियों में देश के हर हिस्से से संपर्क है. यह क्षेत्र अभी भी सड़क से नहीं जुड़ा है. दंतकथा कहती है कि मुस्लिम काल में कुछ राजपूत इस दुर्गम क्षेत्र में अपनी स्त्रियों और कुछ गुलामों को लेकर बस गए. युद्ध में भाग लेने के लिए लोग मैदानों में गए और वापस नहीं आए. यह कहा जाता है कि स्त्रियों ने गुलाम नौकरों से विवाह कर लिया और पंगवाले उनकी संतान है, लेकिन ऐसा नहीं लगता. मैदानों से भागकर आने वाले लोग इतनी दूरस्थ जगह क्यों जाते हैं? पांगी घाटी के लोग बहुत पुराने हैं. इनका कार्यक्षेत्र कृषि है. पंगवाल समाज में कई जातियां हैं। क्योंकि इस क्षेत्र में अनाज की बहुत कमी है, पंगवाल अनाज से छड़क को नहीं निकालते, बल्कि उसे पीस लेते हैं. पंगवाल समाज में महिलाओं का महत्वपूर्ण स्थान है. अंग्रेजी काल में इस क्षेत्र में भेजे गए व्यक्ति को मृत्यु भत्ता भी दिया जाता था क्योंकि यह इतना दुर्गम और दूरस्थ था. क्योंकि माना जाता था कि कोई भी वापस नहीं आएगा. 4. लहौले और भाषण: स्थानीय लोगों को लहौल कहते हैं. स्थितन को भोट भी कहते हैं. इसके बावजूद, इन लोगों की क्षमताएं तिब्बतियों से मिलती हैं. लेकिन इनका कद बहुत छोटा है. लहौल में रहने वाले लोग हिंदू और बौद्ध हैं। स्थितन बौद्ध हैं, लेकिन हिन्दू धर्म भी इसे प्रभावित किया है. स्थितन और लहील आर्य और मंगोल लोगों का मिलाप था.
ये लोग व्यापारी हैं. यह लोग पहले शर्द ऋतु में अपने क्षेत्र को छोड़कर अपने पशु लेकर प्रदेश के निचले इलाकों में आते थे; आज भी कुछ लोग ऐसा करते हैं, लेकिन कम. अधिकांश लोग अपने स्थानीय उत्पादों को दूसरे स्थानों पर बेचते हैं. हालाँकि पहले वे व्यापार करते थे, अब वे खेती करते हैं और आलू, कुठ, जीरा जैसी नकदी फसलें पैदा करके देश भर में भेजते हैं.
गुज्जर लोग हिमाचल प्रदेश के मूल निवासियों में से नहीं हैं; वे भारत में आक्रांता बनकर हिन्दूकुश पर्वत के पार से आए थे और फिर यहीं रह गए थे. प्रदेश में हिंदू और मुस्लिम गुज्जर हैं। हिंदू गुज्जर गांव में बसकर कृषि और अन्य व्यवसाय करते हैं, लेकिन मुस्लिम गुज्जर घुमक्कड़ हैं और पशु, खासकर भैंसें, लेकर घूमते रहते हैं और दूध बेचते हैं. दूध उत्पादन में परिवार का हाथ गुज्जरानियां देते हैं. ये शरीर लंबा और सुंदर हैं.
मुसलमान
प्रदेश में भी बहुत से मुसलमान लोग हैं. हिंदुओं के बाद मुसलमानों के गुज्जर, शायद “हून” जाति से संबंधित हैं. इनसे सम्बंधित पहली जानकारी पांचवीं शताब्दी से ही मिलती है. ये लोग परिश्रमी, सच्चे और वीर हैं. ये संख्या का लगभग 2% है. इनमें शिया और सुन्नी धर्मों के लोग शामिल हैं. यह भी कृषि का व्यवसाय है. पुराने लोगों में से कुछ लोग छिमों, मेलों और अन्य उत्सवों पर ढोल बजाना, ‘भरबाई’ (कोहलू चलाकर तेल निकालना), ‘बंजारे’ (चूड़ियां बेचना) आदि का व्यापार करते थे.
लहौल-स्पिति और किन्नौर में जनसंख्या का एक भाग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं परन्तु इसे हिन्दू और बौद्ध संस्कारों के मिश्रण का ही रूप समझा जाना चाहिए जिसमें लामाबाद एवं तांत्रिकता की प्रधानता है।