“विकासात्मक कार्य, पंचायतीय राज संस्थाए”

विकासात्मक कार्य

विकासात्मक कार्य: प्रत्येक जिले को विकास खंडों में विभाजित किया गया है और प्रत्येक खंड को ग्राम सेवक सर्कलों में विभाजित किया गया है, जिससे विकास कार्य को नियंत्रित किया जा सके. विकास खंड का इन्चार्ज खंड विकास अधिकारी होता है, जबकि ग्राम सेवक सर्कलों का इन्चार्ज ग्राम विकास अधिकारी होता है। खंड विकास अधिकारी भी जिलाधिकारी के अधीन है. वर्तमान में राज्य में 78 (2014) विकास खंड हैं.

प्रदेश में पंचायती राज संस्थाएं तीन स्तरीय हैं. ग्राम पंचायतों, पंचायत समितिओं और जिला परिषदों का स्थान है.

पंचायतीय राज संस्थाए

हिमाचल प्रदेश में 1962 के पंचायत अधिनियम के तहत पहली पंचायतें बनाई गईं. हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1968, इस समय लागू है. 1987 में इसमें भी काफी बदलाव किए गए हैं. वर्तमान कानून के अनुसार, एक या एक से अधिक गांवों में रहने वाले किसी भी व्यक्ति की ग्रामसभा होगी जो 18 वर्ष या इससे ऊपर हो. ग्रामसभा के लिए कम से कम एक हजार और अधिक से अधिक पांच हजार लोगों की आवश्यकता होती है. प्रत्येक गांव की सभा अपने सदस्यों से एक गांव पंचायत चुनेगी.

ग्राम पंचायत में एक प्रधान, एक उप-प्रधान और 5 से 13 तक सदस्य होंगे, जो गुप्त मतदान से चुने जाएंगे. सहविकल्पन का प्रावधान था जब पुरुष या महिला सदस्य चुने जाते थे. जिस गाँव की जनसंख्या १५०० से कम हो, उसमें पंचायत के पांच सदस्य होंगे. जनसंख्या 1500 से 2500 तक होने पर 7 सदस्य होंगे; 2500 से 3500 तक होने पर 9 सदस्य; 3500 से 4500 तक होने पर 11 सदस्य; और 4500 से अधिक होने पर 13 सदस्य होंगे. ग्राम पंचायत लगभग हर पांच वर्ष तक चुनी जाती है. पंचायतों में महिलाओं को ३३ प्रतिशत आरक्षण दिया गया है. महिला आरक्षण के कारण पंचायतों में महिला सदस्यों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

ग्राम पंचायत जहां वे अपने-अपने क्षेत्र में विकास कार्यों की व्यवस्था और निगरानी करेंगे. वहां उसे नागरिक और आपराधिक अधिकार भी दिए गए हैं. वह पांच सौ रुपये के सिविल दावों के विवादों को हल करके डिग्री प्राप्त कर सकती है. ग्राम पंचायत हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1968 में वर्णित अपराधों को सुन सकती है और जुर्माने की सजा दे सकती है, जो भारतीय दंड संहिता में वर्णित हैं. आज राज्य में 3243 पंचायतें हैं।

खंड स्तर पर एक पंचायत समिति बनाई जाती है. इसके लिए दो पंचायतों की बैठक होती है और एक प्रतिनिधि चुनती है. पंचायत समिति क्षेत्र की सहकारी समितियां भी दो सदस्यों को इसमें भेजती हैं. साथ ही महिलाओं और हरिजनों को भी सहविकल्पित किया जाता है. क्षेत्र के विधानसभा सदस्य इसके संबंधित सदस्य हैं. इसमें कुछ अधिकारी पदेन सदस्य हैं.

पंचायत समिति के सदस्य पांच वर्ष के लिए गुप्त मतदान द्वारा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनते हैं. सम्बद्ध और पदेन सदस्यों को वोट नहीं डालने का अधिकार है. वर्तमान में राज्य में कुल 78 पंचायत समिति हैं। जिला परिषद जिला स्तर पर बनाई जाती है. पंचायत समिति के सदस्यों में प्रत्येक का अध्यक्ष और ४० से कम पंचायतों वाली पंचायत समिति का एक और इससे अधिक पंचायतों वाली पंचायत समिति के दो गुप्त मतदान से चुना गया प्रतिनिधि शामिल हैं. इसके अन्य सदस्यों में जिले के विधान सभा सदस्य, राज्य और लोक सभा के सदस्य और जिलाधीश शामिल होंगे, लेकिन वोट देने का अधिकार नहीं होगा. जिला परिषद् का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी पांच साल के लिए चुना जाता है. हिमाचल प्रदेश पंचायती राज संशोधन अधिनियम के अनुसार अब जिला परिषद और पंचायत समिति के सदस्यों को भी प्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है.

हिमाचल: पंचायती राज प्रणाली

त्रिस्तरीय पंचायती राज (संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992) व्यवस्था बनाई गई है. इसके अनुसार, सबसे कम, यानी ग्राम ग्रामसभा स्तर पर होती है.खंड स्तर पर क्षेत्र पंचायतों और जिला स्तर पर जिला पंचायतों का गठन किया गया है.पंचायतों का आक

खंड स्तर पर क्षेत्र पंचायतों और जिला स्तर पर जिला पंचायतों का गठन किया गया है.

पंचायती राज के संबंध में उपबंध (भाग 1)

  • अनुच्छेद 243 में परिभाषाएँ दी गई हैं
  • अनुच्छेद 243 में सूचीबद्ध ग्रामसभा
  • अनुच्छेद 243 ख—ग्राम पंचायतों का गठन और उनकी संरचना
  • अनुच्छेद 243: आरक्षण
  • अनुच्छेद 243: पंचायतों का कार्यकाल
  • अनुच्छेद 243 च में सदस्यता के लिए अयोग्यताओं का उल्लेख है
  • अनुच्छेद 243 में छ पंचायतों की शक्तियों, अधिकारों और जिम्मेदारियों का उल्लेख है.
  • अनुच्छेद 243 ज: पंचायतों द्वारा कर लगाने का अधिकार और उनकी संपत्ति
  • अनुच्छेद 243, वित्त आयोग की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन
  • अनुच्छेद 243 में पंचायतों के लेखकों की जांच और अनुच्छेद 243 ट में पंचायतों के लिए चुनाव
  • अनुच्छेद 243 और संघ राज्य क्षेत्रों में लागू होना
  • अनुच्छेद 243 इस खंड को कुछ राज्यों में लागू नहीं करता
  • अनुच्छेद 243: मौजूदा कानूनों और पंचायतों की निरंतरता; अनुच्छेद 243: निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों की भूमिका
  • वर्णन: 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले राज्यों में मध्यवर्ती क्षेत्र पंचायत नहीं बनाई जाएगी. राज्यों की विधियों में निम्नलिखित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई है:
  • ग्राम पंचायत का अध्यक्ष मध्यवर्ती (क्षेत्र) पंचायत का सदस्य होता है

“सामाजिक संरचना, जातियां, धर्म व जनजातियां”

 

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