बागवानी (Horticulture)

हिमाचल प्रदेश में समशीतोष्ण और उष्ण कटीबन्धीय फलों की खेती करने के लिए उपयुक्त भूमि है. इसकी जलवायु, भौगोलिक क्षेत्र और स्थिति, उपजाउ, गहन और उचित जल निकास प्रणाली हैं। यह क्षेत्र भी अन्य गौण उद्यान्न उत्पादन की खेती के लिए बहुत उपयुक्त है, जैसे शहद, मशरूम, फूल और हौप्स। हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में बागवानी का एक विशेष स्थान है। इस समय राज्य को सेब का राज्य कहा जाता है। यहां जलवायु और समुद्रतल से ऊंचाई की विविधता के कारण कई प्रकार के फलों के विकास की संभावनाएं हैं, जिनमें सेब सबसे अधिक लोकप्रिय है।

जबकि देश का 6.4 प्रतिशत फसलाधीन क्षेत्र बागवानी के अधीन है, हिमाचल प्रदेश में इसका 21 प्रतिशत बागवानी है। 1990–1991 के अंत तक, राज्य के 9.80 लाख हैक्टेयर कृषि क्षेत्र में से 1.63 लाख हैक्टेयर बागवानी में बदल गए। बागवानी क्षेत्र का लगभग 47 प्रतिशत सेव है, लेकिन सेब प्रदेश में फलों का कुल उत्पादन 83 प्रतिशत है। 2007-08 में फलों का क्षेत्र 2,00,502 हैक्टेयर था और 7.13 लाख टन फलों का उत्पादन हुआ था। 2009 तक, 2,327 हैक्टेयर अधिक जमीन पर फलों का उत्पादन किया गया था।

2010–2011 का साल फलोत्पादन की दृष्टि से बेहतरीन था। फलोत्पादन की मात्रा इस समय एक नए रिकार्ड के साथ दस लाख मीट्रिक टन से अधिक हो गई। 2010–11 में 2,11,295 हेक्टेयर क्षेत्र में फूल लगे। सेब की 8,92,112 मीट्रिक टन बंपर फसल के साथ कुल 10,27821 मीट्रिक टन फलों का उत्पादन हुआ। 2004–2005 में 1,86,903 हेक्टेयर जमीन फलोत्पादन के लिए उपयोगी थी, आंकड़े बताते हैं। उस समय 6,92,011 मीट्रिक टन फल प्रदेश में उगाए गए थे। नई तकनीक, मौसम और फलोत्पादन की ओर आकर्षित किसानों के चलते प्रदेश में फलों को उगाने का क्षेत्र लगातार बढ़ता गया। 2016 में यह 2,24,352 हेक्टेयर तक पहुंच गया था, जो एक दशक में करीब 38 हजार हेक्टेयर की वृद्धि है।
विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र तथा उनमें उत्पादित होने वाले फल :-

क्र.सं. नाम खंड समुद्रतल से ऊंचाई फल जो पैदा होते हैं।
1. निम्न पहाड़ी या उपाष्ण खंड 350-900 मीटर के बीच

 

 

आम, लिची, लुकाट, पपीता, संतरा, गलगल, निम्बू, झमेरी, पपीता, पैर, गड़ा, नापी आडू, अमरूद, पलम, अंगूर व जामुन आदि।
2. मध्य पहाड़ी या उप- शीतोष्ण खंड 900-1600 मीटर के बीच

 

आडू, पलम, खुमानी, नाशपाती, अनार, परसिमन, बादाम आदि।
3. उच्च पहाड़ी या शीतोष्ण खंड 1600-2700 मीटर के बीच सेब, नाशपाती, (नाख), बादाम, अखरोट, चैरी और चैस्टनट ।
4. शीतल शुष्क खंड 2700-3600 मीटर के बीच अंगूर, खुमानी की खुश्क की जाने वाली किस्म आलूबुखारा, बादाम, चिलगोजा, सारदामैलन, हाप्स, पिस्ता और सेव ।

2014-15 में राज्य में 2,24,352 हेक्टेयर क्षेत्र में विभिन्न किस्मों का फल उगाया गया था, जिससे 7,51,938 मीट्रिक टन फल उत्पादित हुए थे। इनसे 3582 से 91 करोड़ रुपए की आय हुई। सेब के बाद आम उगाया जाता है। 2014-15 में 41105 हेक्टेयर क्षेत्र में 47612 मीट्रिक टन औसत फसल हुई। फलोत्पादन राज्य की आर्थिकी को बढ़ा रहा है। प्रदेश में फलों की पैदावार 2015-16 में नौ लाख मीट्रिक टन के पार जा पहुंची, जो नई तकनीकों, किसानों की मेहनत और मौसम की सहायता से पांच साल बाद हुआ था।

2010–2011 का साल फलोत्पादन की दृष्टि से शानदार रहा, जब फलोत्पादन का आंकड़ा दस लाख मीट्रिक टन के पार जा पहुंचा था, जो एक नए रिकॉर्ड था। 2010–2011 में 211295 हेक्टेयर क्षेत्र में फलों का उत्पादन 1027821 मीट्रिक टन हुआ था। इसके अलावा, प्रदेश में कभी भी दस लाख मीट्रिक टन से अधिक फलों की पैदावार नहीं हुई है। 2004–2005 में, राज्य में 186903 मीट्रिक टन फल उगाए गए और 692011 मीट्रिक टन फल उगाए गए। 224352 हेक्टेयर में अब फसल उत्पादन होता है। यानी कि एक दशक में राज्य में फलोत्पादन क्षेत्र में लगभग 38 हजार हेक्टेयर का विस्तार हुआ है। इस क्षेत्र में एक बार उत्पादन चार लाख मीट्रिक टन से भी कम था।

2015-16 में प्रदेश में 9,28,830 मीट्रिक टन फल का उत्पादन हुआ था और फलों के कारोबार का ग्राफ लगभग चार हजार करोड़ रुपये था। इस समय प्रदेश में तीस से अधिक किस्मों के फल उगाए जा रहे हैं। यहाँ मुख्यतः सेब, आम, प्लम, संतरा, किन्नू और नाशपाती का उत्पादन होता है।

हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन:

कैप्टन आर सी ली, एक अंग्रेज, ने हिमाचल प्रदेश में सेबों का पहला बगीचा कुल्लू घाटी के ‘बुन्दरोल’ में लगाया था। अंग्रेजों ने फिर मनाली, रायसन और नग्गर में सेब के बगीचे बनाए। जब बात शिमला पहाड़ियों में सेब के आने की है, तो सन् 1887 ई. में अलेग्जेंडर काउटस ने मशोबरा में सेबों का पहला बगीचा लगाया था। काउटस का बगीचा हिमाचल प्रदेश उद्यान विश्वविद्यालय का क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र है। परन्तु वास्तव में, 1918 ई. में सैमुअल इवान्स स्टोक्स (बाद में सत्यानन्द स्टोक्स) ने अमेरिका से सेब लाकर कोटगढ़ में मिठाई की खेती की। स्टोक्स महोदय ने सेब की खेती की सफलता देखकर स्थानीय लोगों को भी पौधे बांटे और सेब के बगीचे बनाने के लिए प्रेरित किया। उसने भी पौधों की नर्सरी बनाई। 1950–1951 में सेब केवल 500 हैक्टेयर में फैले थे। सरकार द्वारा किए गए प्रगतिशील उपायों के कारण आज 74,469 हैक्टेयर के लगभग क्षेत्र में सेब उत्पादित किए जाते हैं, और 1994-95 में 122.78 हजार टन सेब का उत्पादन हुआ था। 1989-1990 सेब उत्पादन में 394.87 मिलियन टन की लगातार कमी आई है। 2008-09 तक, सेब उत्पादन 510.07 हजार टन था और लगभग 94726 हैक्टेयर क्षेत्र में सेब उत्पादन हुआ था। 1960–1961 में सेब के अतिरिक्त समशीतोष्ण फलों के अंतर्गत 900 हैक्टेयर क्षेत्र 1960–1961 में सूखे फल तथा मेवों का क्षेत्र 231 हैक्टेयर से बढ़कर 2007–2008 में 11,181 हैक्टेयर हो गया, जबकि निम्बू प्रजाति का क्षेत्र 1,225 हैक्टेयर से बढ़कर 21,373 हैक्टेयर हो गया, जबकि उपोषण देशीय फलों का क्षेत्र क्रमश: 21,373 हैक्टेयर से बढ़कर 46,881 हैक्टेयर हो गया। अन्य फलों के उत्पादन में पिछले कुछ वर्षों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

फल-उद्यान विकास योजनाओं का मुख्य उद्देश्य सभी फल फसलों को बढ़ावा देना है, इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं और रख-रखाव में निवेश करना चाहिए। फलोत्पादन, क्षेत्रीय, औषधीय और सुगन्धित पौधों, छोटी अवधि के अनुसंधान, अखरोट, हैजलनट, पिस्ता, आम तथा लीची के विकास, स्ट्राबेरी और नई तकनीकों की जानकारी के कार्यक्रम इस परियोजना का हिस्सा हैं।

आम अब एक प्रमुख फसल बन गया है। लीची भी कुछ क्षेत्रों में महत्वपूर्ण हो रही है। लीची और आम दोनों सस्ता हैं। नए फलों जैसे किवी, जैतून, पीकैन और स्ट्राबेरी की खेती के लिए कृषि मौसम मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पूरी तरह उपयुक्त है। 31 दिसंबर 2008 तक 435 हैक्टेयर क्षेत्र में फूलों की खेती की गई, जिससे कृषि को बढ़ावा मिला। राज्य में 48 फूल उत्पादक सहकारी समितियां हैं। उद्यान उद्योग को मौन पालन और खुम्ब उत्पादन से विविधता मिल रही है।

कृषि भाग और उनके उत्पाद:

कृषि के उद्देश्य से भी क्षेत्र को चार भागों में बांटा गया है, जिनमें समुद्रतल से ऊंचाई और उनमें होने वाले फूल शामिल हैं:

उपरोक्त फलों के अलावा, जंगली पेड़ों पर लगने वाली फलों की किस्मों में सुधार लाने और उद्यान-उद्योग में विविधता लाने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। कुल्लू, मण्डी और चम्बा में जैतून सहित शीतोष्ण फलों के विकास के लिए भारत-इटली परियोजना नामक एक अंतरराष्ट्रीय सहयोग परियोजना चलाई जा रही है। लहौल-स्पिति में ‘हाप्स’ की खेती की जाती है।

विपणन प्रणाली:

“उद्यान उपज एवं विपणन एवं विधायन निगम” (HPMC) को विश्व बैंक की सहायता से चलाई गई फलों के विपणन तथा विधायन की परियोजना के अंतर्गत बनाया गया है। यह देश का पहला संगठन है जिसके फल-उत्पादन क्षेत्रों में बारह पैकिंग हाउस हैं जो ताजे फलों को बेचते हैं।

इनमें वैज्ञानिक तरीके से पैकिंग, धोने और पोंछने की सुविधाएँ और फलों को ग्रेडिंग करने के लिए आधुनिक यंत्र हैं। साथ ही पांच शीत भण्डार भी बनाए गए हैं। दिल्ली, मुम्बई और चेन्नई में भी शीतगृह बनाए गए हैं। फलों के लदान के लिए तीन गोदाम बनाए गए हैं, जो वैज्ञानिक प्रणाली से काम करते हैं। HPMC ने हवाई अड्डों और मण्डियों में 350 के लगभग रस निकालने की मशीनें लगाई हैं।

डा. वाई. एस. परमार कृषि व वनस्पति विश्वविद्यालय: दिसंबर 1985 से सरकार ने सोलन (नौणी) में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की है, जो प्रदेश में उद्यान और वानिकी कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री देता है और इन क्षेत्रों में अनुसंधान करता है। यह पहले कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का एक हिस्सा था।

 

हिमाचल में शून्य बजट खेती

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