हिमाचल प्रदेश की आबादी का 71 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में काम करता है, जो राज्य के कुल घरेलू उत्पाद में लगभग 30 प्रतिशत योगदान देता है। हिमाचल प्रदेश में 9,40,597 हेक्टेयर फसल क्षेत्र और 5,38,412 हेक्टेयर नवीन बुवाई क्षेत्र हैं। सिंचित क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 70 लाख हेक्टेयर है। हिमाचल प्रदेश में कृषि और जलवायु क्षेत्र निम्नलिखित हैं:-
- शिवालिक पहाड़ी क्षेत्र: कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 35 प्रतिशत और कृषि क्षेत्र का लगभग ४० प्रतिशत है। गेहूं, मक्का, धान, चना, गन्ना, सरसों, आलू, सब्जियां आदि प्रमुख फसलें हैं।
- मध्य पहाड़ी क्षेत्र:कुल कृषि क्षेत्र लगभग 37% और कुल भौगोलिक क्षेत्र लगभग 32% है। गेहूं, मक्का, जौ, काले चना, बीन्स, धान और कई अन्य फसलें बोई जाती हैं। इस क्षेत्र में समशीतोष्ण सब्जियों (फूलगोभी और जड़ वाली फसलें) और नकदी फसलों (ऑफ-सीजन सब्जियां) की खेती की अच्छी संभावनाएं हैं।
- ऊंची पहाड़ी क्षेत्र: कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 35% और कृषि क्षेत्र का लगभग 21% है। गेहूं, जौ, कम बाजरा, मक्का, आलू, छद्म अनाज (एक प्रकार का ऐमारैंथस और अनाज) आदि आम फसलें हैं। यह क्षेत्र समशीतोष्ण सब्जियों और बीज आलू के उत्पादन के लिए अच्छा है।
- शीत शुष्क क्षेत्र: यह कृषि क्षेत्र का लगभग 2% और भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 8% है। गेहूं, जौ और छद्म अनाज सबसे बड़ी फसलें हैं।
राज्य में कृषि उत्पादन और विपणन को नियंत्रित करने के लिए हिमाचल प्रदेश कृषि वानिकी उत्पादन विपणन एक्ट 2005 लागू किया गया। इस अधिनियम के तहत हिमाचल प्रदेश विपणन बोर्ड राज्य स्तर पर बनाया गया था। हिमाचल प्रदेश को 10 सूचित विपणन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। कृषक समुदाय के अधिकारों को बचाना इसका मुख्य लक्ष्य है। किसानों को उपयोगी सेवाएं मिल रही हैं, जो व्यवस्थित स्थापित मण्डियों द्वारा प्रदान की जाती हैं। सोलन में कृषि उत्पादों का एक आधुनिक बाजार शुरू हुआ है, और अन्य जगहों पर मार्किट यार्ड बनाए गए हैं। किसानों को लाभ देने के लिए मार्किट फीस 2% से 1% कम की गई।
इस कानून के तहत जो राजस्व प्राप्त होगा उसे मूलभूत सुविधाओं की स्थापना और कृषि उत्पादों की फायदेमंद बिक्री सुनिश्चित करना है। हिमाचल प्रदेश कृषि उपज बाजार अधिनियम भारत सरकार द्वारा लागू किए गए आदर्श अधिनियम से प्रेरित है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना: भारत सरकार ने कृषि और इसके साथ जुड़े क्षेत्रों की विकास दर को कम करने के लिए एक योजना शुरू की है। इसका लक्ष्य चार प्रतिशत की विकास दर प्राप्त करना है। सम्पूर्ण विकास के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य कृषि क्षेत्रों के लिए हैं:-
- राज्य को कृषि और संबंधित क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश करने के लिए प्रेरित करना।
- राज्यों को कृषि और समवर्गी क्षेत्र योजनाओं के लिए योजना बनाने और लागू करने में लचीलापन और स्वतंत्रता देना।
- कृषि योजनाओं को राज्य और जिलों के लिए प्राकृतिक स्त्रोतों, तकनीक और जलवायु प्रभाव में सुविधा देना।
- राज्यों द्वारा कृषि योजना में स्थानीय आवश्यकताओं, फसलों और प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करना
- सरकारी हस्तक्षेप से प्रमुख फसलों के उत्पादन में अंतर को दूर करने का लक्ष्य।
- किसानों को कृषि और उनके संबंधित क्षेत्रों में सबसे अधिक प्राप्ति का लक्ष्य
- कृषि और संबंधित क्षेत्रों में विभिन्न घटकों का पूरा विवरण देना, जो उत्पादकता और उत्पादकता में गुणात्मक बदलाव ला सकते हैं
भारत सरकार ने कृषि विकास (बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन और ग्रामीण विकास) को बढ़ावा देने के लिए धन दे दिया है। योजना वर्ष 2007-08 से शुरू हुई है।
कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर :
1978 ई. से सरकार ने कांगड़ा के पालमपुर में कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो यहां के युवाओं को कृषि में शिक्षा और डिग्री देने के अलावा राज्य के विभिन्न हिस्सों में स्थापित क्षेत्रीय केन्द्रों द्वारा अनुसंधान करके राज्य की सेवा करता है। अब पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय का नाम चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय है क्योंकि चौधरी सरवण कुमार 1977 से 1979 तक प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष थे।
लघु क्षेत्र में अधिकांश किसान लघु या सीमांत हैं, क्योंकि औसत जोत 1.3 हैक्टेयर है। बहुत कम बड़े किसान हैं। और बड़े किसान अन्य फसलों को भी बीजते हैं, लेकिन सीमांत किसान खाद्यान्नों की ही फसलें बीजते हैं। 1966-67 में प्रदेश में खाद्यान्न उत्पादन 7.04 लाख टन था, जो 1992-93 में लगभग 13.12 लाख टन हो गया। 2004–2005 में खाद्यान्न उत्पादन 14.87 लाख टन था, जो 2009–2010 में 16.50 लाख टन हो गया था। कुल कृषि क्षेत्र का 90.2 प्रतिशत खाद्यान्नों पर निर्भर है, जिसमें से 84.5 प्रतिशत अनाज और 5.7 प्रतिशत दालें बीजी हैं।
कृषि:
55.67 लाख हैक्टेयर कृषि क्षेत्र में से 9.80 लाख हैक्टेयर कृषि क्षेत्र है, जो राज्य के कुल घरेलू उत्पादन में 40 प्रतिशत योगदान देता है। कृषि प्रदेश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण है, इसलिए सरकार ने पांचवें दशक से ही इसकी ओर ध्यान दिया है और इस क्षेत्र में नवीनीकरण के लिए अनुसंधान कार्य शुरू किए हैं। प्रदेश में कृषि कार्यों का प्रबंध एक अलग निदेशालय में किया जाता है, जिसका विभागाध्यक्ष कृषि हैं। प्रत्येक जिले में कृषि उप-निदेशक और अन्य कृषि अधिकारी, सहायक विकास अधिकारी (कृषि) हैं। किसानों को विभाग कृषि संबंधी उपकरण, बेहतरीन बीज, उर्वरक (खाद), बीमारी से बचाने वाली दवाइयां और उन्नत तकनीकी जानकारी प्रदान करता है। प्रदेश में शुष्क खेती, तिलहन और दालों के बीजों का विकास और अधिक उपज की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों से राज्य के कुल राज्य घरेलू उत्पाद का लगभग 18.15 प्रतिशत मिलता है। प्रदेश के कुल 55.67 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में से 9.14 लाख किसान 9.79 लाख हैक्टेयर जोते हैं। 1.1 हैक्टेयर की औसत जोत राज्य में है। कृषि जनगणना 2000-01 के अनुसार, कुल जोतों में से 86.4 प्रतिशत लघु व सीमान्त किसानों के पास हैं, जैसा कि नीचे दी गई सारणी से स्पष्ट है। लगभग 0.4 प्रतिशत बड़े किसान हैं, जबकि लगभग 13.2 प्रतिशत अर्ध-मध्यम या मध्यम हैं।
कुल जोते गए क्षेत्र का 81.5 प्रतिशत वर्षा पर निर्भर है। राज्य का मुख्य आहार चावल और गेहूं है। मुंगफली, सोयाबीन और सूरजमुखी खरीफ मौसम की फसलें हैं, और तिल, सरसों और तोरिया रबी मौसम की फसलें हैं। राजमाश राज्य में खरीफ दालें उड़द, बीन, मूंग और चना, मसूर और रबी हैं। राज्य को कृषि जलवायु के अनुसार चार क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है।
- उपोष्णीय, उप पर्वतीय निचले पहाड़ी क्षेत्र
- उप समशीतोष्ण नमी वाले मध्य पर्वतीय क्षेत्र
- नमी वाले उंचे पर्वतीय क्षेत्र
- शुष्क तापमान वाले-उंचे पर्वतीय क्षेत्र और शीत मरूस्थल।
प्रदेश की कृषि जलवायु बेमौसमी सब्जियों, अदरक और आलू के उत्पादन के लिए बहुत उपयुक्त है।
राज्य सरकार बेमौसमी सब्जियों (जैसे आलू, अदरक, दाल, तिलहन) के उत्पादन को भी बढ़ावा दे रही है, खाद्यान्न उत्पादन के अलावा, समय पर कृषि संसाधनों की उपलब्धता, उन्नत कृषि तकनीक, कीटाणु नियंत्रण, जल संरक्षण और पुराने बीजों को बदलकर एकीकृत करके। वर्षा के अनुसार चार अलग-अलग मौसम होते हैं। बरसात में लगभग आधी वर्षा होती है, जबकि बाकी मौसमों में लगभग आधी वर्षा होती है। राज्य में 1,435 मी॰मी॰ की औसत वर्षा होती है। धर्मशाला, कांगड़ा, सिरमौर, मंडी और चम्बा में सबसे अधिक वर्षा होती है।