वन सम्पदा

वन क्षेत्र की बहुमूल्य संपदा ने राज्य की जलवायु और आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रदेश में 37033 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है, जो लगभग 66.5 प्रतिशत का हिस्सा है। अधिकांश वन सरकार के पास हैं। निजी वन बहुत कम है। वन राज्य की आय का 25 प्रतिशत हिस्सा हैं। ये 20 लाख पशुओं को चारागाह की सुविधा देते हैं और लगभग पांच लाख लोगों को रोजगार देते हैं। इसके अलावा, क्षेत्र की बड़ी नदियों द्वारा जमीन कटाव को रोकते हैं। यद्यपि सरकार ने वन क्षेत्र का 66.5 प्रतिशत बताया है, वास्तव में लगभग 37 प्रतिशत क्षेत्र ही है।

हिमाचल प्रदेश के वन नोकीली पत्ती वाले और चौड़ी पत्ती वाले दो प्रकार के हैं। चौल नोकीली पत्ती के वृक्ष देवताओं, कैल, चील, रई को फल न्योजा देते हैं। किन्नौर में न्योजा चील मिलती है, जिससे खाने का फल न्योजा मिलता है। साल, बान, खड़शु, बड़, पीपल, अखरोट, पौपलर, सीमल, तूहनी, जामुन और शीशम सब चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष हैं। इन वनों से लगभग 34 लाख घनफुट इमारती लकड़ी हर वर्ष मिलती है।

इसके अलावा, इनमें कई प्रकार की जड़ी बूटियां पाई जाती हैं जो दवा बनाने के लिए भी उपयोगी हैं। इन वनों में अखबारी कागज, रेयोन ग्रेड पल्प, कला पेपर, गत्ता और कपड़े के उद्योग के लिए कच्चा माल भी है। चील के वृक्ष से बिरोजा मिलता है, जो तारपीन का तेल और प्लास्टिक बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। तारपीन का तेल बनाने के लिए बिरोजे से 1,11,000 किंवटल का बिरोजा बिलासपुर और नाहन में साफ किया जाता है।

हिमाचल प्रदेश वन-निगमः

निजी ठेकेदारों द्वारा जंगलों में काम करने से वन संपत्ति का दुरुपयोग हो रहा था, इसलिए 25 मार्च, 1974 से हिमाचल प्रदेश वन नियम की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य प्रदेश में वनों और उनकी संपदा का पूरी तरह से राष्ट्रीयकरण करके वनों पर आधारित उद्योगों का विकास करना था। वन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं, जो संक्षेप में निम्नलिखित हैं:

  1. राष्ट्रीय सामाजिक वानिकी (अम्बरेला) परियोजना: यह परियोजना लोगों की सामान्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जलाने की लकड़ी, पशु चारे तथा इमारती लकड़ी का उत्पादन बढ़ाना चाहती है। इसके लिए सरकारी डी ग्रेड (बटिया जंगलात) और निजी जमीन पर वृक्षों का रोपण किया जाएगा। योजना को 1985-86 में विश्व बैंक की सहायता से शुरू किया गया था, जिस पर लगभग 65 करोड़ रूपये की लगात हुई थी।
  2. केन्द्र द्वारा प्रायोजित ग्रामीण ईंधन सामाजिक वन रोपण परियोजना: राज्य सरकार और केन्द्र दोनों मिलकर इस परियोजना को लागू कर रहे हैं। इसका लक्ष्य सरकारी व्यर्थ जमीन, गांव की सामूहिक जमीन और सड़कों के किनारों पर लकड़ी के पौधों का रोपण करना है। कांगड़ा, हमीरपुर, मंडी, सोलन और शिमला जिलों में यह योजना लागू की जा रही है।
  3. धौलाधार प्रक्षेत्र वानिकी परियोजना: छठी पंचवर्षीय योजना, धौलाधार के बिनवा जल-ग्रहण क्षेत्र में संघीय गणराज्य जर्मनी की सहायता से शुरू हुई और चली गई। यह एक संयुक्त योजना थी जो वनरोपण, पशुपालन और ईधन के लिए लकड़ी जलाने से बचाने वाले साधनों को शामिल करती थी, जो अब पूरी हो गई है। अब जर्मनी की सहायता से पालमपुर में चंगर क्षेत्र परियोजना चल रही है।
  4. वन्य प्राणी और प्राकृतिक संरक्षण: विभिन्न स्थानीय पशुओं की रक्षा करना इस कार्यक्रम का लक्ष्य है। जिनकी प्रजातियां या तो प्राकृतिक रूप से या शिकार जैसे खेलों के कारण लगभग लुप्त हो रही हैं। वर्तमान में राज्य में 28 वन्यजीव संरक्षण स्थल और 3 राष्ट्रीय पार्क हैं। वन क्षेत्रों में अवैध कटान, आग और अतिक्रमण का खतरा बना रहता है। ताकि लकड़ी के अवैध व्यापार को रोका जा सके, उचित स्थानों पर चैकपोस्ट स्थापित किए जाएं। सरकार भी वन्य जीवों को बचाने के लिए ऐसे ही कार्यक्रम चलाती है।

सामाजिक वानिकी: यह सरकार की वन नीति है जो लोगों को पौधों के रोपण और संरक्षण में शामिल करने के लिए कहती है। इस योजना का महत्व प्रदेश के काफी हिस्से में वनीकरण और जनसंख्या वृद्धि से बढ़ा है। इस योजना में ईंधन, भूमि संरक्षण और पौधे रोपण के लिए लकड़ी बनाना शामिल है। 1980–1981 से शुरू हुई इस दो दशक की योजना में लगभग 20,000 वर्ग किलोमीटर जमीन को वनों के तहत लाया जाना था। इसके अलावा, सरकार ने वन रोपण को बढ़ावा देने के लिए वृक्ष पट्टा नामक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके अनुसार सरकारी जमीन पर लगाए गए वृक्ष लोगों की संपत्ति होंगे और जमीन सरकार की होगी।

यदि ग्रामीण और स्वयंसेवी संस्थाएं सरकारी जमीन पर वृक्ष लगाती हैं, तो आमदनी देने योग्य होने पर उन लोगों या संस्थाओं को 25 प्रतिशत आय का भुगतान किया जाएगा। निजी जमीन पर वन लगाने में भी सरकार मदद करती है। वन विभाग ने किसानों को अपनी जमीन में नर्सरियां लगाने के लिए बीज, पोलीथीन बैग और खाद प्रदान किया और नर्सरी तैयार होने पर सारे पौधे खरीद लिए, जिससे नर्सरी लोकप्रिय हो गई है।

हिमाचल प्रदेश का फोरेस्ट क्षेत्र राष्ट्रीय औसत से अधिक है। देश का 3287263 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 701673 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। यानी देश के 55673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 14696 वर्ग किलोमीटर में से 21-34 प्रतिशत फोरेस्ट कवर है, जबकि प्रदेश में यह आंकड़ा 26.40 प्रतिशत है। 2015 में प्रदेश का वन क्षेत्र 13 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है और हरियाली बढ़ी है। 2013 में प्रदेश में 14638 वर्ग किलोमीटर वन था, लेकिन 2015 में यह बढ़कर

अब जब क्षेत्र कंकरीट के जंगल में बदल गया है और नए निर्माण के लिए पेड़ों की बलि दी जा रही है, तो यह आंकड़ा देवभूमि के लिए वन क्षेत्र में बढ़ोतरी का उत्साहजनक संकेत है। प्रदेश का 3224 वर्ग किलोमीटर वेरी डेंस फोरेस्ट, 6381 वर्ग किलोमीटर मोडरेट्ली डेंस और 5091 वर्ग किलोमीटर ओपन फोरेस्ट है। 2013 से 2015 के दो वर्षों में प्रदेश में खुले फोरेस्ट क्षेत्र में 13 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है।

क्षेत्र, जो पहले 5078 वर्ग किलोमीटर था, अब 5091 वर्ग किलोमीटर है। तीन साल (2013–15) में वन क्षेत्र में बढ़ोतरी में तमिलनाडु ने 2015 वर्ग किलोमीटर, केरल ने 1317 वर्ग किलोमीटर, जम्मू कश्मीर ने 450 वर्ग किलोमीटर, कर्नाटक ने 289 वर्ग किलोमीटर और उत्तर प्रदेश ने 212 वर्ग किलोमीटर बढ़ोतरी की है. मिजोरम में 306 वर्ग किलोमीटर, उत्तराखंड में 268 वर्ग किलोमीटर, तेलंगाना में 168 वर्ग किलोमीटर, ना हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र, जो हिमाचल प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में से लगभग आधे हिस्से का हिस्सा है, बाकी क्षेत्र से काफी छोटा है। हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र, जो हिमाचल प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में से लगभग आधे हिस्से का हिस्सा है, बाकी क्षेत्र से काफी छोटा है। प्रदेश की जमीन का 12.09 प्रतिशत फोरेस्ट है। तीन जनजातीय जिलों में यह क्षेत्र केवल 12.09 प्रतिशत है। प्रदेश के 55,673 वर्ग किलोमीटर में से 26,764 वर्ग किलोमीटर जनजातीय क्षेत्र हैं। 14696 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन हैं। ट्राइबल जिलों में फोरेस्ट केवल 3236 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जो कुल क्षेत्रफल का 12.09 प्रतिशत है।

चंबा, लाहुल-स्पीति और किन्नौर के जनजातीय जिलों के 3236 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में से 950 वर्ग किलोमीटर वेरी डेन्स फोरेस्ट (बहुत घने जंगल), 1067 वर्ग किलोमीटर मोडरेट्ली डेन्स फोरेस्ट (सामान्य घने जंगल) और 1219 वर्ग किलोमीटर ओपन फोरेस्ट (खुला जंगल) हैं। जनजातीय जिलों में भी वनों का दायरा बढ़ने की दर कम रही है। आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में दो वर्षों में 13 वर्ग किलोमीटर का नया क्षेत्र जोड़ा गया, लेकिन जनजातीय जिलों में यह बढ़ोतरी सिर्फ 1 वर्ग किलोमीटर रही। देश के 27 प्रदेशों में 189 जिला जनजातीय श्रेणी में हैं, जिसमें लगभग 40.59 प्रतिशत या 11,11,705 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगल हैं।

इन नौ जिलों का 62.57 प्रतिशत फोरेस्ट कवर एरिया में हिमाचल राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। फोरेस्ट कवर देश के पहाड़ी जिलों का 283015 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है, जो इन जिलों का कुल भौगोलिक क्षेत्र का 39.99 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश सहित अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड के सभी जिले पहाड़ी हैं। देश भर के पहाड़ी जिलों में 1680 वर्ग किलोमीटर (2013-2014) में वन क्षेत्र बढ़ गया है।

राज्य का वन क्षेत्र 1,278 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के वन सर्वेक्षण की वर्ष 2000-01 रिपोर्ट के अनुसार। 1999-2000 में यह दर 13,082 किलोमीटर थी, लेकिन 2000-01 सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह 14,306 किलोमीटर था। 1999 में, सेटेलाइट रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल प्रदेश में घने जंगलों का क्षेत्र 9,120 वर्ग किलोमीटर था, जबकि आज 3,962 वर्ग किलोमीटर खुले वन हैं। नई सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चलता है कि राज्य में सघन वन घनत्व अब अधिक है। 2000 से 2001 तक, यह 10,429 वर्ग किलोमीटर था, लेकिन खुले वन क्षेत्र में कमी आई है। इस बार खुले वन क्षेत्र 3,931 वर्ग किलोमीटर रह गए, पिछले सर्वेक्षण से 31 वर्ग किलोमीटर कम हुआ।

 हिमाचल प्रदेश के तीन जनजातीय जिलों के 26,764 वर्ग किमीटर क्षेत्रफल में रपट ने 2,120 वर्ग किमीटर घने वन और 1,023 खुले वन दिखाए थे, यानी प्रदेश में 3,143 वर्ग किमीटर और किन्नौर, लाहौल-स्पीति और पांगी-भरमौर में 1,174 वर्ग किमीटर वन क्षेत्र था। रपट में बताया गया है कि राज्य का 55,673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 18.7% सघन वन संपदा से घिरा है, जबकि 7.1 प्रतिशत खुला वन क्षेत्र है, यानी राज्य का 74.20 प्रतिशत भू-भाग बिना जंगल के है। हिमाचल प्रदेश के वन क्षेत्र का 2.1 प्रतिशत सड़कों सहित निर्माण योग्य वन क्षेत्र है। प्रदेश में 1,896 वर्ग किलोमीटर संरक्षित वन क्षेत्र है, जबकि बिना वन क्षेत्र के 33,043 वर्ग किलोमीटर

बिलासपुर के 1,167 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 135 वर्ग किलोमीटर पर खुले वन क्षेत्र हैं, जो तेत्या 166 पर स्थित हैं। कुल भू-भाग का केवल 25.79 प्रतिशत वन हैं। चंबा के 6,522 बने किराबाटर क्षेत्र में से 1,652 घने वन हैं, जिसमें 690 वर्ग किलोमीटर खुला बन पेटत वन क्षेत्र है, जो 35.91% है। हमीरपुर के 1.118 किलोमीटर क्षेत्र में से 181 किलोमीटर घने वन हैं, 93 किलोमीटर खुले वन हैं, और कुल वन क्षेत्र 24.51 है। कांगड़ा का 5,739 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 1,719 घने वन, 311 खुले वन हैं, जो कुल क्षेत्रफल का 35.37 प्रतिशत है। किन्नौर के 6,401 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 432 वर्ग किलोमीटर घने वन क्षेत्र हैं, जिसमें 215 वर्ग किलोमीटर खुले वन क्षेत्र हैं, जो कुल वन क्षेत्र का 11.11 प्रतिशत है।

कुल्लू का 5,503 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 1,749 घने वन और 366 खुले वन हैं, जो कुल धू-भाग का 38.43 प्रतिशत है। लाहौल-स्पीति के 13,841 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से वन क्षेत्र 1.11 प्रतिशत है। मंडी के 3,950 वर्ग किमीटर क्षेत्र में से 1,112 वर्ग किमीटर घने वन हैं, जबकि 544 वर्ग किमीटर खुले वन हैं, जो कुल वन क्षेत्र का 41.92 प्रतिशत है। शिमला के 5,131 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 1,878 क्षेत्र घने वन हैं, जिसमें से 566 वर्ग किलोमीटर खुले वन हैं, जो कुल वन क्षेत्र का 47.63 प्रतिशत है। सिरमौर का 2,825 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 755 वर्ग किलोमीटर घने वन क्षेत्र हैं, जबकि 357 वर्ग किलोमीटर खुले वन क्षेत्र हैं। 39.36% वन क्षेत्र है।  सोलन के 1,936 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 459 वर्ग किलोमीटर में 224 खुले वन हैं, जो कुल वन क्षेत्र का 35.28% है। ऊना के 1,540 किलोमीटर क्षेत्र में से 321 किलोमीटर घने वन और 281 किलोमीटर खुले वन हैं, जो कुल क्षेत्र का 39.09 प्रतिशत है। राज्य का 26.40 प्रतिशत वन क्षेत्र है। 1278 वर्ग किलोमीटर का वन क्षेत्र बेशक इससे बढ़ गया है। राष्ट्रीय वन नीति के तहत पहाड़ी राज्यों में ६० प्रतिशत वन क्षेत्र रहने की शर्त अभी भी पूरी नहीं की जाती है।

 

कृषि व्यापार/विपणन

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