हिमाचल प्रदेश को प्रकृति की अनोखी धरोहर प्राप्त है। यहां की असंख्य झीलें निर्मल जल से भरी मनुष्य को अचानक ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इनमें थे। कुछ प्रमुख निम्नलिखित है: –
1. जिला बिलासपुर : हिमाचल प्रदेश की मानव निर्मित सबसे बड़ी झील गोविन्द सागर यहां पर स्थित हैं। यह झील सतलुज नदी पर बने भांखडा बांध के कारण तैयार हुई है। यह लगभग 168 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है ।
2. जिला चम्बा: घड़ासरु झील, खजियार झील, लामा झील, मनीमहेश झील (समुद्रतल से ऊँचाई 3,950 मीटर) व महाकाली झील, चम्बा जिले का प्रमुख झीलें हैं।
3. जिला कांगड़ा : पोंग झील (मानव निर्मित), डल झील तथा करेरी झील।
4. जिला मण्डी : मण्डी जिले की सुप्रसिद्ध झीलें हैं- कुमारवाह, रिवाल्सर, प्राशर झील, कुंत भयोग, करयोशर झील, सुखसार झील तथा कामरुनाग झील | रिवाल्सर को ऋषि पद्मसम्भव का जन्म स्थान भी माना जाता है। ब्यास नदी पर पंडोहबांध जिले की मानव निर्मित झील है।
5. जिला कुल्लु : यहां की प्रसिद्ध झीलें भृगु, दशहर तथा सरवाल्सर हैं।
6. जिला लाहौल स्पिति : सूरजताल झील, चन्द्रताल झील तथा उनाम सो झील ।
7. जिला शिमला : चन्द्रनाहन झील तथा तानु जुब्बल झील गढ़हा कुफ्फर झील ठियोग तहसील के मझराना नामक क्षेत्र में पड़ती है। इस झील में मछलियां बहुत हैं। लोग इन मछलियों को पवित्र मानते हैं।
8. जिला किन्नौर : नाको झील तथा सौरांग झील ।
9. जिला सिरमौर : हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील ‘रेणुका’ जिला सिरमौर में स्थित है। इस झील का नामकरण भगवान परशुराम की मां देवी रेणुका के नाम पर किया गया है।
हिमाचल प्रदेश की जलवायु
हिमाचल प्रदेश में व्यापक जलवायु भिन्नता पायी जाती है। समुद्रतल से ऊँचाई, हरे-भरे जंगल, सदाबहार नदियां सभी जलवायु निर्धारण में सहायक कारक हैं। यहां की वार्षिक औसतन वर्षा 152 से.मी. ( 60 इंच) है। सर्वाधिक वर्षा कांगड़ा जिले मेंधर्मशाला तथा सबसे कम लाहौल स्पिति के स्थिति खंड में होती है। विभिन्न क्षेत्रों में ऊंचाई की विविधता के कारण यहां की जलवायु भी विविधतापूर्ण है। कहीं कड़ाके की गर्मी पड़ रही होती है तो कुछ क्षेत्रों में बर्फ जमी रहती है। शरद ऋतु में 1250 मीटर के नीचे के क्षेत्रों में बर्फ नहीं पड़ती। 1250 से 2000 मीटर वाले क्षेत्रों में बर्फ तो पड़ती है, परन्तु कम और वह भी शीघ्र पिघल जाती है। 2000 मीटर से 4500 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फ पड़ती है जो लगभग 4 महीने तक जमी रहती है और इससे ऊपर वाले क्षेत्रों में लगभग सारा साल बर्फ रहती है। आमतौर पर हिमांचल प्रदेश के पूरे वर्ष के मौसम को तीन ऋतुओं में बांटा जा सकता है :-
1. ताँदी (ग्रीष्म ऋतु ) : यह प्राय: अप्रैल से जून तक का मौसम है जिसमें शिवालिक क्षेत्रों में अधिकाधिक गर्मी पड़ती है। परन्तु यह गर्मी मध्य और ऊपरी भाग के क्षेत्रों में महसूस नहीं होती क्योंकि वहां ठंडी हवायें चलती रहती हैं। पहाड़ों में बर्फ पिघलती है और नदियों में भरपूर जल आता है।
2. बरसात (वर्षा ऋतु यह मौसम जुलाई से सितम्बर तक माना जाता है। गर्मी में सूखी हुई जमीन बरसात में हरी-भरी हो जाती है और खडे/नाले तथा नदियां पानी से भर जाते हैं और निम्न क्षेत्रों में कहीं-कहीं बाद भी आती है। प्रदेश में वर्षा की औसत 160 से. मी. है। सबसे अधिक वर्षा धर्मशाला (कांगड़ा) में 340 से.मी. वार्षिक होती है। यह स्थान देश में वर्षा की दृष्टि से चेरापूंजी (आसाम) के बाद दूसरे स्थान पर आता है।
3. हयूंद (शरद ऋतु) : यह मौसम अक्टूबर से मार्च तक 6 महीने माना जाता है। इस मौसम को प्रदेश में सर्दी का मौसम मानते हैं। हालांकि असली सर्दी मध्य नवम्बर से मध्य फरवरी तक होती है। अक्टूबर और मार्च के महीने प्रायः आनन्ददायक होते हैं। बर्फ प्रायः दिसम्बर व जनवरी में पड़ती है परन्तु इससे पहले व बाद में कभी-कभी बर्फ पड़ जाती है। भारतीय सर्वेक्षण विभाग के अनुसार हिमाचल प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 55.673 वर्ग कि. मी. है तथा इसे 12 प्रशासनिक खंडों में विभाजित किया गया है। कुल क्षेत्रफल का 32,271 वर्ग कि. मी. क्षेत्र (58.0 प्रतिशत) प्रदेश के राजस्व विभाग द्वारा परिमापित किया गया है। क्षेत्रफल की दृष्टि से जिला हमीरपुर सबसे छोटा है जिसका कुल क्षेत्रफल 1.118 वर्ग कि.मी. (कुल 2.01 प्रतिशत) है तथा लाहौल स्पिति प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है, जिसका क्षेत्रफल 13,835 वर्ग कि. मी. (क्षेत्रफल का 24.85 प्रतिशत) है।
“हिमाचल प्रदेश में मिट्टी की किस्में”