“हिमाचल का भूगोल”

हिमाचल का शाब्दिक अर्थ

हिमाचल का शाब्दिक अर्थ है बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच स्थित भूमि’। पश्चिमी हिमालय की गोद में स्थित हिमाचल प्रदेश में प्रवेश के लिए विभिन्न रास्ते अपनाए जाते हैं, जिनमें या तो हम प्रवेश कर सकते हैं पंजाब के मैदानों से, या शिवालिक पहाड़ियों से, या शिमला की पहाड़ियों से, जो ढकी हुई हैं लहलहाते हरे-भरे चीड़ के वनों से यह अद्भुत भूमि प्रत्येक आगन्तुक को अपनी ओर आकर्षित करती है। हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थिति है 330, 22″ से 330, 12″ उत्तरी अक्षांश तथा 750, 47″ से 790, 4″ पूर्वी देशान्तर । इसकी पूर्वी दिशा में स्थित है तिब्बत देश, उत्तर में जम्मू तथा काश्मीर, दक्षिण-पूर्व में उत्तराखंड, दक्षिण में हरियाणा एवं पश्चिम में पंजाब राज्य | हिमाचल प्रदेश की सारी भूमि पहाड़ियों एवं ऊंची-ऊंची चोटियों से भरी हुई है। इन चोटियों की समुद्र तल से ऊंचाई 350 मीटर से 2000 मीटर के बीच में पाई जाती है। प्राकृतिक विवरण के अनुसार हिमाचल प्रदेश के भू-क्षेत्र को तीन भागों में बाँटा जा सकता है।

(अ) निचली (शिवालिक क्षेत्र) पहाड़ियाँ :

इस क्षेत्र में शामिल हैं, जिला कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना, बिलासपुर तथा मण्डी जिले के निचले क्षेत्र, सोलन तथा सिरमौर । इस क्षेत्र को शिवालिक क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। इस क्षेत्र में औसतन वर्षा लगभग 1500 मि.मी. से 1800 मि.मी. के बीच है। यहां की समुद्रतल से ऊंचाई 350 मीटर या 1050 फुट से 1500 मीटर या 4500 फुट तक पायी जाती है। कृषि उत्पादन की दृष्टि से यहां मक्की, गेहूं, अदरक, गन्ना, धान, आलू तथा खट्टी किस्म के फल आदि उगाये जाते हैं। प्राचीन काल में इस क्षेत्र को ‘मानक पर्वत’ के नाम से भी जाना जाता था।

(ब) भीतरी या मध्य हिमालय :

इस क्षेत्र में प्रदेश के ऊपरी भाग तथा सिरमौर जिले की पछाड़ व रेणुका तहसील, मण्डी जिले की चचियोट तथा करसोग तहसील,कांगड़ा जिले के ऊपरी भाग तथा पालमपुर तहसील तथा चम्बा जिले की चुराह तहसील के ऊपरी भाग शामिल हैं। इस क्षेत्र की समुद्रतल से न्यूनतम ऊंचाई 1500 मीटर 4500 फुट से 4500 मीटर या 13,500 फुट है। यहां की जलवायु तथा मिट्टी, आलू बीज समशीतोष्ण कटिबन्धीय फल तथा अन्य सामान्य फल प्रजातियों के लिए काफी उपयोगी है। मध्य हिमालय की दो प्रमुख चोटियां इसी क्षेत्र में पड़ती हैं: पीर पंजाल (चम्बा जिले में) तथा धौलाधार (कांगड़ा जिले में ) ।

(स) वृहत हिमालय या उच्च पर्वतीय क्षेत्र :

इस क्षेत्र में जिला किन्नौर, चम्ब जिले की पांगी तहसील तथा लाहौल स्पिति जिले के कुछ भू-भाग सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र की समुद्रतल से ऊँचाई 4,500 मीटर तथा इससे अधिक पाई जाती है। वर्षा यहां पर बहुत कम होती है। इस क्षेत्र का अधिकतर भाग बर्फ से ढका रहता है। यहाँ का वातावरण गर्मियों में समशीतोष्ण तथा शरद ऋतु में ध्रुवीय (अति ठंडक वाला) प्रकृति का होता है। यहां की मिट्टी समुद्रतल से ऊँचाई तथा वातावरण शुष्क फलों (मेवे) के उत्पादन के लिए अति उपयोगी है।

(द) जसकर पर्वत शृंखला :

यह प्रदेश की अंतिम और पूर्वतम पर्वत शृंखला है। इसकी अधिकतम ऊंचाई 7000 मीटर से अधिक है। यह पूर्व से उत्तर की ओर उठती हुई काश्मीर तथा चीन की ओर चली जाती है। सतलुज इसे शिपकी के पास काटती है। हिमाचल की सबसे ऊंची पर्वत चोटी शिल्ला (7025 मी.) इसी पर्वत श्रृंखला में है।

हिमाचल में गर्म पानी के चश्में

कुल्लू जिले के कसोल व खीरगंगा में गर्म पानी के चश्में पाये जाते हैं। कुल्लू घाटी में मनीकरण के गर्म पानी के चश्में विश्व प्रसिद्ध हैं जो पार्वती नदी के आसपास हैं। इसके अतिरिक्त तत्तापानी में भी गर्म पानी के चश्में हैं। तत्तापानी मण्डी जिले की करसोग तहसील में पड़ता है। यह सभी गर्म पानी के चश्में अपनी एक धार्मिक महत्ता रखते हैं तथा ऐसा माना जाता है कि इन चश्मों में स्नान करने से कई चर्म रोग दूर हो जाते हैं। विभिन्न धार्मिक उत्सवों पर प्रदेश एवं अन्य राज्यों से लोग यहां पर आते हैं। मणिकरण (उबलता हुआ पानी), कसोल (भुंतर से 32 कि.मी. दूर), वशिष्ठ (मनाली), तत्तापानी (सल्फर) युक्त गर्म पानी), अन्नुनाला (रामपुर बुशहर से आगे ज्यूरी के पास ) ।

हिमाचल प्रदेश की नदियाँ

हिमाचल प्रदेश में बहने वाली पाँचों नदियां एवं छोटे-छोटे नाले बारह मासी हैं। इनके स्रोत बर्फ से ढकी पहाडियों में स्थित हैं। हिमाचल प्रदेश में बहने वाली पाँच नदियों में से चार का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। उस समय ये अन्य नामों से जानी जाती थीं जैसे अरिकरी (चिनाव) पुरूष्णी (रावी), अरिजिकिया (व्यास) तथा शतदुई (सतलुज)। पांचवी नदी यमुना जो यमुनोत्तरी से निकलती है उसका सूर्य देव से पौराणिक संबंध दर्शाया जाता है।

(अ) यमुना इस की प्रमुख सहायक नदियां हैं: तोन, पब्बर तथा गिरि । यमुना हिमाचल प्रदेश के पूर्वी छोर में बहने वाली नदी है। यह ताजेवाला नामक स्थल पर हिमाचल प्रदेश को छोड़ कर हरियाणा राज्य में प्रवेश करती है। जिला सिरमौर में लगभग 22 किलोमीटर का रास्ता यह नदी तय करती है।

(ख) सतलुज : सतलुज नदी विश्व प्रसिद्ध मानसरोवर झील के समीप ‘एक्स झील’ से लोछान खाव नदी के रूप में (तिब्बत) निकलती है। यह शिपकी नामक स्थल, (जिला किन्नौर) के पास हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। यह किन्नौर, शिमला तथा बिलासपुर जिले में से बहती हुई पंजाब में प्रवेश करती है। सतलुज नदी का हिमाचल प्रदेश में कुल रास्ता लगभग 320 कि. मीटर है। यह हिमाचल प्रदेश की सबसे लम्बी नदी है।

(स) व्यास : व्यास नदी सुप्रसिद्ध रोहतांग दर्रे से निकलती है (समुद्रतल से ऊँचाई 3,978 मीटर) इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं- पार्वती, स्पिन, मलाणा नाला, सरवारी नाला, बिनवा, न्यूगल, बाणगंगा, गज, देहर, चक्की, कुनाह तथा मान। यह कांगड़ा जिले में सन्धोल के पास प्रवेश करती है तथा मीरथल के पास छोड़ देती हैं-

(द) चिनाब : बारालाचा दर्रा की विपरीत दिशा से निकलने वाले दो छोटे छोटे नाले, चन्द्रा तथा भागा तांदी नामक (लाहौल क्षेत्र में) स्थल पर मिलकर चिनाब नदी बनाते हैं। चिनाब नदी चम्बा जिले की पांगी घाटी में जिंड नामक स्थल पर प्रवेश करती है तथा संसारी नाला के समीप चम्बा भूमि को छोड़ काश्मीर की पोद्दार, घाटी में प्रवेश करती है। हिमाचल प्रदेश में इसका कुल रास्ता लगभग 120 कि०- मी० लम्बा है जिला की दृष्टि से हिमाचल की सबसे बड़ी ना चिनाव

(ई) रावी : रावी नदी धौलाधार श्रृंखला की एक शाखा बडाबंगाल से निकलती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां है- बुद्धिल, टुण्डा बिजलेड़ी, स्युिल तथा चिरचिंड जाला है। चम्बा शहर रावी नदी के दाएं तट पर स्थित है। रावी नदी को इरावती नाम से भी जाना जाता है। जल घनत्व की दृष्टि से यह हिमाचल की सबसे बड़ी नदी है।

“हिमाचल प्रदेश की प्रमुख झीलें, हिमाचल प्रदेश की जलवायु”

 

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