ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी साहित्य का सर्वोच्च सम्मान है। यह पुरस्कार उन लेखकों को दिया जाता है जिन्होंने हिंदी भाषा में उत्कृष्ट साहित्यिक रचना की है।
ज्ञानपीठ चयन समिति ने घोषणा की कि वर्ष 2023 के लिये 58वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार दो लेखकों, संस्कृत विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य तथा उर्दू कवि और गीतकार गुलज़ार को दिया जाएगा।
यह पुरस्कार दूसरी बार संस्कृत के लिये तथा पाँचवीं बार उर्दू के लिये दिया जा रहा है।
इतिहास और स्थापना:
ज्ञानपीठ पुरस्कार की स्थापना 1961 में साहित्यकारों, शिक्षाविदों और उद्योगपतियों के एक समूह द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य हिंदी साहित्य को प्रोत्साहित करना और उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाओं को सम्मानित करना था।
यह पुरस्कार 11 भारतीय भाषाओं में प्रदान किया जाता है:
- आसामी
- बंगाली
- गुजराती
- हिंदी
- कन्नड़
- कश्मीरी
- मलयालम
- मराठी
- ओडिया
- पंजाबी
- तमिल
पुरस्कार:
यह पुरस्कार 11 लाख रुपये की राशि और एक कांस्य मूर्ति के रूप में दिया जाता है। मूर्ति में देवी सरस्वती, ज्ञान की देवी, को दर्शाया गया है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेताओं में कुछ प्रसिद्ध नाम हैं:
- हिंदी:रामधारी सिंह दिनकर, अमृतलाल नागर, महादेवी वर्मा, गुरुदत्त,
- बंगाली:रवींद्रनाथ टैगोर, शरतचंद्र चट्टोपाध्याय,
- मराठी:विष्णुशास्त्री चिपलूणकर,
- तमिल:कन्नदासन,
- तेलुगु:विश्वनाथ सत्यनारायण,
- मलयालम:एस.के. पोट्टेक्कट,
- गुजराती:उमाशंकर जोशी,
- कन्नड़:कुवेंपु,
- पंजाबी:गुरदयाल सिंह,
- असमिया:भबानीप्रसाद बरुआ,
- ओडिया:गणेश प्रसाद मिश्र,
ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्यिक जगत में एक महत्वपूर्ण घटना है और यह भारतीय भाषाओं में रचनात्मकता और उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करता है।
यह पुरस्कार न केवल साहित्यिक कृति को सम्मानित करता है, बल्कि लेखक को भी राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता और ख्याति प्रदान करता है।
यह पुरस्कार भारतीय भाषाओं की समृद्धि और विविधता को भी दर्शाता है और भारतीय साहित्य को विश्व स्तर पर मान्यता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
पात्रता:
यह पुरस्कार किसी भी भारतीय नागरिक को दिया जा सकता है जिन्होंने हिंदी भाषा में उत्कृष्ट साहित्यिक रचना की है। रचना किसी भी विधा में हो सकती है, जैसे कि उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, या निबंध।
चयन प्रक्रिया:
ज्ञानपीठ पुरस्कार का चयन एक जूरी द्वारा किया जाता है जिसमें 11 सदस्य होते हैं। जूरी में साहित्यकार, शिक्षाविद और भाषाविद् शामिल होते हैं।
पुरस्कार विजेता:
ज्ञानपीठ पुरस्कार अब तक 55 लेखकों को दिया जा चुका है। पहले पुरस्कार विजेता सुमित्रानंदन पंत थे जिन्हें 1961 में ‘चिदम्बरा’ के लिए यह पुरस्कार मिला था।
महत्व:
ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी साहित्य का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। यह पुरस्कार न केवल लेखक को सम्मानित करता है, बल्कि हिंदी भाषा और साहित्य को भी प्रोत्साहित करता है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार विवाद:
ज्ञानपीठ पुरस्कार कुछ विवादों से भी घिरा हुआ है। कुछ लोगों का आरोप है कि पुरस्कार राजनीतिक रूप से प्रेरित होता है और यह हमेशा सबसे योग्य लेखक को नहीं दिया जाता है।
कुछ लोगों का यह भी आरोप है कि पुरस्कार कुछ भाषाओं को तरजीह देता है और अन्य भाषाओं को अनदेखा करता है।
गुलज़ार तथा जगद्गुरु रामभद्राचार्य का योगदान क्या है?
गुलज़ार:
- गुलज़ार, जिसे संपूर्ण सिंह कालरा भी कहते हैं, का जन्म 18 अगस्त 1934 को विभाजित भारत के झेलम ज़िले के दीना गाँव में हुआ था।
- वह सिनेमा जगत और साहित्य जगत में सबसे प्रसिद्ध नामों में से एक हैं। उन्हें अपने समय के सर्वश्रेष्ठ उर्दू शायरों में से एक मानते हैं।
गुलज़ार को उर्दू में उनके काम के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार (2002), दादा साहब फाल्के पुरस्कार (2013), पद्म भूषण (2004) और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले। - उन्होंने अपनी कविता में एक नई शैली, “त्रिवेणी”, विकसित की, जो तीन पंक्तियों की गैर-मुकफ़ा कविता है।
- उनका गीत “जय हो”, फिल्म “स्लमडॉग मिलियनेयर” का, 2009 में ऑस्कर पुरस्कार विजेता और 2010 में ऑस्कर विजेता था।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य:
- जगद्गुरु रामानंदाचार्य एक हिंदू आध्यात्मिक गुरु, शिक्षक, कवि और लेखक हैं। उन्होंने 1950 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर में जन्म लिया था और 22 भाषाएँ बोलते हैं।
- रामभद्राचार्य ने संस्कृत, हिंदी, अवधी और मैथिली सहित कई भारतीय भाषाओं में लिखा है। उन्होंने 240 से अधिक भारतीय भाषाओं में पुस्तकें और ग्रंथ लिखे हैं, और 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित हुए।
- अरुंधति, अष्टावक्र, अवध की अजोरिया तथा दशावतार रामभद्राचार्य ने कुछ लेख लिखे हैं।
- वह चित्रकूट, मध्य प्रदेश में तुलसी पीठ की स्थापना और अध्यक्ष हैं।
- तुलसी पीठ हिंदू धार्मिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण प्रकाशक है। रामभद्राचार्य रामानंद संप्रदाय (सम्प्रदाय) के चार जगद्गुरु रामानंदाचार्यों में से एक हैं और वर्ष 1982 से इस पद पर हैं।
- रामानंदी संप्रदाय आज भारत में गंगा के आसपास और नेपाल में सबसे बड़े और सबसे समतावादी हिंदू संगठनों में से एक है। यह मुख्य रूप से विष्णु, राम और अन्य अवतारों की पूजा पर जोर देता है।